मराठा सरदार मल्हार राव होलकर – वैसे तो भारत के इतिहास में कई मराठा सरदारों के पराक्रम के किस्से सुनने को मिलते है।
लेकिन आज हम आपको एक ऐसे मराठा सरदार की कहानी सुनाने जा रहे है जिसने अपने पराक्रम से फर्श से अर्श तक का सफर तय किया।
एक गैर सैनिक परिवार में पैदा होकर भी अपने साहस के दम पर एक राजवंश की स्थापना की। लेकिन इस महान योद्धा के ऊपर जंग से पीठ दिखाकर भाग जाने जैसी अप्रिय घटना भी जुड़ी है।
हम बात कर रहे है मराठा सरदार मल्हार राव होलकर की जिसने महाराष्ट्र के बाहर जाकर मराठा साम्राज्य विकसित को किया था। मल्हार राव होलकर का जन्म पुणे के होल गाँव में एक चरवाहे परिवार में 16 मार्च 1693 में हुआ था। बड़े होकर उन्होंने 1721 में बाजीराव पेशवा की सेना जॉइन कर ली।
यहाँ अपने साहस और पराक्रम की बदौलत पेशवा के करीबी हो गए और सफलता की सीढियां चढ़ते चले गये।
उनको 500 सैनिकों का नेतृत्व सौंपा गया। 1728 में हैदराबाद के निजाम के साथ मराठों की लड़ाई में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही थी।
उन्होंने एक के बाद एक कई लड़ाइयों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जैसे 1737 में दिल्ली की लड़ाई, 1738 में भोपाल के निजाम को हराना। इतना ही नहीं मराठा सरदार मल्हार राव होलकर के पुर्तगालियों से लड़ाईयां लड़ी और जीती थी। 1748 तक मराठा सरदार मल्हार राव होलकर की स्थिति मालवा इंदौर में बेहद मजबूत हो चुकी थी इंदौर की रियासत उनके नाम कर दी गई। जिसके बाद उन्होंने मालवा होलकर साम्राज्य की स्थापना की।
इतिहास की कई लड़ाईयां में अपना पराक्रम दिखाने वाले मराठा सरदार मल्हार राव होलकर के नाम पानीपत के तीसरे युद्ध में लड़ाई छोड़कर भाग इल्जाम भी है। हालाँकि बहुत से इतिहासकार इस बात को नहीं मानते। उनके मुताबिक मराठा सरदार मल्हार राव होलकर ने इस लड़ाई में भी अहमद शाह अब्दाली की सेना से जमकर लोहा लिया था। लेकिन जब विश्वास राव पेशवा की युद्ध में मौत हो गई और मराठों की हार निश्चित लगने लगी तो मराठों के सेनापति सदाशिव राव भाऊ ने मराठा सरदार मल्हार राव होलकर को बुलाया और उनसे आग्रह किया कि वो उनकी पत्नी पार्वतीबाई को सुरक्षित जगह ले जाएं।
मराठा सरदार मल्हार राव होलकर ने उनकी आज्ञा का पालन किया और पार्वती बाई को वहां से लेकर चले गये।
ये घटना बाद में उनके जीवन का सबसे बड़ा कलंक साबित हुई और लोगों ने कहना शुरू कर दिया की मल्हार राव युद्ध से भाग गए थे।