दुनिया के इतिहास में अपनी हॉकी स्टिक से गोल्डन अक्षरों में अपना नाम लिखने वाले हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद का नाम आज भी बड़े ही सम्मान के साथ लिया जाता है।
उनकी महानता की बात करे तो मेजर ध्यानचंद को फुटबॉल में पेले और क्रिकेट में ब्रेडमैन के समतुल्य माना जाता है।
मेजर ध्यानचंद जब खेलते थे तो गेंद इस कदर उनकी स्टिक से चिपकी रहती थी कि उनके प्रतिद्वंदी खिलाड़ियों को अक्सर आशंका होती थी कि वे कोई जादुई स्टिक से खेल रहे है।
इतना ही नहीं हॉलैंड में तो उनकी हॉकी स्टिक तोड़कर देखी गई की कहीं इसमें चुंबक तो नहीं है।
हालाँकि आज हम ध्यानचंद के एक दूसरे किस्से की बात करने जा रहे है जो खेल के मैदान के बाहर का है। ये किस्सा जर्मन तानाशाह हिटलर से जुड़ा है। ये बात 1936 के बर्लिन ओलंपिक की है। जब बर्लिन ओलंपिक में हिटलर ने ध्यानचंद की प्रतिभा देखी तो वह ध्यानचंद का कायल हो गया। उस समय हिटलर ही नहीं बल्कि पूरा जर्मनी मेजर ध्यानचंद का दीवाना हो गया था।
हिटलर ध्यानचंद के खेल से इतना प्रभावित हुआ कि उसने ध्यानचंद को जर्मनी के लिए खेलने और जर्मन सेना में उच्च पद देने का ऑफर दिया। लेकिन ध्यानचंद ने बड़ी ही विनम्रता से यह कहकर प्रस्ताव ठुकरा दिया कि “मैंने भारत का नमक खाया है, मैं भारतीय हूँ और भारत के लिए ही खेलूँगा।” मेजर ध्यानचंद की ये बात उन्हें ना सिर्फ एक बेहतरीन खिलाड़ी बल्कि उन्हें एक महान देशभक्त भी साबित करती है।
दुनिया भर में ध्यानचंद जितना मशहूर अपने खेल के लिए हुए उतना ही हिटलर का ऑफर ठुकराने के लिए भी रहे।
आपको बता दें कि मेजर ध्यानचंद ब्रिटिश आर्मी में लांस नायक थे।
लेकिन उनके बेहतरीन खेल प्रदर्शन को देखने हुए ब्रिटिश गवर्नमेंट ने उन्हें मेजर बनाया था। मेजर ध्यानचंद ने हॉकी में वो मुकाम हासिल किया है जो विश्व में आज तक कोई नहीं कर पाया है। उनकी महानता इतनी थी कि वियेना में ध्यानचंद की चार हाथ में चार हॉकी स्टिक लिए मूर्ति लगाई गई है जो यह दिखाती है कि मेजर ध्यानचंद कितने जबरदस्त ख़िलाड़ी थे।
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