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जो लोग शुगर के मरीज हैं उनके लिए है ये खुशखबरी

डायबिटीज की समस्या

उम्मीद है बहुत जल्द शुगर के मरीजों को रोज रोज दवाई खाने से छुटकारा मिल जाए.

स्विट्जरलैंड के वैज्ञानिकों ने इंसुलिन के स्राव और शुगर की मात्रा को नियंत्रित करने में सक्षम एक कृत्रिम सेल्स को विकसित करने में सफलता हासिल करने का दावा किया है.

वैज्ञानिकों का दावा है कि नई कोशिका तीन सप्ताह तक इंसुलिन का सामान्य तरीके से स्राव कर सकती है. यदि सब कुछ उम्मीद के मुताबिक रहा तो आने वाले समय में इस नई खोज के जरिए डायबिटीज को नियंत्रित किया जा सकेगा.

आज भारत ही नहीं दुनिया के अधिकांश देश डायबिटीज की समस्या से ग्रस्त हैं. दिनोंदिन डायबिटीज की समस्या जिस तेजी से विश्वभर में लोगों को अपनी गिरफ्त में ले रहा है उसने लोगों में चिंता बढ़ा दी है. डायबिटीज की समस्या आज दुनियाभर में महामारी का रूप धारण कर चुकी है. यह एक ऐसी बीमारी है जिसके सिम्टमस का पूर्वानुमान भी नहीं लगाया जा सकता है. इस बीमारी का पता व्यक्ति को उस वक्त चलता है जब ये उसको अपनी गिरफ्त में ले चुकी होती है.

लेकिन अब स्विट्जरलैंड में वैज्ञानिकों के नए शोध से उम्मीद जगी है कि यदि सब कुछ उम्मीद के मुताबिक चलता रहा तो बहुत जल्द डायबिटीज को नियंत्रित करना संभव हो सकेगा.

शोधकर्ताओं का कहना है कि बीटा सेल्स से ही इंसुलिन का स्राव होता है. इसमें गड़बड़ी आने पर ब्लड में शुगर की मात्रा काफी बढ़ जाती है, जो आगे चलकर डायबिटीज की समस्या के रूप में सामने आती है. बाजार में ग्लुकोज को नियंत्रित करने की इस समय जो दवाइयां उपलब्ध हैं, वे बहुत अधिक कारगर नहीं है. उनका प्रभाव बहुत सीमित है।

लेकिन वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि नए खोजे कृत्रिम सेल्स के जरिये डायबिटीज पर प्रभावी नियंत्रण पाया जा सकेगा.

स्विस फेडरल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के शोधकर्ताओं ने जो नया कृत्रिम बीटा सेल्स विकसित किया है उसको उन्होंने किडनी सेल्स की मदद से बनाने में सफलता पाई है.

वैज्ञानिकों का दावा है कि उन्होंने कैल्सियम चैनल की सहायता से इंसुलिन का स्राव करने वाले जीन की क्षमता बढ़ाकर इसे संभव कर दिखाया है.

गौरतलब है कि ब्लड में शुगर की मात्रा बढ़ने पर पोटैशियम चैनल खुद-ब-खुद बंद हो जाता है. इसके कारण रक्त में ग्लुकोज का प्रवाह थम जाता है.

वैज्ञानिकों ने चूहों पर इसका परीक्षण भी किया है. जिसके परिणाम संतोषजनक मिलने के बाद वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि बहुत जल्द मनुष्यों पर भी इसके सुखद परिणाम देखने को मिलेंगे.