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भगवद् गीता से सीखिए मैनेजमेंट के सुपरहिट फंडे!

जब महाभारत के युद्ध के समय अर्जुन असमंजस में आ गए थे और अपने परिवार वालों पर हथियार उठाने में खुद को असक्षम पा रहे थे. उस समय श्री कृष्ण ने अर्जुन को भगवद् गीता का सन्देश देते हुए राह दिखाई.

कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया ये सन्देश भगवद् गीता के नाम से जाना जाता है.भगवद् गीता में लगभग मनुष्य के हर भ्रम और मुश्किल स्थिति को हल करने के तरीके मिल जाते है. शायद इसीलिए भगवद् गीता पूरे विश्व में सबसे ज्यादा पढ़ी जाने वाली पुस्तकों में से एक है.

आज हम आपको बताते है गीता के उन श्लोकों के बारे में जिनके अंदर मैनेजमेंट के सुपरहिट फंडे छुपे है.

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतु र्भूर्मा ते संगोस्त्वकर्मणि ।।
इस श्लोक में कृष्ण अर्जुन से कहते है “हे अर्जुन तुम अपने कर्म करते रहो.. उन कर्मों से मिलने वाले फल के बारे में मत सोचो.”
मैनेजमेंट सूत्र – इस श्लोक से हम सीखते है कि हम जो भी काम करने पूरी लगन,निष्ठा और ईमानदारी से करें. अगर हम कार्य करने से पहले ही उससे मिलने वाले फल के बारे में सोचने लगेंगे तो हम उस कार्य पर पूरा ध्यान नहीं दे सकेंगे. इसलिए पहले ये ज़रूरी है कि हम कार्य को अच्छे से संपन्न करें. अगर कार्य निष्ठा से किया गया है तो उसका फल अच्छा ही होगा.

नास्ति बुद्धिरयुक्तस्य न चायुक्तस्य भावना।
न चाभावयत: शांतिरशांतस्य कुत: सुखम्।

इस श्लोक में कृष्ण अर्जुन से कहते है “विवेकहीन मनुष्य के पास निश्चय करने की बुद्धि नहीं होती, बुद्धि बिना कुछ करने की भावना नहीं होती. जिसमे भावना नहीं होती उसे शांति नहीं मिलती और शांति बिना सुख कैसे मिलेगा.”

मैनेजमेंट सूत्र–  हर मनुष्य सुख चाहता है, लेकिन उस सुख को प्राप्त करने के लिए हर कोई समुचित निर्णय नहीं ले पाता. स्व्बुद्धि और स्वविवेक से किये गए निर्णय ही सफल होते है. अगर हमारा मन लक्ष्य को छोड़ कर अन्य कार्यों में लिप्त है तो हमें कभी सफलता नहीं मिल सकती और सफलता बिना सुख कहाँ से मिलेगा.

योगस्थ: कुरु कर्माणि संग त्यक्तवा धनंजय।
सिद्धय-सिद्धयो: समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते।।

इस श्लोक में कृष्ण अर्जुन से कहते है ” कर्म और योग का समन्वय करके यश-अपयश सबके बारे में सोचते हुए कर्म नहीं करना चाहिए. कर्म करते समय समबुद्धि रखनी चाहिए.

मैनेजमेंट सूत्र : कर्म का धर्म ये होता है कि समभाव से कर्म किये जाए. मान अपमान,यश अपयश,लाभ हानि सबके बारे में समभाव रखा जाए. अगर बहुत ज्यादा किसी एक चीज़ के बारे में सोचते हुए कर्म करेंगे तो कर्म का फल उतना नहीं मिलता जितना मिलना चाहिए. इसलिए अपनी बुद्धि और क्षमता को सिर्फ कर्म पर ही केन्द्रित रखना चाहिए.

नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मण:।
 शरीरयात्रापि च ते न प्रसिद्धयेदकर्मण:।।
इस श्लोक में कृष्ण अर्जुन से कहते है “हे अर्जुन तू अपने धर्म के अनुसार कर्म करेगा तो निश्चित रूप से सफलता मिलेगी “

मैनेजमेंट सूत्र :
अर्जुन के माध्यम से कृष्ण  ये महत्वपूर्ण सन्देश देते है जिसमे कहा गया है कि हर वयक्ति को अपने धर्म के अनुसार कर्म करने चाहिये तभी उसे सफलता मिलती है. यहाँ धर्म का मतलब किसी सम्प्रदाय से नहीं है, यहाँ धर्म का मतलब है अपने कर्तव्य से. अर्थात् यदि आप विद्यार्थी हो तो आपका धर्म शिक्षा ग्रहण करना है, अदि आप व्यापार करते है तो आपका धर्म पूरी निष्ठा के साथ व्यापार करना है.
जो लोग कर्तव्य के अनुसार कर्म नहीं करते वो सिर्फ समय बर्बाद करते है.
ये थे भगवद् गीता के श्लोक जो हमें सीखाते है की जीवन प्रबंधन के सटीक नुस्खे जिन्हें अपनाकर हम जीवन की हर दौड़ में सफल हो सकते है.
Yogesh Pareek

Writer, wanderer , crazy movie buff, insane reader, lost soul and master of sarcasm.. Spiritual but not religious. worship Stanley Kubrick . in short A Mad in the Bad World.

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Yogesh Pareek

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