वैसे तो भारत में कई पर्यटन स्थल मशहूर हैं, जहां आप छुट्टियां बिताने के लिए गए भी होंगे.
लेकिन क्या आप भारत की एक ऐसी जगह के बारे में जानते हैं जिसे भारत का मिनी लंदन कहा जाता है. भारत का मिनी लंदन आपको देखने में असली लंदन जैसा नज़र आएगा. यहां की खूबसूरती और यहां की आबोहवा आपका मन मोह लेंगी.
आइए हम आपको जानते है कैसा है भारत का मिनी लंदन और बताते हैं कि भारत के इस मिनी लंदन का असली नाम क्या है और ये देश के किस कोने में बसता है.
रांची के करीब स्थित है मैक्लुस्कीगंज
मिनी लंदन के नाम से मशहूर मैक्लुस्कीगंज यूं तो एक छोटा कस्बा है, जो झारखंड की राजधानी रांची से उत्तर-पश्चिम में 65 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. इस कस्बे को बसाने का सारा श्रेय एंग्लोइंडियन समुदाय के व्यवसायी अर्नेस्ट टिमोथी मैकलुस्की को जाता है.
मैकलुस्कीगंज कैसे बना मिनी लंदन ?
घनघोर जंगलों और आदिवासी गांवों के बीच साल 1933 में मैकलस्कीगंज को कोलोनाइजेशन सोसाइटी ऑफ इंडिया ने बसाया था.
ये बताया जाता है कि 1930 के दशक में अर्नेस्ट टिमोथी मैकलुस्की नाम के एक व्यवसायी ने रातू महाराज से लीज़ पर ली गई 10 हज़ार एकड़ ज़मीन पर इस कस्बे की नींव रखी थी.
चामा, रामदागादो, केदल, दुली, कोनका, मायापुर, महुलिया, हेसाल और लपरा जैसे गांवों वाला यह इलाका 365 बंगलों के साथ अपनी एक अलग पहचान बनाता है.
कभी यह पूरा कस्बा एंग्लोइंडियन और गोरे लोगों की वजह से आबाद हुआ करता था.
यहां पश्चिमी संस्कृति और सभ्यता का अनूठा संगम देखने को मिलता था. इन्हीं खासियतों की वजह से यह कस्बा मिनी लंदन के नाम से मशहूर हो गया.
एंग्लोइंडियन परिवारों का है ये कस्बा
कोलकाता में प्रॉपर्टी डीलिंग के पेशे से जुड़े अर्नेस्ट टिमोथी को इस इलाके की आबोहवा ने इस कदर मोहित किया कि उसने भारत के एंग्लोइंडियन परिवारों के लिए अपना एक चमन विकसित करने की ठान ली.
मैकलुस्की अपने समुदाय के लिए कुछ करना चाहते थे. इसलिए उन्होंने पूरे एंग्लोइंडियन समुदाय से अपील की कि वो मैकलुस्कीगंज को विकसित करने में उनकी मदद करें और हुआ भी कुछ ऐसा ही. कोलकाता और दूसरे महानगरों में रहनेवाले कई धनी एंग्लोइंडियन परिवारों ने मैकलुस्कीगंज में डेरा जमाया, ज़मीनें खरीदीं और आकर्षक बंगले बनवाकर यहीं रहने लगे.
मिनी लंदन ने किया बुरे दौर का सामना
जिस तरह से इंसानों को भी अपने जीवन में बुरे दौर से होकर गुज़रना पड़ता है, ठीक उसी तरह से मैकलुस्कीगंज को भी बुरे दिन देखने पड़े थे.
एक वक्त ऐसा भी था जब एक के बाद एक एंग्लोइंडियन परिवार इस कस्बे को छोड़ते चले गए. महज 20-25 परिवार ही यहां रह गए थे.
लेकिन अब मैकलुस्कीगंज में स्थित एक एंग्लोइंडियन परिवार के पुराने बंगले का जीर्णोद्धार करके उसे इंटर कॉलेज में तब्दील कर दिया गया है. यहां कई हाई प्रोफाइल स्कूल खुल गए हैं, जिनमें पढ़ने के लिए दूर-दूर से छात्र आ रहे हैं. यहा पक्की सड़कों के साथ ज़रूरत की तमाम सुख-सुविधाएं मौजूद हैं और कई छात्रावास भी बनाए गए हैं.
गौरतलब है कि यहां बसे लोग आज भी मैकलुस्कीगंज की खूबसूरत को कायम रखने की पूरज़ोर कोशिश में जुटे हुए हैं ताकि मैकलुस्कीगंज हमेशा मिनी लंदन के नाम से अपनी पहचान बनाए रखे.
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