आज जिस ब्राह्मण वाद और हिंदुत्व से सभी को आजादी चाहिए कोई भी यह जानने का प्रयास नहीं करता है कि उस ब्राह्मण और हिंदुत्व ने कितने अत्याचार सहे हैं.
दर्द और अपनों की हत्यायें जितनी इन लोगों ने देखी हैं उतनी शायद ही किसी अन्य हिन्दुस्तानी कौम ने देखी होगी.
भारत देश में जब गजनी का आना हुआ तो उसने लूट के साथ-साथ खूनी खेल भी खेला था. वह कहता था कि मुस्लिम धर्म में गैर मजहबी लोगों का क़त्ल करना बताया गया है और अगर हम मुसलमान इन लोगों के पूजा-इबादत की जगह को तबाह कर देंगे तो ये लोग आसानी से बाद में मुसलमान बन जायेंगे.
इसी क्रम में पहले तो वह सोमनाथ के मंदिर को लुटता रहा और जब लूटने से उसका मन भर गया तो वह सोमनाथ के मंदिर को तोड़ना भी चाहता था. उसी प्रकार गजनी ने हिन्दुओं के पवित्र और धार्मिक स्थान को भी मिट्टी में मिला दिया और यह पूजा स्थल हिन्दुओं के लिए ‘काबा’ की ही तरह था.
लेकिन इतिहास में इस बात का जिक्र नहीं किया गया है. आज हमारे सनातनी लोग अपने इतिहास को पढ़ना भी नहीं चाहते हैं जिसके कारण वह सच से बहुत दूर हैं.
आइये जानते हैं उस स्थान के बारे में
महमूद गजनवी ने मुख्य रूप से हिन्दुओं के धार्मिक स्थलों पर ही हमला किया था. इसमें नगरकोट, थानेश्वर, मथुरा और सोमनाथ मुख्य रूप से शामिल हैं. जैसा कि सबको पता था कि नगरकोट के किले में विशाल और बेशकीमती मूर्तियाँ हैं इसलिए यहाँ से उसने इन मूर्तियों को लूटकर खूब धन कमाया. थानेश्वर के बारे में तब प्रचलित था कि यह स्थान हिदुओं के लिए उतना ही पवित्र है जितना कि मुसलमानों के लिए काबा पवित्र है. थानेश्वर में ‘जग सोम’ नाम की एक विशाल मूर्ति भी थी और बोला जाता था कि यह विशाल प्रतिमा तभी से हैं जबसे मानव सृष्टि पृथ्वी पर है.
गजनी ने इस स्थान को तबाह करने के लिए दिल्ली के आनंद पाल से मदद मांगी और आनंद पाल ने यह शर्त रखी थी कि मूर्ति को तबाह नहीं किया जाएगा. लेकिन गजनी ने तब बोला था कि संसार से मूर्ति पूजा खत्म करना ही हमारा उद्देश्य है. यदि यह मूर्ति रहेगी तो यहाँ पूजा होती रहेगी.
इसके बाद कहते हैं कि यहाँ पर हमला किया गया, हजारों लोगों का क़त्ल किया गया और मूर्ति को तबाह कर दिया गया.
आज विरान है थानेश्वर और जानकारी के नाम पर कुछ नहीं मिलता है
आप आज ही इंटरनेट थानेश्वर की जानकारी खोजें तो आपको यहाँ के बारें में बहुत ही कम जानकारी प्राप्त होगी. कुछ जगह पर मात्र चंद लाइनों में इस स्थान को शिव स्थान या स्थानेश्वर का जिक्र है तो परन्तु कहीं भी यह नहीं बताया गया है कि कभी यह स्थान हिन्दुओं का सबसे अधिक महत्त्व वाला धार्मिक स्थान था.
हो सकता है कि इस कहानी को इसलिए आज छुपाया गया है क्योकि यह हिन्दुओं की कायरता की निशानी है कि वह अपने इस पवित्र स्थल को गँवा चुके हैं और मुख्य प्रतिमा का जो किया गया था उसे शायद पत्रकारिता के मूल्यों की वजह से यहाँ नहीं बताया जा सकता है.
आज सरकार को इतिहास उठाना चाहिए और थानेश्वर को फिर से बसाने का प्रयास किया जाना चाहिए.
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