इस प्रकार लिखी महर्षि वाल्मीकि ने रामायण
रामायण के अनुसार एक बार महर्षि वाल्मीकि तमसा नदी के तट पर गए हुए थे. तभी वहां उन्होंने एक सारस पक्षी के जोड़े को प्रेम करते हुए देखा. वो दोनों पक्षी बेहद मधुर बोली बोल रहे थे. इतने में एक शिकारी ने उनमें से नर को मार डाला. जिससे मादा विलाप कर रोने लगी. उसके उस विलाप को देखकर महर्षि वाल्मीकि बहुत दुखी हुए. उनकी करुणा जाग उठी और उनके मुख से ये शब्द निकल पडे़.
मां निषाद प्रतिष्ठां तुम गमा शाश्वती समा:।
यत् क्रौंच मिथुनादेकमवधी: काममोहितम्।।
अर्थात – निषाद। तुझे जीवन में कभी शांति नहीं मिलेगी, क्योंकि तुमने एक क्रौंच के जोड़े में से एक की जान ली है. वह भी उस समय, जब वह काम से मोहित हो रहा था. बिना किसी अपराध के तुमने हमेशा के लिए उन्हें अलग कर दिया.
महर्षि वाल्मीकि को तभी ये एहसास हुआ कि अचानक हीं उनके मुख से एक श्लोक की रचना हुई है.
जब वो अपने आश्रम वापस गए तब भी उनका ध्यान अपने उस श्लोक पर ही था. उसी समय वाल्मीकि के आश्रम में ब्रम्हा जी का आगमन हुआ. उन्होंने वाल्मीकि से कहा कि आप के मुख से निकला छंद बोध वाक्य श्लोक का रूप ही रहेगा. मेरी प्रेरणा के कारण हीं आप के मुख से इस श्लोक की रचना हुई. अतः आप श्लोक रूप में हीं भगवान श्री राम के संपूर्ण जीवन का चित्रण करें.
इस तरह के कहने पर वाल्मीकि ने रामायण महाकाव्य की रचना की थी.
रत्नाकर से बने महर्षि वाल्मीकि
धर्म ग्रंथ हमें इस बात की जानकारी है वाल्मीकि का पूर्व नाम रत्नाकर था जो अपने परिवार की भरण – पोषण की खातिर लूट-पाट का काम किया करते थे.
एक बार वाल्मीकि निर्जन वन में नारद मुनि मिले थे. जब रत्नाकर ने नारद मुनि को लूटना चाहा, तो उन्होंने पूछा कि यह काम तुम क्यों करते हो? इसपर रत्नाकर ने कहा कि अपने परिवार के पालन – पोषण की खातिर. नारद मुनि ने फिर से पूछा कि इसके परिणाम स्वरुप जो तुम्हें पाप मिलेगा, क्या उसका दंड भुगतने में तुम्हारे परिवार के लोग तुम्हारा साथ निभायेंगे?
नारद मुनि के द्वारा किए गए इस सवाल ने रत्नाकर को झकझोर कर रख दिया.
वो जवाब जाने की खातिर अपने घर गए. अपने परिवार वालों से पूछने लगे कि क्या मेरे पाप में तुम लोग सहयोगी बनोगे?
इस बात को सुनकर परिवार वालों ने मना कर दिया. तब रत्नाकर ने नारद मुनि के पास वापस आकर यह बात बताई. नारद मुनि ने कहा की तुम जिनके लिए इस तरह के बुरे कर्मों को करते हो, वही तुम्हारे पाप के भागीदार नहीं बनेंगे. तो फिर क्यों तुम इस तरह के बुरे कर्मों को करते हो.
नारद मुनि की बातों ने रत्नाकर के दिमाग पर गहरा असर छोड़ा. हर बुरे कार्यों को छोड़कर वैराग्य का भाव उनके मन में आ गया. नारद मुनि से रत्नाकर ने अपने उद्धार के उपाय पूछे. इस पर नारद मुनि ने उन्हें राम राम का जाप करने को कहा. नारद मुनि के कहने के अनुसार रत्नाकर सुनसान जंगल में कहीं एकांत स्थान पर बैठकर राम राम जपने लगे. लेकिन अज्ञानतावश वो राम राम की जगह मरा-मरा का जाप करने लगे. कई वर्षों की तपस्या के बाद उनके पूरे शरीर पर चीटिंयों ने बांबी बना ली. इस कारण रत्नाकर का नाम वाल्मीकि पड़ गया और उन्होंने महाकाव्य रामायण की रचना की.
प्रचेता के पुत्र थे महर्षि वाल्मीकि
रामायण महर्षि वाल्मीकि ने स्वयं श्लोक संख्या7/93/17, 7/93/19 और अध्यात्म रामायण 7/93/31 मैं अपने आपको प्रचेता के पुत्र कहा है.
प्रचेतसोअहं दशम: पुत्रो राघवनंदन.
कुछ अन्य फैक्ट्स
रामायण में महर्षि बाल्मीकि ने कई जगहों पर नक्षत्रों की स्थिति का वर्णन किया है. साथ हीं महर्षि ने रावण की मृत्यु से पहले राक्षसी त्रिजटा के स्वप्न, श्रीराम के यात्रा कालिक मुहूर्त विचार, विभीषण द्वारा लंका के अपशकुन के बारे में विस्तार पूर्वक बताया. ये बात इस ओर इशारा करती है कि महर्षि वाल्मीकि ज्योतिष विद्या और खगोल विद्या के प्रकांड विद्वान थे.
भगवान श्री राम, लक्ष्मण और माता सीता जब वनवास के दौरान महर्षि वाल्मीकि के आश्रम गए थे.
श्रीरामचरितमानस के अनुसार —
देखत बन सर सैल सुहाए।
बालमीक आश्रम प्रभु आए॥
जब भगवान राम ने माता सीता का परित्याग कर दिया था, तब माता सीता को अपने आश्रम ही आसरा दिया था.
महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण महाकाव्य में 500 उपखंड तथा उत्तर सहित सात कांड, 24 हजार श्लोक हैं.
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