गांधीजी और चार्ली चैपलिन – आपने इंटरनेट पर गांधीजी और चार्ली चैपलिन का एक ब्लैक एंड वाइट फोटो देखा होगा. आज हम उस फोटो और उस मुलाकात की दिलचस्प बात बताने जा रहे है.
ये उस समय की बात है जब गांधीजी ने अपने स्वतंत्रता आंदोलनों से दुनिया भर में ख्याति अर्जित कर ली थी. उनकी पॉपुलैरिटी का आलम इस कदर था कि उनके लन्दन प्रवास के दौरान खुद चार्ली चैपलिन उनसे मिलने पहुँच गए.
ये बात 1931 की है जब गांधीजी गोलेमज वार्ता में शरीक होने के लिए लंदन गए थे. हालाँकि ये वार्ता तो सफ़ल नहीं हो पाई लेकिन गांधीजी अंग्रजों का दिल जीतने में सफ़ल रहे.
वहां पर गांधीजी किसी ऊँचे होटल में नहीं रुके, वे ईस्ट लंदन के एक पिछड़े इलाके में सामुदायिक किंग्सली हॉल के एक छोटे से कमरे में ठहरे थे. अब इस हॉल का नाम गाँधी फाउंडेशन रख दिया गया है. गांधीजी साधारण तरीके से रहते थे और लंदन प्रवास के दौरान भी वे ऐसे ही रहे वे करीब तीन महीने इस हॉल के एक छोटे से कमरे में रहे. गांधीजी के सादगीपूर्ण जीवन के चर्चे पूरे लंदन में उस वक्त चल रहे थे. उसी दौरान चार्ली चैपलिन भी अपनी फिल्म ‘सिटी लाइट्स’ के प्रमोशन के लिए लंदन में ही थे, और राजनीतिक पार्टियों और चर्चाओं में भाग ले रहे थे. तब उन्हें किसी ने सुझाया कि उन्हें गांधीजी से मिलना चाहिए.
उन्हें गांधीजी से मिलने के लिए 22 सितंबर 1931 का वक्त दिया गया. इस दिन गांधीजी कैनिंग टाउन में डॉक्टर चुन्नीलाल कटियाल के यहाँ जाने वाले थे.
आपको बता दें कि गांधीजी से मुलाकात का जिक्र चार्ली चैपलिन ने अपनी आत्मकथा में भी किया है.
चैपलिन ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि वे गांधीजी से मुलाकात के लिए कुछ समय पहले ही निर्धारित स्थान पर पहुँच गए थे. चैपलिन ने लिखा “अंततः जब वे (गांधीजी) पहुंचे और अपने पहनावे की तहें संभालते हुए टैक्सी से उतरे तो स्वागत में जयकारों की भारी गूंज उठ पड़ी. उस छोटी तंग बस्ती में अजब दृश्य था, जब एक बाहरी शख्स एक छोटे-से घर में जन-समुदाय के जय घोष के बीच दाखिल हो रहा था.” चैपलिन आगे लिखते है “गांधीजी से तो मैं उम्मीद नहीं कर सकता था कि मेरी किसी फिल्म पर बात शुरू करते हुए कहेंगे कि बड़ा मजा आया. ‘मुझे नहीं लगता था कि उन्होंने कभी कोई फिल्म देखी होगी.’ तो चैपलिन ने ही बात शुरू करते हुए कहा मैं स्वाधीनता के लिए भारत के संघर्ष के साथ हूँ, लेकिन आप मशीनों के खिलाफ क्यों है, उनसे तो दासता से मुक्ति मिलती है, काम जल्दी होता है और मनुष्य सुखी रहता है?”
चैपलिन की बातों का जवाब देते हुए गांधीजी ने मुस्कुराते हुए कहा “आप ठीक कहते है, मगर हमें पहले अंग्रेजी राज से मुक्ति चाहिए, मशीनों ने हमें अंग्रेजों का और गुलाम बनाया है. इसलिए हम स्वदेशी और स्वराज की बात करते है. हमें अपनी जीवन शैली बचानी है. हमारी आबोहवा ही आपसे बिलकुल जुदा है, ठंडे मुल्क में आपको अलग किस्म के उद्योग और अर्थव्यवस्था की जरूरत है.”
लेकिन चैपलिन तब हैरान रह गए तब गांधीजी ने अचानक कहा माफ़ कीजिये हमारी प्रार्थना का वक्त हो गया है और उन्होंने चैपलिन को कहा आप चाहे तो यही बैठे रहे. चैपलिन ने सोफे पर बैठे-बैठे देखा, गांधीजी और चार-पांच भारतीय पालथी मार कर बैठ गए और ‘रघुपति राघव…’ गाने लगे. इस चर्चा में चैपलिन गांधीजी विवेक, कानून की समझ, राजनीतिक दृष्टी, यथार्थवादी नज़रिए और अटल संकल्पशक्ति से अभिभूत हो गए.
बाद में उन्होंने गांधीजी से मुलाकात का जिक्र अपनी आत्मकथा में विस्तार से किया है.
ये थी गांधीजी और चार्ली चैपलिन की मुलाक़ात –
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