यूं तो भारतीय राजनीति में कई विपक्षी नेता ऐसे हुए हैं जिनके सवालों से सत्ता पक्ष हमेशा ही बचता रहा है.
लेकिन इनमें एक नाम ऐसा था जिसे संसद में प्रवेश करते देख कांग्रेसी सांसदों को सांप सूंघ जाता था. वह शख्स नाम है मधु लिमये. बताया जाता है कि जब कागजों का पुलिंदा बगल में दबाए मधु लिमये संसद में प्रवेश करते थे तो ट्रेजरी बेंच पर बैठने वालों की सिट्टी पिट्टी गुम हो जाया करती थी.
कांग्रेसी मंत्रियों को लगता था न जाने आज किसकी शामत आने वाली है. उनके पिटारे में कोई न कोई ऐसा दस्तावेज या सवाल होता था जिसका जवाब उनके पास नहीं होता. अगर होता भी था तो उनका डर बना रहता था कि कहीं लिमये इसके आगे कुछ न पूछ दें, जिससे उनकी किरकिरी हो जाए.
समाजवादी आंदोलन के नेताओं में से एक मधु लिमये का ऐसा ही खौफ था. मधु लिमये से इंदिरा गांधी ही नहीं बल्कि उनकी पार्टी के लोग भी डरते थे. समाजवादियों को भी डर लगा रहता था कि पता नहीं सत्ता पाने के लिए की जाने वाला कौन सा काम मधु लिमये को नागवार गुजरें.
इस कारण उनके अपने ही दल के बहुत से लोगों को उनसे चिढ़ भी हुआ करती थी. कुछ तो ये भीे लगता था कि 1979 में उनका बना बनाया खेल लिमये की वजह से बिगड़ गया. तब जनता पार्टी की मोरारजी देसाई की सरकार गिर गई थी.
उनको नजदीक से जानने वाले बताते हैं, मधु लिमये जीवन पर्यंत एक योद्धा की तरह रहे. इसकी शिक्षा उन्हें आजादी के आंदोलन के दौरान ही मिल गई थी. जब वो 14-15 साल की उम्र में आजादी के आंदोलन में कूछ पड़े थे. जब 1944 में विश्व युद्ध खत्म हुआ वे तब जेल छूटे और जब गोवा की मुक्ति का सत्याग्रह शुरू हुआ तो उसमें वो फिर जेल गए और उन्हें बारह साल की सजा हुई.
कहते हैं कि मधु लिमये का मानना था कि सांसदों को पेंशन नहीं मिलनी चाहिए. यही कारण था के उन्होंने न तो अपनी सांसद की पेंशन नहीं ली बल्कि अपनी पत्नी को भी कहा कि उनकी मृत्यु के बाद वो पेंशन के रूप में एक भी पैसा न लें.
मधु लिमये की ईमानदारी की एक ओर मिसाल है कि जब 1976 में इंदिरा गांधी ने आपातकाल के दौरान संसद का कार्यकाल एक साल के लिए बढ़ा दिया तो, जैसे ही लोकसभा के पांच साल पूरे हुए उन्होंने लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया.
दरअसल, मधु लिमये ने दुनिया को बताया कि संसद में बहस कैसे की जाती है. वो प्रश्न काल और शून्य काल के अनन्य स्वामी हुआ करते थे. जब भी जीरो आवर होता, सारा सदन सांस रोक कर एकटक देखता था कि मधु लिमये अपने पिटारे से कौन-सा नाग निकालेंगे और किस पर छोड़ देंगे.
कहा जता है कि जबरदस्त प्रश्न पूछना और मंत्री के उत्तर पर पूरक सवालों की मशीनगन से सरकार को ढेर कर देना मधु लिमये के लिए बाएं हाथ का खेल था.