दूसरों के लिए जीना – आज के ज़माने में संतुष्टि के लिए लोग क्या कुछ नहीं कर रहे हैं.
आय दिन खबरों में पढ़ने को मिलता है कि अपना सबकुछ छोड़ कोई सन्यासी बन गया. कोई इस मायाजाल से छुटकारा पाने के लिए दीक्षा लेकर सामान्य सी जिंदगी जीने के लिए चला जाता है. भले ही आज लोगों का मोह लाइफस्टाइल के प्रति बढ़ गया है, लेकिन अब भी कुछ ऐसे हैं, जो इससे दूर भागते हैं. उन्हें अपनी दिनचर्या से ज्यादा दूसरों की पड़ी रहती है.
शायद इसीलिए वो अपनी सुख-सुविधा छोड़कर दूसरों के लिए जीना शीख लेते है –
सबसे बड़ी बात ये है कि ये युवा पीढ़ी ज्यादा कर रही है.
जिस उम्र में उन्हें अपने बारे में सोचना चाहिए उस उम्र में उनका मोह भंग हो रहा है और वो सारी सुख-सुविधा का त्याग कर रहे हैं. एक ऐसी ही कहानी है उस व्यक्ति की, जो कभी सेना में लाखों की सैलरी उठाता था, लेकिन आज सड़कों पर घूमता है.
गुरुग्राम के रवि कालरा डिफेंस में युवाओं को ट्रेनिंग देने वाली अपनी अच्छी आमदनी की नौकरी छोड़ कर अब बेघर लोगों की मदद को ही अपने ज़िन्दगी का मकसद बना चुके हैं.
अक्सर हम और आप सड़कों पर बेसहारा लोगों को देखकर उनके प्रति दया दिखाते हैं और उन्हें कुछ पल देखने के बाद आगे बढ़ जाते हैं, लेकिन रवि की नज़रें जब इन बेसहारा लोगों पर पड़ी, तो वो नज़रें फेर नहीं पाएं और अपनी सारी जिंदगी इन लोगों के नाम कर दिया.
2007 से वो पूरी तरह इसी काम में जुट गए हैं. पहले अपने घर पर बेघर बेसहारा और मानसिक संतुलन खो चुके लोगों को ये लाकर उनकी सेवा किया करते थे. आज इनके पास ४५० से ज्यादा ऐसे लोग हैं, जिनको अपनों ने ठुकरा दिया है या जो हालात के मारे हैं.
रवि का इस तरह से बेसहारा लोगों की मदद करना बड़ी बात है. दूसरों के लिए जीना उसका जीवन बन गया है.
रवि ने जब ये काम शुरू किया था तो खुद उनके घर वालों ने उन्हें पागल कहकर उनका सतह छोड़ दिया.
रवि को बहुत संघर्ष करना पड़ा, क्योंकि रवि ने अपनी नौकरी छोड़ दी थी, लेकिन रवि के हौसले ने उन्हें पीछे नहीं हटने दिया. एक इंटरव्यू में रवि ने कहा, ”शुरुआत में बहुत मुश्किल हुई. घर वालों ने साथ छोड़ दिया. अच्छी खासी नौकरी छोड़ दी, लेकिन मैं हमेशा से जनता था कि मुझे ये ही करना है. आज मुझे १० साल हो गए और मैं खुश हूं कि मैं दुसरों के लिए कुछ कर पा रहा हूं.” रवि का ये जज़्बा उन तमाम लोगों के लिए रोशनी लेकर आया है, जिन्हें अपनों ने ठुकराया है.
जब भी कोई व्यक्ति नेक काम करने निकलता है तो उसे शुरुआत में बहुत तकलीफ होती है, लेकिन धीरे धीरे उसकी मुसीबतें कम होने लगती हैं. रवि के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ.
जब घर के लोगों ने साथ छोड़ा तो आसपास के लोगों ने रवि की सराहना की और अपने घर से थोड़ा-बहुत सामान देना शुरू किया. इससे रवि का हौसला और बढ़ता रहा. लोग कपड़ों से लेकर राशन और रुपयों की मदद इन तक पहुंचाते रहते हैं.
इस तरह से बेसहारा लोगों की मदद के लिए अपनी सुख सुविधा का त्याग करने वाले बिरले ही मिलते हैं. इस कहते है दूसरों के लिए जीना !
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