बसपा सुप्रीमों मायावती बहुत दिन से अपने पत्ते दबाए बैठी थीं. हर कोई इस बात को जानने के लिए बेताब था कि आखिर क्या वजह है कि मायावती चुनाव के दौरान भी खामोश है.
संसद में बसपा सुप्रीमों मायावती जितनी आक्रमक नजर आ रही थी वहीं मायावती भाजपा नेता दयाशंकर की एक टिप्पणी के बाद इतनी आक्रमक हो गई कि उन्होंने भाजपा को बैकफुट पर ला दिया.
लेकिन बसपा नेता नसीमुद्दीन सिद्दीकी के बयान के बाद जब वह मामला बसपा के खिलाफ जाता दिखा तो मायावती ने खामोशी अख्तियार कर ली.
बताया जाता है कि उस प्रकरण के बाद मायावती ने अपनी रणनीति में बड़ा बदलाव किया. उन्होंने सीधे भाजपा को चुनौती देने के बजाय अंदर अंदर ही सपा को चुनौती देने की रणनीति बनाई.
क्योंकि इस विधान सभा चुनाव में बसपा का सारा दारोमदार मुस्लिम वोटों पर टिका है. लेकिन बसपा की मजबूरी थी कि वह मुस्लिम वोटों को अपने पाले में मोड़ने के लिए सीधे सीधे भाजपा को चुनौती नहीं दे सकती थी. क्योंकि उत्तर प्रदेश में दंगों के बाद जिस प्रकार सांप्रदायिक ध्रुवीकरण हुआ है उसको देखते हुए खतरा है कि मुस्लिमों को रिझाने के चक्कर में यदि भाजपा पर अधिक हमला किया तो उसका हिंदू मतदाताओं में गलत संदेश जा सकता है.
लिहाजा बसपा सुप्रीमों मायावती ने बड़े ही गोपनीय तरीके से अपनी रणनीति बनाई और पहले चरण के मतदान से एक दिन पहले उसको अंजाम दे दिया.
यहां गौर करने वाली है कि इस गोपनीय मिशन को बसपा सुप्रीमों ने खुद अंजाम न देकर मौलानाओं के जरिए अंजाम देने की कोशिश की है.
मतदान से एक दिन पहले दिल्ली के जामा मस्जिद के इमाम और शिया धर्म गुरू कल्बे जब्बात आदि कई फिरकों के मौलानाओं की ओर से एलान हुआ कि चुनावों में इस बार उनकी पसंद बसपा है.
यानी मुस्लिम जो इस दुविधा में है कि वे सपा और बसपा में से किसको वोट दें ताकि भाजपा को हराया जा सके, तो उनके लिए संदेश है कि बसपा ही वह विकल्प है.
आपको बता दें कि पहले चरण के मतदान से ऐन पहले जो ये बसपा के पक्ष में मतदान करने के लिए फतवा आया है उसकी तैयारी काफी दिनों से चल रही थी.
बसपा सुप्रीमों मायावती सभी जमातों और फिरकों को लखनऊ और दिल्ली स्थित अपने आवासों पर बुलाकर बैठकें कर रही थीं. इसके लिए बरेली और देवबंद से लोगों को बुलाकर बैठके कर चर्चा की जा रही थी.
लेकिन उन बैठकों में क्या निर्णय लिया गया है इसको गोपनीय ही रखा गया. क्योंकि यदि मौलानाओं को जो फतवा मतदान से एक दिन पहले आया है अगर वह शुरू में ही आ जाता तो विरोधी उसकी काट में जुट जाते और उसे मैनेज कर लेते.
यही कारण है कि बसपा सुप्रीमों ने इसकी ऐसी टाइमिंग चुनी ताकि सपा और कांग्रेस को इसका तोड़ खोजने का समय ही नहीं मिले.
जिस प्रकार कई मुस्लिम नेताओं और मौलानाओं का एक साथ फतवा आया उससे तो यही जाहिर होता है कि सपा कांग्रेस के गंठबंधन को धराशायी करने के लिए ये सारी रणनीति पहले ही बन चुकी थी लेकिन उसको गोपनीय रखा गया था.
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