भारतीय टीम के स्वर्णिम इतिहास में महेन्द्र सिंह धोनी का बहुत बड़ा योगदान रहा है.
भारत ने इनके नेतृत्व में 2011 में दूसरी बार विश्वकप जीता और इसके साथ ही टी—20 में बादशाहत कायम की, लेकिन आजकल कैप्टन कूल के सितारे फीके पड़े हुए हैं.
आज हम आपको महेन्द्र सिंह धोनी की परेशानियाँ बता रहे है, जिन्हें पढ़कर आपको पता चल जाएगा कि उनके क्रिकेट करियर पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं –
महेन्द्र सिंह धोनी की परेशानियाँ –
1 – दमदार विराट कप्तानी
विराट कोहली 27 साल की कम उम्र में ही अपनी दमदार कप्तानी से अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अपने आलोचकों और प्रशंसकों की वाह—वाही लूटने में कामयाब रहे. विराट ने पिछले साल श्रीलंका टैस्ट सीरीज के साथ तीन मैचों में अपनी कप्तानी में जीत दर्ज कर दिखा दिया कि वह कोई भी काम करते हैं तो उसे पूरी शिद्दत के साथ अंजाम देते हैं. यह केवल उनकी रणनीति का हिस्सा है. उनकी कप्तानी में गुटबाजी की कोई जगह नहीं होती है. वह सबको मौका देने में यकीन रखते हैं फिर चाहे वह साहा हो या फिर रहाणे. हालांकि पिच और मीडिया में उनके आक्रामक रवैये को लेकर कई बार उन्हें आलोचनाओं का भी शिकार होना पड़ा. लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं है कि वह आज कैप्टन कूल से ज्यादा अच्छा टीम का नेतृत्व कर रहे हैं.
2 – रिद्धिमान साहा का बढ़ता ग्राफ
रिद्धिमान साहा जो विकेट किपिंग के साथ ही अपने बल्ले से रनों की बरसात करने के लिए जाने जाते हैं. अब दर्शक भी माही की तुलना में उन्हें ज्यादा पंसद करने लगे हैं, क्योंकि वह भी जानते हैं कि भारतीय टीम के सितारे केवल विकेट किपिंग से नहीं चमकेगें, बल्कि इसके लिए रन भी बनाने होंगे.
3 – टीम में एकजुटता
विराट की कप्तानी में टीम में एकजुटता नजर आती है, जो अब धोनी की कप्तानी में देखने को नहीं मिलती है. एकजुटता न होने के कारण ही कई मैच भारत के हाथ से निकल गए, जिसके कारण पूरे देश और मीडिया में टीम इंडिया की किरकिरी हुई.
4 – आर. अश्विन को मौका न देना
धोनी हाल ही में अश्विन को मौका देने से कतराते नजर आए, लेकिन विराट ने उन्हें मौका भी दिया और दिखाया कि वह कितने काबिल हैं. इसके आलावा विराट ने अन्य प्रतिभाशाली क्रिकेटरों को भी आगे आने को कहा जिससे वह अपने आपको सिद्ध कर सकें.
5 – बोर्ड के उच्च अधिकारियों का तल्ख रवैया
धोनी को अपने खराब नेतृत्व के चलते बीसीसीआई बोर्ड के उच्च अधिकारियों की नाराजगी को भी झेलना पड़ा. बोर्ड को भी ऐसा लगने लगा जैसे उन्होंने कैप्टन कूल पर हद से ज्यादा विश्वास जताकर अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली है.
6 – केवल अपने चहेतों को आगे करना
धोनी ने हमेशा से अपने चहेतों सुरेश रैना, रविंद्र जडेजा को ही टीम में प्रमुखता देने की कोशिश की. युवराज सिंह जो बेहद काबिल थे उन्हें विश्वकप का हिस्सा नहीं बनाया. इससे विराट कोहली और टीम के अस्थायी कोच रहे रवि शास्त्री के साथ उनकी कई बार मन मुटाव की खबरें मीडिया में चर्चा का विषय बनीं. इसके साथ ही टीम में चल रही राजनीति और ड्रेसिंग रूम की बातें भी बाहर निकल कर आने लगी. इन सबसे धोनी की बरसों पुरानी छवि खराब होने लगी और मांग उठने लगी की वह भी संन्यास लें ले ताकि टीम इंडिया की डूबती नैया पार हो सके.
7 – मीडिया पर अनायास गुस्सा निकालना
बांग्लादेश जैसी नई टीम का अनुभवी भारतीय टीम को हराना अपने आप में गर्व की बात है, लेकिन यह भारत के लिए दुखद स्थिति थी. माही का आत्मविश्वास अब डगमगाने लगा है. इसलिए वह बात – बात पर हार का ठीकरा बल्लेबाजों पर फोड़ते देखे गए. साथ ही उनके गुस्से का शिकार मीडिया को भी होना पड़ा. मीडिया का उन पर संन्यास लेने का दबाब बनाना कभी भी रास नहीं आया. वह चाहते हैं कि वह अब भी टीम का हिस्स बनें, लेकिन वर्तमान परिस्थितियां उनके प्रतिकूल जा रही हैं. अब दर्शकों, प्रशंसकों, बोर्ड, सीनीयर क्रिकेटरों को केवल युवा विराट टीम ही नजर आती है.
ये थी महेन्द्र सिंह धोनी की परेशानियाँ – ये महेन्द्र सिंह धोनी की परेशानियाँ हैं, जिनको पढ़ने के बाद साफ़ होने लगता है कि अब धोनी का बुरा समय आने वाला है. यह बात तो निश्चित है कि धोनी को बोर्ड अब एक या दो सीरीज में ही बेहतर कर दिखाने और खुद को साबित करने का मौका देगा और तब अगर धोनी अच्छा प्रदर्शन नहीं दिखाते हैं तो उनसे टीम की कमान ले ली जाएगी.
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