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आखिर कौन था वो शख्स जिसे जेल से छुड़वाने के लिए नेहरू और जेठमलानी एक हो गए थे.

मानेकशॉ नानावती

भारत के इतिहास में ऐसा उदाहरण देखने को बहुत ही कम मिलेगा जब प्रधानमंत्री नेहरू से लेकर राज्यपाल विजयलक्ष्मी पंडित और अभियोजन पक्ष के वकील राम जेठमलानी तक बचाव पक्ष के हत्या के दोषी को बचाने के लिए एकजुट हो गए हों.

देश में एक ऐसा हत्याकांड हुआ था जिसने सबको हिलाकर रख दिया था.

इसमें नौसेना के कमांडर कवास मानेकशॉ नानावती ने अपने पारिवारिक मित्र व अपनी पत्नी के प्रेमी प्रेम आहूजा को गोली मारकर हत्या कर दी थी.

मानेकशॉ नानावती पारसी थे जबकि आहूजा सिंधी.

मानेकशॉ नानावती

मानेकशॉ नानावती की पत्नी सिल्विया ब्रिटिश थी जिनसे उन्होंने अपनी ब्रिटेन में ट्रेनिंग के दौरान शादी की थी. नानावती नौसेना में होने के कारण अक्सर महीनों अपने जहाज पर तैनात होने के कारण मुंबई से दूर रहते थे.

संबंध बने व इतने गहरे हो गए कि उनकी पत्नी उन्हें तलाक तक देने के बारे में सोचने लगी. ये बात नानावती को बर्दास्त नहीं हुई. अगले दिन उन्होंने अपना रिवाल्वर लिया और उसमें छह गोलियां भरी. उसके बाद सीधे प्रेम आहूजा के घर पहुंचकर उसे गोली मारी.

उसके बाद मानेकशॉ नानावती ने पुलिस थाने पहुंचकर अपना जुर्म कबूल कर लिया. लेकिन इसके बाद पूरा मुंबई ही नहीं देश भी दो हिस्सों में बंट गया. तमाम पारसी मानेकशॉ नानावती के साथ आ खड़े हुए व सिंधी प्रेम आहूजा के साथ.

प्रेम आहूजा की बहन मैमी ने तब के युवा वकील राम जेठमालानी को सिंधी होने के कारण मामले पर नजर रखने के लिए नियुक्त किया. तो वहीं पूरा पारसी समाज नानावती को बचाने के अभियान में लग गया.

जब अदालत में मुकदमा चला तो अभियोजन पक्ष ने यह साबित करना चाहा कि यह हत्या एक सुनियोजित साजिश थी जबकि बचाव पक्ष का कहना था कि प्रेम आहूजा की मौत दोनों लोगों के बीच हुई हाथापाई के दौरान अचानक गोली चल जाने से हुई.

लेकिन बात न बनते देख अंत में इसके लिए एक तरकीब निकाली गई.

एक ओर जहां तत्कालीन रक्षा मंत्री कृष्ण मेनन ने तत्कालीन नौसेना प्रमुख से अदालत में जाकर नानावती के पक्ष में गवाही देने को कहा. इसकी खास वजह थी.

मानेकशॉ नानावती जवाहर लाल नेहरू के भी करीबी थे. उसकी इस निकटता की वजह उसका तत्कालीन रक्षा मंत्री वी के कृष्णमेनन के काफी करीब होना था. जब वे ब्रिटेन में भारत के उचायुक्त थे जब नानावती उनका डिफेंस एटैची था.

डिफेंस एटैची रहते हुए नानावती की सीधे नेहरू से बात होती थी. यही कारण है कि नेहरू ने अपनी बहन विजयलक्ष्मी पंडित जो मुंबई प्रदेश (तब महाराष्ट्र नहीं बना था) की राज्यपाल थी, पर दबाव डाल कर नानावती की सजा माफ करने को कहा.

क्योंकि हाईकोर्ट ने नानावती को दोषी करार दिया व सुप्रीम कोर्ट ने उसके फैसले को बहाल रखते हुए उसे आजीवन कारावास की सजा दी. वहीं इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट और राज्यपाल के बीच टकराव की नौबत आ गई.

नेहरू एक ओर जहां नानावती को बचाना चाहते थे वहीं वे सिंधी समाज को नाराज भी नहीं करना चाहते थे. राम जेठमलानी ने इसका हल निकाल लिया.

उस समय एक प्रतिष्ठित सिंधी व्यापारी भाई प्रताप के खिलाफ आयात-निर्यात लाइसेंस के दुरूपयोग का मामला दर्ज किया गया. राम जेठमलानी ने बातचीत कर यह हल निकाला कि अगर सरकार उस सिंधी व्यापारी के खिलाफ अपना मामला वापस ले ले तो वे लोग नानावती के खिलाफ अपना विरोध बंद कर देंगे.

वहीं हुआ. प्रेम आहूजा की बहन मैमी व भाई प्रताप ने इस संबंध में राज्यपाल को चिट्ठी लिखी व उन्होंने उस पर तुरंत कार्रवाई करते हुए एक ही दिन में आदेश जारी करके नानावती व भाई प्रताप दोनों को क्षमादान दे दिया.