राजनीति

माओ त्से तुंग आधी रात को क्यों मिलते थे विेदेशी मेहमानों से !

माओ त्से तुंग एक ऐसा नाम जिसे चीनी इतिहास में आज भी याद किया जाता है.

माओ त्से तुंग को चीन के  क्रान्तिकारी, राजनैतिक विचारक और कम्युनिस्ट दल के नेता  के रुप में जाना जाता है जिनके नेतृत्व में चीन की क्रांति सफल हुई। माओ ने मार्कस और लेनिन जिनकी चीनी सभ्यता पर सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ा उन दोनो के सिद्धातों को जोड़कर एक नए सिद्धांत माओवाद को जन्म दिया । माओ त्से तुंग की सोच को समर्थन करने वाले ओर उसके विरोध करने वाले दोनो ही तरह के लोग चीन में है लेकिन कहते इस बात से फर्क नही पड़ता कोई आपको चाहता है या नफरत करता है जरुरी ये है कि लोग आपके बारे में बात करते है आपकी सोच पर बहस करते है । यही सोच माओ को भी आज भी जिंदा रखे हुए है ।

चीनी क्रांतिकारी माओ के जीवन को लेकर बहुत सी बातें मशहूर है जो दिलचस्प होने के साथ साथ विचित्र भी है । कहा जाता है कि माओ माओ का दिन रात से में शुरु होता था । और वो अपनी विचाधारा के चलते आए दिन कई विदेशी नेताओं से मिलते थे । लेकिन दिलचस्प बात ये है कि ये मुलाकातें दिन में नहीं बल्कि रात में होती थी । माना जाता है कि माओ बहुत ही मूडी किस्म के इंसान थे उन्हे इस बात से फर्क नही पड़ता था कि उनसे मिलने वाला किसी बड़े देश प्रधानमंत्री है या नेता या कोई ओर ।

वो तभी मिलते थे जब उन्हे मिलना होता था । माओ अपना ज्यादातर  वक्त बिस्तर पर बिताते थे जिस वजह से 1957 में माओ के मास्कों ट्रिप पर माओ का बिस्तर उनके साथ गया था । 1956 में भारत के लोकसभा अध्यक्ष आयंगर भारत के कुछ नेताओ के साथ चीन पंहुचे । कोई ओर होता तो आंयगर के साथ एक मीटिंग रखता उसके बाद वहां मिलने जाता । लेकिन माओ कुछ अलग ही थे। उन्होने रात में भारतीय दूतवास को संदेश पहुंचाया कि वो लोकसभा अध्यक्ष अयांगर से अभी मिलना चाहते है । ओर रात के 12 बजे भारत के लोकसभा अध्यक्ष से मुलाकात की ।

माओ बहुत मूडी थे लेकिन माओ में बहुत ऐसी खास बातें थी जनकी वजह से चीन जाने वाला हर नेता उनसे मिलने की इच्छा रखता था। फिर चाहे वो मुलाकात आधी रात को ही क्यों न हो । भारत के पूर्व उप राष्ट्रपति सर्व पल्ली राधआकृष्ण भी माओ से मिलने चीन गए थे । सर्वपल्ली राधाकृष्ण ने माओ से गले मिलते हुए उनके गाल को थपथपा दिया था जिसे शायद माओ नाराज होते लेकिन उसे पहले ही सर्वपल्ली ने कह दिया था कि उन्हे ये मजाक मेंस्टालिन और पोप के साथ भी किया है ।

माओ त्से तुंग के भारतीय नेताओं के साथ कोई बैर नही था लेकिन इसके बावजूद 1962 की भारत चीन के युद्ध में माओ की सबसे बड़ी भूमिका मानी जाती है । क्योंकि भारत के खिलाफ युद्ध की रणनीति बनानी ली थी शायद इसलिए क्योंकि माओ को इस बात का अंदाजा लग चुका था कि आने वाले वक्त में भारत चीन के लिए एक बड़ी चुनौती हो सकता है ।

उस चीन के बदलाव और विकास के लिए माओ त्से तुंग ने अपनी जिंदगी लगाई थी । अगर दूसरे शब्दों में कहा जाए तो माओ 20 सदी के सबसे ताकतवर शख्सियत में से एक थे, जिन्होंने अपने देश को एक अलग पहचान दी हालांकि चीन के कई लोग माओ और माओ की सोच के विरोधी भी है । जिनके अनुसार माओ दारा की गई बहुत सी चीजें गलत थी ।

Preeti Rajput

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