मलाला की बायोपिक फिल्म – मलाला यूसुफजई का नाम तो सुना ही होगा। यह एक जान पहचाना नाम है जिसे हर कोई आतंकवाद से लड़ने की प्रेरणा मानते हैं। इसी प्रेरणा के कारण इन्हें नोबेल शांति पुरस्कार भी मिल चुका है। जहां पाकिस्तान में महिलाओं के पढ़ने में पाबंदी है वहीं मलाला ब्रिटेन में रहकर अपनी पढ़ाई पूरी कर रही हैं। मलाला लड़कियों की शिक्षा के लिए काफी सजग हैं और इसी सजगता के कारण वे तालिबानी गोली का शिकार भी हो चुकी है।
इस गोली का शिकार होने के बाद कार्यकर्ता मलाला को 2014 का नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया है। महिलाओं के लिए शिक्षा को अनिवार्य बनाए जाने की मांग करने के कारण आतंकवादियों ने 9 अक्टूबर 2012 को आतंकवादियों ने इन्हें गोली मार दी थी। ये आतंकवादी महिलाओं की शिक्षा के खिलाफ थे। जिसके बाद इन्हें नोबेल शांति पुरस्कार मिला और ये दुनिया में महिलाओं की शिक्षा का जाना पहचाना नाम बन गई।
इसलिए बन रही है मलाला की बायोपिक फिल्म
इनके इसी हौसले और उपलब्धियों के कारण मलाला की बायोपिक फिल्म बॉलीवुड बना रहा है। वैसे भी आजकल बॉलीवुड में रियल लाइफ स्टोरीज़ पर फिल्म बनाने का एक ट्रेंड शुरू हो चुका है जो हिट भी हो रहा है। फिल्म मैरीकॉम, भाग मिल्खा भाग, एम एस धोनी और संजू, सारी की सारी हिट फिल्में हैं और ये सारी बायोपिक हैं। इन सबके अलावा फिल्म ‘सूरमा’, ‘गोल्ड’, और ‘मणिकर्णिका: द क्वीन ऑफ झांसी’ बड़े पर्दे पर रिलीज होने की कतार में लगी है। इस कतार में एक और नाम मलाला पर बन रही मलाला की बायोपिक फिल्म ‘गुल मकाई’ का भी जुड़ गया है।
जारी हुआ पोस्टर
जून सप्ताह के पहले मंगलवार को नोबेल पुरुस्कार विजेता मलाला युसुफजई के जीवन पर बन रही फिल्म ‘गुल मकाई’ का मोशन पोस्टर रिलीज हो गया है। पहली नजर में इस पोस्टर को देखकर लगेगा की मलाला ही खड़ी है। लेकिन यह टीवी ऐक्ट्रेस रीम समीर शेख हैं जो इस मिल्म में मलाला का किरदार निभा रही हैं।
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इस टीजर में मलाला युसुफजई के हाथ में एक किताब है जो जल रही है। इसके बैकग्राउंड में कबीर बेदी की आवाज में कहा गया है,’यह तब की बात है जब जिहाद और धर्म के नाम पर तालिबान पाकिस्तान और अफगानिस्तान को तबाह कर रहा था, तभी पाकिस्तान के एक छोटे वे गांव से एक आवाज उठी।’
क्लास में आती थीं हमेशा फर्स्ट
1997 में पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वाह प्रांत के स्वात जिले में मलाला का जन्म हुआ था। यह एक साधारण सी लड़की थीं जिसे पढ़ने का बहुत शौक था। मलाला जब ढाई साल की थी तब वह अपने पिता के साथ स्कूल जाती थी। वहां वह अपने से 10 साल बड़े बच्चों के साथ बैठा करती थी। जहां वह कुछ बोलती नहीं थी केवल टुकुर-टुकुर सबकुछ निहारा करती थी। स्वात घाटी में अपने स्कूली जीवन के दौरान मलाला हमेशा अपनी कक्षा में फर्स्ट करती रहीं।
लेकिन तालिबान ने 2007 से मई 2009 तक स्वात घाटी पर कब्जा कर लिया और तालिबान के भय से लड़कियों ने स्कूल जाना बंद कर दिया। मलाल तब आठवीं क्लास की छात्रा थीं। जिसके बाद उन्होंने पेशावर में नेशनल प्रेस के सामने मशहूर भाषण दिया जिसका शीर्षक था- हाउ डेयर द तालिबान टेक अवे माय बेसिक राइट टू एजुकेशन? तब वह केवल 11 साल की थीं और यहीं से उनका संघर्ष शुरू हुआ था।
मलाला पर तालिबानी हमला
2012 को तालिबानी आतंकियों ने मलाला पर हमला किया था। 9 अक्टूबर 2012 को मलाला अपने दोस्तों के साथ एक बस में थीं। तभी आतंकी आए और पूछे मलाला कौन है? किसी ने कुछ जवाब तो नहीं दिया लेकिन सब मलाला की तरफ देखने लगे। जिससे आतंकियों को पता चल गया कि वह ही मलाला हैं और उन्होंने उसके सिर में गोली मार दी। गंभीर रूप से घायल मलाला को इलाज के लिए ब्रिटेन ले जाया गया। तब देश-विदेश के लोगोंने मलाला के स्वस्थ होने की प्रार्थना की और मलाला स्वस्थ होकर वापस लौटीं। इस बार वह और अधिक दोगुने उत्साह से महिलाओं की शिक्षा के लिए आवाज उठाने लगीं और 2014 में इन्हें नोबेल शांति पुरस्कार मिला।
नोबेल शांति पुरस्कार के अलावा मलाला को 2013 में यूरोपीय यूनियन का प्रतिष्ठित शैखरोव मानवाधिकार पुरस्कार भी मिल चुका है। मलाला की बहादुरी के लिए संयुक्त राष्ट्र द्वारा मलाला के 16वें जन्मदिन पर 12 जुलाई को मलाला दिवस घोषित किया गया है और अब इन पर बॉलीवुड फिल्म भी बना रहा है जो लॉन्च होने से पहले ही काफी फेमस हो गई है।
अब तो हर कोई मलाला की बायोपिक फिल्म का इंतजार कर रहा है।
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