वैष्णों देवी माता का मंदिर कटरा से करीब 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है.
उस मंदिर की उंचाई करीब 5,200 फीट है. हर साल लाखों की तादाद में भक्त माता रानी के दर्शन के लिए आते हैं. कई घंटे की लंबी चढ़ाई के बाद उन्हें माता रानी के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त होता है.
लेकिन माता के दरबार से भक्त वापस तब तक नहीं लौट सकते, जब तक कि वो भैरव बाबा के दर्शन न कर लें.
कहा जाता है कि माता रानी के दर्शन के बाद जब तक भक्त भैरव दर्शन न कर लें तब तक दर्शन अधूरा माना जाता है. भैरव दर्शन करनेवालों पर ही माता रानी की कृपादृष्टि होती है.
माता के दर्शन के बाद भैरव दर्शन करना क्यों ज़रूरी माना जाता है, इसके लिए एक पौराणिक कथा प्रचलित है, जिसे हम और आप जानना ज़रूर चाहेंगे.
पौराणिक मान्यता के अनुसार
कहा जाता है कि एक बार मां वैष्णो देवी के परम भक्त श्रीधर ने नवरात्रि पूजन के लिए कुंवारी कन्याओं को बुलवाया. माता रानी कन्या का रूप धारण करके वहां पहुंची. माता ने श्रीधर से गांव के सभी लोगों को भंडारे के लिए निमंत्रण देने को कहा.
निमंत्रण पाने के बाद गांव के कई लोग श्रीधर के घर भोजन करने के लिए पहुंचे. तब कन्या रुपी माँ वैष्णो देवी ने सभी को भोजन परोसना शुरू किया. भोजन परोसते हुए जब वह कन्या भैरवनाथ के पास गई. लेकिन भैरवनाथ भोजन में मांस और मदिरा का सेवन करने की ज़िद करने लगे.
कन्या ने खूब समझाने की कोशिश की जिससे क्रोध में आकर भैरवनाथ ने कन्या को पकड़ना चाहा. लेकिन उससे पहले वायु का रुप लेकर मां त्रिकूट पर्वत की ओर उड़ चली.
इसी पर्वत की एक गुफा में पहुंच कर माता ने नौ माह तक तपस्या की. मान्यता के अनुसार उस वक़्त हनुमानजी माता की रक्षा के लिए उनके साथ ही थे.
भैरवनाथ भी उनका पीछा करते हुए उस गुफा तक पहुंचे. तब माता गुफा के दूसरे छोर से बाहर निकल गई. यह गुफा आज भी अर्धकुमारी या आदिकुमारी के नाम से प्रसिद्ध है.
गुफा के दूसरे द्वार से बाहर निकलने के बाद भी भैरवनाथ ने माता का पीछा नहीं छोड़ा. तब माता वैष्णवी ने महाकाली का रूप लेकर भैरवनाथ का संहार कर दिया.
भैरवनाथ का सिर कटकर भवन से 8 किमी दूर त्रिकूट पर्वत की भैरव घाटी में जा गिरा. उस स्थान को भैरवनाथ के मंदिर के नाम से जाना जाता है.
हालांकि वध के बाद भैरवनाथ को अपनी गलती का अहसास हुआ और उसने मां क्षमा की भीख माँगी.
दयालु माता ने उन्हें न सिर्फ माफ किया बल्कि उसे वरदान देते हुए कहा कि मेरे दर्शन तब तक पूरे नहीं माने जाएँगे, जब तक कोई भक्त मेरे बाद तुम्हारे दर्शन नहीं करेगा.
गौरतलब है कि इस पौराणिक मान्यता के अनुसार आज भी भक्त माता वैष्णो देवी के दर्शन करने के बाद 8 किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई चढ़कर भैरवनाथ के दर्शन करने को जाते हैं. ताकि उनके दर्शन पूरे हो सकें और उन्हें माता रानी के दर्शन का पूर्ण फल मिले.
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