नास्ति बुद्धिरयुक्तस्य न चायुक्तस्य भावना।
न चाभावयत: शांतिरशांतस्य कुत: सुखम्।
इस श्लोक में कृष्ण अर्जुन से कहते है “विवेकहीन मनुष्य के पास निश्चय करने की बुद्धि नहीं होती, बुद्धि बिना कुछ करने की भावना नहीं होती. जिसमे भावना नहीं होती उसे शांति नहीं मिलती और शांति बिना सुख कैसे मिलेगा.”
मैनेजमेंट सूत्र– हर मनुष्य सुख चाहता है, लेकिन उस सुख को प्राप्त करने के लिए हर कोई समुचित निर्णय नहीं ले पाता. स्व्बुद्धि और स्वविवेक से किये गए निर्णय ही सफल होते है. अगर हमारा मन लक्ष्य को छोड़ कर अन्य कार्यों में लिप्त है तो हमें कभी सफलता नहीं मिल सकती और सफलता बिना सुख कहाँ से मिलेगा.