हिंदू धर्म में अग्नि को आस्था का प्रतीक माना गया है.
धार्मिक संस्कारों में पवित्र अग्नि प्रज्वलित की जाती है. आपने कई मंदिरों में ऐसा देखा होगा और सुना होगा जहां माता की अखंड ज्योत जलती है. उन्हीं मे से हिमाचल प्रदेश में स्थित मां ज्वाला देवी का मंदिर भी है, जहां प्राचीन काल से हीं ज्योत अपने आप जल रही है.
मां भगवती का ऐसा हीं एक पवित्र मंदिर है जो भारत में नहीं बल्कि अजरबैजान में सुराखानी नामक स्थान पर स्थित है. यहां कभी श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमरती थी. लेकिन आज यहां इस मंदिर में सन्नाटा है, क्योंकि यह मंदिर एक मुस्लिम देश में है, जहां 95 फीसदी से भी ज्यादा मुस्लिम भाई रहते हैं.
मंदिर का क्या है नाम
माता के इस मंदिर को आतिश का तथा टेंपल ऑफ फायर के नाम से भी जाना जाता है. सर्दियों के मौसम में यहां बहुत ज्यादा ठंड पड़ती है. और उस इलाके में तेज हवाएं चलती रहती है.
कहते हैं यह मंदिर टेंपल ऑफ फायर अग्नि को समर्पित है. इस मंदिर टेंपल ऑफ फायर की इमारत किसी प्राचीन काल के गढ़ जैसी ही है. उसकी छत हिंदू मंदिरों की तरह है. इसके पास मां भगवती का त्रिशूल भी स्थापित है. माता के मंदिर के अंदर एक अग्निकुंड है, जिसमें स्वतः आग की लपटें प्रज्वलित होती रहती हैं. इस मंदिर के दीवारों पर कुछ लेख भी अंकित हैं. इन आलेखों में गुरुमुखी लिपि का इस्तेमाल किया गया है.
मंदिर का इतिहास
कहा जाता है कि बहुत पहले जमाने में हिंदुस्तान के व्यापारी इस रास्ते से होकर अपने कारोबार के लिए जाते थे, उन व्यापारियों ने हीं मां ज्वालामुखी के प्रति अपनी आस्था को अभिव्यक्त करने की खातिर यहां इस मंदिर को बनवाया था. जब कोई भी भारतीय इधर से होकर गुजरता था, तो उस मंदिर में आकर मां की आराधना जरूर करता था.
कुछ ऐतिहासिक जानकारों के अनुसार मंदिर के निर्माता का नाम बुद्धदेव है. वो कुरुक्षेत्र के निकट मादजा गांव के निवासी थे. माता की मंदिर पर संवत 1783 अंकित है. मंदिर की एक शिलालेख पर इनके कारीगरों के नाम अंकित हैं. जिसमें मंदिर के द्वार को बनाने वाले के नाम उत्तम चंद और शोभराज लिखे हैं.
वैसे तो यहां भारतीयों की तादाद ही ज्यादा होती थी. लेकिन यहां के स्थानीय लोग भी अपनी मन्नत मांगते थे.
कहा जाता है कि सन 864 ईसवी में मंदिर के पुजारी यहां से चले गए, इसके बाद यहां कोई दूसरा पुजारी नहीं आया. कुछ इतिहास कारों के अनुसार यहां पहले इरान से भी लोग पूजा करने आया करते थे और यह कई शताब्दियों पुराना है. कहा तो यहां तक जाता है कि पांचवी शताब्दी में भी इसका जिक्र आता है. जिसके बाद में यह मंदिर हिंदुओं के लिए प्रमुख पूजन स्थल बन गया.
मंदिर में आज पसरा है सन्नाटा
गौरतलब है कि अजरबैजान एक मुस्लिम देश है. किसी जमाने में यह सोवियत संघ का हिस्सा हुआ करता था. और यहां एक म्यूजियम भी बनाया गया है. जहां पुरानी यादों को संजोकर रखा जाता है. इस म्यूजियम में व्यापारियों, धर्मगुरुओं, कर्मों के फल इत्यादि को बताने वाली आकृतियां बनी हुई है.
आज भी यहां कुछ लोग अपनी जिज्ञासा के कारण टेंपल ऑफ फायर देखने आते हैं और इस टेंपल ऑफ फायर के इतिहास को जानने की भरपूर कोशिश करते हैं.
यहां की खामोशी शायद उस जमाने को याद करता है, जब यहां कभी रौनक हुआ करती थी. लेकिन आज सन्नाटा है.
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