आप इस वीडियो में साफ देख सकते हैं कि एक बड़ा-सा काला पत्थर यहाँ रखा हुआ है…
जिसको कपड़े से कवर कर रखा है और इसका थोड़ा का भाग बाहर है जिसे सभी मुस्लिम लोग चूम रहे हैं.
हैरानी यहाँ हो रही है कि मुस्लिम लोग जो कभी कोई काला पत्थर नहीं चुमते हैं और इसके आगे सर नहीं झुकाते हैं वह सभी इस पत्थर के सामने सर झुका रहे हैं.
सबसे पहले तो यह समझ लीजिये कि इस पोस्ट का अर्थ किसी पर ऊँगली उठाना नहीं है और ना ही हम किसी के धारक के खिलाफ कुछ बोलेंगे. बस हम तो इस पत्थर का सच और वह भी मुस्लिम नजरिये का सच ही जनता के सामने रखने का प्रयास करेंगे.
क्या कहते हैं इस्लाम धर्म के ज्ञानी लोग?
इतिहास के किसी चरण में मक्का के निवासियों को नगर के आसपास कहीं एक काला चमकदार पत्थर मिला.
ऐसे पत्थर उस पहाड़ी क्षेत्र के पहाड़ों में कहीं भी नहीं पाए जाते थे. उन्होंने समझा कि यह स्वर्ग लोक से नीचे आया है. लोगों ने उसे धन्य और पवित्र समझ कर काबा के एक कोने पर लगा दिया और चूमने लगे. उस समय से पैग़म्बर मुहम्मद (सल्ल॰) के समय तक उन मूर्तिपूजकों और अनेकेश्वर्वादियों ने भी उस पत्थर की पूजा कभी नहीं की.
इस्लाम का आह्वान करने के साथ मूर्तिपूजा तथा अनेकेश्वरवाद (शिर्क, अर्थात् ईश्वर के साथ किसी को साझी, शरीक, समकक्ष बनाने) का खंडन किया जाने लगा. काले पत्थर को पूजने की परम्परा नहीं थी. लोग इसे केवल चूमते ही रहे थे. इसलिए पैग़म्बर साहब ने लोगों की भावनाओं को अकारण छेड़ना उचित, लाभदायक व अनिवार्य न समझा बल्कि परम्परागत आप (सल्ल॰) भी उसे चूम लिया करते. आप ही के अनुसरण में मुसलमान उस काले पत्थर (हजर-ए-असवद) को डेढ़ हज़ार वर्ष से आज तक चूमते आ रहे हैं; इस धारणा और विश्वास के साथ कि ‘‘यह मात्र एक पत्थर है, इसमें कोई ईश्वरीय गुण या शक्ति नहीं; यह किसी को न कुछ फ़ायदा पहुंचा सकता है न नुकसान.’’
तो हिन्दूवादी क्या बोलते हैं?
हिन्दू लोग इस पत्थर को अपने धर्म से जोड़कर देखते हैं. उनके अनुसार हज में मुस्लिम सफ़ेद कपड़ा पहनते हैं और सर मुंडवा लेते हैं. साथ ही साथ परिक्रमा भी करते हैं और हमारे धर्म की एक मुख्य निशानी के आगे सर भी झुकाते हैं.
किन्तु हिन्दू-मुस्लिम सत्य आज जान लो
आज हम 21वी सदी में जी रहे हैं. यहाँ पर हिन्दू और मुस्लिम दोनों को ही शांति और अपने विकास की तरफ ध्यान देना चाहिए. ना कि इस तरह से एक दूसरे के धर्म में दखल देना चाहिए. यहाँ आज जो हमने वीडियो शेयर किया है उसमें साफतौर पर और शांति पूर्वक कोई अपनी उपासना कर रहा है तो उसमें अन्य किसी धर्म के लोगों को दखल नहीं देना चाहिए.
अंतिम सत्य यही है कि ईश्वर और अल्लाह एक ही है और हम सबको अंतिम समय एक ही रोशनी में जाकर मिलना है और वही ईश्वर है तथा वही अल्लाह है.
जो लोग इस तरह के वीडियो दिखाकर लोगों को बाँट रहे हैं उसके खिलाफ आप यह रिपोर्ट जरूर शेयर करें ताकि हिन्दू-मुस्लिम भाई-भाई बनकर एक देश में शांतिपूर्वक रह सकें.
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