इतिहास

झारखंड के इस गांव से जुड़ा है बेहद दिलचस्प इतिहास !

मलूटी गांव – भारत एक ऐसा देश है जहां विभिन्न धर्म, संस्कृति और परंपराओं के बीच अनूठा संगम देखने को मिलता है.

विविधता में एकता की मिसाल पेश करनेवाले इस देश में एक बहुत ही छोटा सा गांव ऐसा भी हैं जो मंदिरों से घिरा हुआ है.

झारखंड के दुमका जिले में स्थित इस गांव में आप जहां अपनी नजरों को दौड़ाएंगे आपको प्राचीन मंदिर ही नजर आएंगे. अधिक संख्या में मंदिरों के होने की वजह से इस गांव को गुप्त काशी और मंदिरों का गांव भी कहा जाता है.

हम जानते हैं कि अब आपके मन में सवाल उठ रहे होंगे कि आखिर इस गांव में इतने सारे मंदिर किसने बनवाएं होंगे और इस गांव का क्या इतिहास रहा है.

तो चलिए हम आपको मलूटी गांव से जुड़े उस इतिहास से रूबरू कराते हैं जो बेहद दिलचस्प है.

मलूटी गांव से जुड़ी है दिलचस्प कहानी

मलूटी गांव में अगर आज भी इतने सारे मंदिर मौजूद हैं तो उससे एक दिलचस्प कहानी भी जुड़ी हुई है. मलूटी गांव के राजा यहां आलिशान महल बनाने के बजाय मंदिर बनाना पसंद करते थे और यहां के राजाओं में अच्छे से अच्छा मंदिर बनाने की होड़ मच गई थी.

इसका नतीजा यह हुआ कि यहां हर जगह पर खूबसूरत मंदिर ही मंदिर बन गए और तब से यह गांव मंदिरों के गांव के रुप में प्रसिद्ध हो गया.

मलूटी गांव में स्थित मंदिरों को अलग-अलग समूहों में निर्मित किया गया है. यहां भगवान शिव के मंदिरों के अलावा दुर्गा, काली, धर्मराज, मनसा, विष्णु जैसे कई देवी-देवताओं के मंदिर भी स्थित हैं. इतना ही नहीं यहां मौलिक्षा माता का एक जाग्रत और भव्य मंदिर भी है.

यहां हुआ था 108 भव्य मंदिरों का निर्माण

कहा जाता है कि इस गांव का राजा कभी एक किसान हुआ करता था और उसी के वंशजों ने यहां करीब 108 भव्य मंदिरों को निर्माण करवाया था.

मलूटी गांव में मौजूद ये सभी मंदिर बाज बसंत राजवंशों के काल में बनाए गए थे. शुरूआत में यहां कुल 108 मंदिर थे लेकिन अब इनकी संख्या घटकर 72 हो गई है.

आपको बता दें कि इन मंदिरों का निर्माण सन 1720 से लेकर 1840 के बीच हुआ था. इन मंदिरों का निर्माण सुप्रसिद्ध चाला रीति से किया गया है. छोटे-छोटे लाल सुर्ख ईटों से निर्मित इन मंदिरों की ऊंचाई 15 फीट से लेकर 60 फीट तक है.

इन मंदिरों को बनाने में बंगाल की वास्तुकला का प्रमुखता से इस्तेमाल किया गया है इसके साथ ही इनकी दीवारों पर रामायण-महाभारत के दृ़श्यों का चित्रण भी बेहद खूबसूरती से किया गया है.

बाज बसंत रॉय को ईनाम में मिला था ये गांव

मान्यताओं के अनुसार इस गांव का नाम सबसे पहले ननकर राजवंश के समय प्रकाश में आया था. उसके बाद गौर के सुल्तान अलाउद्दीन हसन शाह के कारण यह गांव फिर से प्रकाश में आया था.

बताया जाता है कि अलाउद्दीन ने खुश होकर इस गांव को बाज बसंत रॉय को ईनाम स्वरुप दे दिया था. राजा बाज बसंत शुरुआत में एक अनाथ किसान थे.

बाज बसंत रॉय के नाम के आगे बाज शब्द लगने के पीछे भी एक कहानी है. दरअसल एक दफा सुल्तान अलाउद्दीन की बेगम का पालतू पक्षी बाज उड़ गया और बाज को उड़ता देख किसान बसंत ने उसे पकड़ लिया और रानी को वापस लौटा दिया.

बसंत के इस काम से खुश होकर सुल्तान ने उन्‍हें मलूटी गांव ईनाम में दे दिया और तब से बसंत राजा बाज बसंत के नाम से पहचाने जाने लगे.

गौरतलब है कि मलूटी गांव पशुओं की बलि के लिए भी जाना जाता है. इसके साथ ही यह गांव एक पर्यटन स्थल के रुप में विकसित भी हो रहा है लेकिन मूलभूत सुविधाएं के अभाव के चलते पर्यटक रात में यहां रुकने से कतराते हैं.

Anita Ram

Share
Published by
Anita Ram

Recent Posts

इंडियन प्रीमियर लीग 2023 में आरसीबी के जीतने की संभावनाएं

इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) दुनिया में सबसे लोकप्रिय टी20 क्रिकेट लीग में से एक है,…

2 months ago

छोटी सोच व पैरो की मोच कभी आगे बढ़ने नही देती।

दुनिया मे सबसे ताकतवर चीज है हमारी सोच ! हम अपनी लाइफ में जैसा सोचते…

3 years ago

Solar Eclipse- Surya Grahan 2020, सूर्य ग्रहण 2020- Youngisthan

सूर्य ग्रहण 2020- सूर्य ग्रहण कब है, सूर्य ग्रहण कब लगेगा, आज सूर्य ग्रहण कितने…

3 years ago

कोरोना के लॉक डाउन में क्या है शराबियों का हाल?

कोरोना महामारी के कारण देश के देश बर्बाद हो रही हैं, इंडस्ट्रीज ठप पड़ी हुई…

3 years ago

क्या कोरोना की वजह से घट जाएगी आपकी सैलरी

दुनियाभर के 200 देश आज कोरोना संकट से जूंझ रहे हैं, इस बिमारी का असर…

3 years ago

संजय गांधी की मौत के पीछे की सच्चाई जानकर पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक जाएगी आपकी…

वैसे तो गांधी परिवार पूरे विश्व मे प्रसिद्ध है और उस परिवार के हर सदस्य…

3 years ago