चलिए आपको साधना करते हुए, आधा नवरात्रा तो हो चुका है और अब बस इतने ही दिन तपस्या के और बाकी रह गये हैं.
वैसे यह बात तो निश्चित है कि आपने अभी तक सही विधि-विधान से माता के व्रत और पूजा किया है तो अब तक आप सयम और सहनशीलता जैसी चीजें सीख चुके होंगे. कितना बोलना है और कैसा बोलना है यह आपकी समझ में आने लगा होगा और आपके जीवन में एक नई सकारात्मक रोशनी ने जगह बनानी शुरी कर दी होगी.
तो अब माता के नवरात्रे का यह छठा दिन है.
इस दिन दुर्गा माँ की कात्यायनी रूप की पूजा की जाती है. माँ कात्यायनी इस दिन जो शक्ति साधक को देती हैं उसके द्वारा साधक किसी को भी अपने वश में कर सकता है. महर्षि कात्यायन की पुत्री होने के कारण ही माता का नाम माँ कात्यायनी है.
तो आइये जानते हैं कि नवरात्रे के छठे दिन माँ कात्यायनी जी की पूजा किस तरह से करनी है –
सही पूजा विधि
माता के अंश को ब्रह्मा-विष्णु-और महेश ने राक्षस महिषासुर के खात्मे के लिए ही धरती पर भेज गया था. माता ने ऋषि के यहाँ जन्म लिया और महिषासुर का अंत कर घरती से इस पापी को खत्म किया था. इसी तरह से माँ कात्यायनी आज हमारे मन के पापों को भी खत्म करती हैं.
माँ कात्यायनी की पूजा के लिए सबसे पहले आप माता की चौकी को गंगाजल से शुद्ध करें. इसके बाद माता की तस्वीर को चौकी पर रखें और माता के सामने धूप जलायें. माँ को घी का दीया काफी पसंद होता है इसलिए दीया जलायें. माता की हर पूजा में श्रृंगार का अपना ही महत्त्व है. आप श्रृंगार करें और माता के टीका आदि करें. इसके बाद आप माता की आरती से पहले गणपति जी की आरती करें और तब माता की आरती करें.
इस मन्त्र का करें 108 बार जप
यदि आपको अपना आज्ञा चक्र जगाना है तो आप इस मन्त्र का जाप जरूर करें. वैसे एक दिन की पूजा से यह चक्र पूरी तरह से तो नहीं खुलता है किन्तु एक शुरूआती साधक के हिसाब से जरुर उसमें शक्ति आ जाती है. मन्त्र इस प्रकार है-
ऊॅं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे।
ऊॅं कात्यायनी देव्यै नम||
इस मन्त्र का जाप आप सुबह और शाम कम से कम 108 बार जरुर करें. इस मन्त्र के जाप से आप आँखों के बीच की जगह में एक रोशनी का अनुभव आप करें तो समझ लो कि आपकी पूजा सफल हो रही है.
इसके साथ-साथ आप माता के ध्यान मन्त्र का जाप करें और ध्यान मन्त्र आप कम से कम 5 बार जरुर जपें. ध्यान मन्त्र इस प्रकार है-
वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा कात्यायनी यशस्वनीम्॥
स्वर्णाआज्ञा चक्र स्थितां षष्टम दुर्गा त्रिनेत्राम्।
वराभीत करां षगपदधरां कात्यायनसुतां भजामि॥
पटाम्बर परिधानां स्मेरमुखी नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रसन्नवदना पञ्वाधरां कांतकपोला तुंग कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां त्रिवलीविभूषित निम्न नाभिम॥
माँ कात्यायनी की पूजा भक्त को विशेष फल देनी वाली बताई गयी है. इसलिए अपने व्यस्त समय में से समय निकालकर आप माता को पूजा जरूर करें.
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