भक्त का मन जब मणिपुर चक्र में जाना शुरू होता है तो एक तरह से बोला जाता है आत्मा का ऊपर उठना शुरू हो जाता है.
इसलिए नवरात्रे का तीसरा दिन इतना मुख्य बताया जाता है. इस दिन भक्त माता चंद्रघंटा की पूजा करते हैं और माता चंद्रघंटा भक्त के मणिपुर चक्र को खोलती हैं.
भक्त के दिमाग में हमेशा एक बात चलती है कि माता के तीसरे रूप का नाम माता चंद्रघंटा क्यों रखा गया है. तो आपको बता दें कि माँ का यह रुप चंद्रमा की तरह शीतल होता है. यह रूप भक्त को आध्यात्मिक शान्ति प्रदान करता है.
तो आइये जानते हैं कि माता चंद्रघंटा की संध्या पूजा कैसे करनी चाहिए-
सबसे पहले ध्यान करो और महसूस करो शक्ति –
आप अगर माता चंद्रघंटा का ध्यान मजबूती से ध्यान करते हैं तो आपको हो सकता है कि घंटियों की आवाज सुनाई दे और एक खुशबू आपको आनंदित करे. ऐसा कहा जाता है कि अगर आपकी पूजा सिद्ध हो रही है आप माता की पूजा के समय इन चीजों का अनुभव जरुर लेंगे.
कैसे करनी है पूजा, जरुर पढ़ें –
तो नवरात्रे की सही पूजा विधि का आपको पता जरूर होना चाइये. सबसे पहले माता की चौकी पर गंगाजल से शुद्धता लाने का काम करें. इसके बाद माँ के सामने घी का दीया जलाएं. माता का टीका आदि करने के बाद आप गणेश जी की आरती के साथ माता की आरती करें.
आपको अच्छी तरह से पता होना चाहिए कि नवरात्रों में संध्या पूजा का विशेष महत्त्व होता है. माता चंद्रघंटा भक्त भक्तों के सभी कष्ट खत्म कर देती हैं.
माता का ध्यान मन्त्र –
वन्दे वांछित लाभाय चन्द्रार्धकृत शेखरम्।
सिंहारूढा चंद्रघंटा यशस्वनीम्॥
मणिपुर स्थितां तृतीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।
खंग, गदा, त्रिशूल,चापशर,पदम कमण्डलु माला वराभीतकराम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर हार केयूर,किंकिणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम॥
प्रफुल्ल वंदना बिबाधारा कांत कपोलां तुगं कुचाम्।
कमनीयां लावाण्यां क्षीणकटि नितम्बनीम्॥
तो जब आपकी पूजा खत्म हो जाये तो आप इस ध्यान मन्त्र का जाप करें. पूजा के सबसे अंत में आप इस मन्त्र का जाप कम से कम 108 बार करें.
या देवी सर्वभूतेषु माँ चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
इस मन्त्र का जाप करने से व्यक्ति का मन एक जगह स्थिर होने लगता है. माता से आप अच्छे कामों को सफलतापूर्वक करने के लिए शक्ति भी जरुर मांगें.