योगस्थ: कुरु कर्माणि संग त्यक्तवा धनंजय।
सिद्धय-सिद्धयो: समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते।।
इस श्लोक में कृष्ण अर्जुन से कहते है ” कर्म और योग का समन्वय करके यश-अपयश सबके बारे में सोचते हुए कर्म नहीं करना चाहिए. कर्म करते समय समबुद्धि रखनी चाहिए.
मैनेजमेंट सूत्र : कर्म का धर्म ये होता है कि समभाव से कर्म किये जाए. मान अपमान,यश अपयश,लाभ हानि सबके बारे में समभाव रखा जाए. अगर बहुत ज्यादा किसी एक चीज़ के बारे में सोचते हुए कर्म करेंगे तो कर्म का फल उतना नहीं मिलता जितना मिलना चाहिए. इसलिए अपनी बुद्धि और क्षमता को सिर्फ कर्म पर ही केन्द्रित रखना चाहिए.