यों तो बसपा सुप्रीमों मायावती के मन की बात और मछली के पदचिन्ह को पकड़ना आसान नहीं है.
लेकिन आजकल बसपा सुप्रीमों मायावती जहां सबसे अधिक फोकस कर रही हैं उससे उनकी रणनीति का अंजादा तो लग ही जाता है.
बसपा सुप्रीमों मायावती ने अपनी चुनावी बिसात पर अभी अपने सभी पत्ते नहीं खोले हैं लेकिन उनके कार्ड में दो तुरूप के पत्तें हैं ये सभी जानते हैं. वे अगर चल गए तो मायावती उत्तर प्रदेश के चुनावी गणित को पलट भी सकती है.
ये तो तुरूप के पत्तें हैं सतीश चंद्र मिश्रा और नसीमुद्दीन सिद्दिकी.
बात यदि सतीश च्रंद मिश्रा की करे तो सतीश मिश्रा और उनकी ब्राह्मण जमात से मायावती को अब भी बहुत उम्मीदे हैं. जानकार बताते हैं कि मायावती ने अभी भी ब्राह्मण वोटों की उम्मीद नहीं छोड़ी है भले ही लोकसभा में ब्राह्मण मतदाता मोदी लहर में भाजपा के पाले में जा खड़ा हुआ हो.
इस उम्मीद की एक बड़ी वजह भाजपा का ब्राह्मण उम्मीदवार कम उतारना भी है. भाजपा ने अभी तक जो करीब 190 लोगों की लिस्ट घोषित की है उसमें ब्राह्मण प्रत्याशी बहुत ही कम है.
जबकि यदि मतदाता के हिसाब से 35-40 ब्राह्मण चेहरों को टिकट मिलने चाहिए थे. लेकिन बसपा को लगता है कि भाजपा राजपूत और गैर-यादव पिछड़ों, अति पिछड़ों पर अधिक फोकस कर रही है.
इसलिए बसपा सुप्रीमों मायावती को ब्राह्मण मतदाताओं से उम्मीद जग रही है क्योंकि भाजपा के मुकाबले में बसपा ने पहले से ही ब्राह्मणों को ज्यादा टिकट दिए है. वहीं दूसरी बसपा प्रमुख मायावती का भरोसा पार्टी के मुस्लिम चेहरे नसीमुद्दीन पर भी है. बसपा ने इस बार बड़ी संख्या में मुस्लिमों को अपना प्रत्याशी बनाया है.
जब सपा अपने पारिवार की कलह में उलझी थी उस वक्त मायावती ने बरेलवी, देवबंदी आदि अलग-अलग फिरकों के मुस्लिम नेताओं को बुला कर उनसे बात की है. एक ओर मायावती ने मुस्लिमों को साधने के लिए उनके प्रभावी धार्मिक नेताओं से गोपनीय मुलाकातें की वहीं दूसरी ओर वे ब्राह्मण नेताओं से भी बराबर मिली है.
जाहिर है जांत-पांत के समीकरण में बसपा सुप्रीमों मायावती ने दांव अपनी वहीं परखा हुआ दांव चला है और उस पर फोकस रखने में भी मायावती कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहती है.
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