महाभारत युद्ध का आगाज़ आज से हज़ारों साल पहले हुआ था.
16 नवंबर 5561 ईसा पूर्व में शुरू हुए इस महाविनाशकारी युद्ध का अंत करीब 18 दिन बाद 2 नवंबर 5561 ईसा पूर्व को हुआ था.
महाभारत युद्ध में विनाशकारी दिव्य अस्त्रों और शस्त्रों का उपयोग किया गया था, जिनका एक वार ही पृथ्वी हाहाकार मचाने की क्षमता रखता था.
प्राचीन भारत में अस्त्र शब्द का प्रयोग उन हथियारों के लिए किया जाता था, जिन्हे मंत्रो द्वारा शक्ति प्रदान कर दूर से शत्रु पर फेंका जाता है.
वहीं शस्त्र शब्द का प्रयोग ऐसे हथियारों के लिए होता था जिनका प्रयोग शत्रु के निकट जाकर किया जाता था और शत्रु को चोंट पहुंचाई जाती थी.
हम आपको बताते हैं कुछ ऐसे ही महाविनाशकारी अस्त्रों और शस्त्रों के बारे में, जिनका इस्तेमाल हजारों साल पहले महाभारत के युद्ध में किया गया था.
यह संसार के रचियता परमपिता ब्र्ह्मा का अस्त्र है. यह अस्त्र अत्यधिक विकराल एवं अचूक है. इस अस्त्र का प्रयोग किसी पर किया तो यह शत्रु का नाश करके ही वापस लौटता है.
यदि इस अस्त्र का एक बार प्रयोग हो गया तो इसे तब तक नहीं रोका जा सकता जब तक इसे रोकने के लिए दूसरे ब्रह्माश्त्र का प्रयोग न किया जाए.
ब्रह्माश्त्र का प्रयोग महाभारत में अर्जुन और अश्वत्थामा के अलावा कर्ण जानता था. परन्तु अपने गुरु के श्राप के कारण कर्ण अपने आखिरी वक्त में इसके उपयोग की विद्या ही भूल गए.
ब्र्ह्मशिरा एक बहुत ही खतरनाक एवं महाविनाशकारी अस्त्र था. ऐसा कहा जाता है कि यह ब्रह्मास्त्र से भी कई गुना विनाशकारी था, और ब्रह्मा जी के चार सिरों के नाम पर इसका नाम ब्र्ह्मशिरा पड़ा था.
इसका प्रयोग महाभारत के युद्ध में हुआ था. कहा जाता है कि इसका प्रयोग कृष्ण और गुरूद्रोण के अलावा सिर्फ अर्जुन और अश्वत्थामा जानते थे. परंतु अश्वत्थामा को ब्र्ह्मशिरा के बारे में अधूरा ज्ञान था. वो इस अस्त्र को चलाना तो जानते थे परंतु वापस लेना नहीं जानते थे.
भगवान विष्णु के अस्त्र सुदर्शन चक्र को सबसे विनाशकारी अस्त्रों में गिना जाता है.
सबसे विध्वंसक सुदर्शन चक्र अपने लक्ष्य को पूरी तरह से तबाह करने की क्षमता रखता है.
भगवान विष्णु के आंठवे अवतार भगवान कृष्ण जब क्रोधित होते थे, तब दुर्जनों के संहार के लिए सुदर्शन चक्र का इस्तेमाल करते थे. महाभारत युद्ध में श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र का इस्तेमाल किया था.
वासवी शक्ति अस्त्र भी दूसरे महाविनाशकारी अस्त्रों के समान ही था. इसका सिर्फ एक बार ही प्रयोग हो सकता था. इसकी खासियत यह थी कि अगर इसे एक बार आपने शत्रु पर छोड़ दिया तो कोई भी उसे मृत्यु नहीं बचा सकता था.
वासवी शक्ति देवराज इंद्र का अस्त्र था जिसे एक बार दानवीर कर्ण ने अपने शत्रु अर्जुन के वध के लिए इंद्र से मांगा था. लेकिन कर्ण को वासवी शक्ति अस्त्र का प्रयोग न चाहते हुए भी अपने मित्र दुर्योधन के कहने पर अति शक्तिशाली योद्धा घटोत्कच पर करना पड़ा.
महादेव शिव का पाशुपत अस्त्र महाविनाशकारी अस्त्र है. इससे सम्पूर्ण विश्व का नाश कुछ ही पलो में हो सकता है. इस अस्त्र का इस्तेमाल सिर्फ दुष्टों के वध के लिए ही किया जा सकता है, नहीं तो यह पलट कर इस अस्त्र का प्रयोग करने वाले का ही वध कर देता था.
यह अस्त्र भी पाशुपत अस्त्र के समान ही अति विशाल एवं महाविनाशकारी है. यदि इस अस्त्र का प्रयोग एक बार किया जाता है तो समूर्ण संसार में कोई ऐसी शक्ति नहीं जो इसे रोक सके.
अपने सभी अस्त्र त्यागकर खुद को समर्पित कर देने के बाद ही इस अस्त्र को रोका जा सकता है, नहीं तो यह अस्त्र अपने शत्रु को कहीं से भी ढूंढकर मारने की क्षमता रखता है.
गौरतलब है कि हज़ारों साल पहले महाभारत युद्ध में इस्तेमाल किए गए ये सारे अस्त्र-शस्त्र आज के परमाणु और अणु बम से भी ज्यादा विनाशकारी थे, जो पल भर में धरती पर हाहाकार मचा सकते थे.
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