इश्क का रोग – लोग भले ही इश्क को आग का दरिया कहें पर फिर भी इसमें कूदने से वे हिचकिचाते नहीं.
इश्क में इंसान अपना दिल ही नहीं बल्कि अपना दिमाग भी हार बैठता है. वहीं, हाल ही में अमेरिका स्थित सिराक्यूज़ यूनिवर्सिटी के मनोवैज्ञानिकों ने प्यार के लिए इंसान के दिमाग को भी दिल जितना ही कुसूरवार ठहराया है. मनोवैज्ञानिकों के अनुसार, आशिकों का दिल किसी पे लगने में सिर्फ एक सेकेंड के पांचवे हिस्से जितना ही वक़्त लगता है. फिर इसके बाद उनके दिमाग में कुछ ऐसे रसायनों का उत्पादन होता है जिससे उन्हें नशे जैसा सुकून मिलता है. प्रमुख शोधकर्ता स्टेफनी का कहना है कि जब कोई व्यक्ति किसी से प्यार करता है तब उसके मस्तिष्क के 12 हिस्से एक के बाद एक डोपामाइन, ऑक्सीटोसिन, एड्रेनालाईन एवं वैसोप्रेशन जैसे रसायनों का स्त्राव करने लगते हैं.
इसी के साथ उन्होंने ये भी बताया कि प्यार में डूबे इंसान के सोच-विचार, हाव-भाव और चाल-ढाल में भी बदलाव देखने को मिलता है.
इश्क के रोग की अगर पड़ताल की जाए तो इसके कई कारण मालूम पड़ सकते हैं जैसे कॉलेज की टाइमिंग का मैच होना, गलियों की नजदीकियां या बालों का रेशमी और लम्बे होना, दोनों की पसंद अदरक की चाय होना या फिर उसके मुस्कुराने पर आपका भी मुस्कुरा देना.
अब जब इनमें से कोई भी आपके दिल को खास लगने लगे तो फिर प्यार की घंटियां तो बजने ही लगेंगी.
इसे अमूमन ‘लॉज़ ऑफ इंटरपर्सनल अट्रैक्शन’ भी कहा जाता है. हमारे दोस्तों ने कहा कि हिम्मत करके जा बोल दे. फिर हमें कुछ ज्ञानियों ने समझाया भी कि रिक्वेस्ट करना हमारा अधिकार है और उसकी हां में तब्दील होना हमारा नसीबI इसी बीच अगर हां में हां मिल जाए तो होली, दिवाली, न्यू इयर सब रोज़ ही मनने लगता है और अगर खाते में न मिले तो जिम के बिना वज़न कम होने लगता है, कॉन्फिडेंस में कमी आ जाती है, नींद थोड़ी ज़्यादा आने लग जाती है, अपना भविष्य थोड़ा अंधकारमय नज़र आने लगता है और दोस्तों से भी बात करने का मन नहीं करता.
साइकोलॉजिस्ट ने इसे डिप्रेशन नाम दिया हैI इसे इश्क का रोग कहते है –
हम सब जिंदगी फेज़ में जीते हैं जिसमें एक फेज़ के ख़त्म होने का मतलब पूरी जिंदगी का ख़त्म हो जाना बिल्कुल नहीं होताI अगर एक फेज़ का फोकस इश्क था तो अब नए फेज़ का मतलब करियर या परिवार आदि हो सकता है. क्योंकि अगर हम प्यारे बने रहेंगे तो प्यार खुद हमारी ज़िन्दगी में आएगा.
इश्क का रोग अगर महसूस किया जाए तो एक खुशनुमा एहसास है. प्यार एक अद्भुत अनुभव है जो व्यक्ति को खुद के ख़ास होने की अनुभूति देता है. पर इसमें कभी-कभार गलतियां भी हो जाती हैं जब इश्क में अधिकार भाव के सिवा स्वतंत्रता, सम्मान, आपसी समझ, परवाह, एक-दूसरे पर विश्वास और संवेदनशीलता नहीं रह जातीI ये सभी भावनाएं इंसान प्यार के साथ चाहता है क्योंकि यही मिलके व्यक्ति के जीवन एवं व्यक्तित्व को संवारती हैं. वैसे भी प्यार का मतलब सिर्फ प्यार करना ही नहीं बल्कि सामने वाले व्यक्ति को समझना, उसकी परवाह करना और सम्मान देना भी है. प्यार तो सिर्फ पहली सीढ़ी होती है और वहीं, रिश्तों की सफलता शिखर. पहली सीढ़ी से लेकर शिखर तक पहुंचने के बीच ठेरों पड़ाव पार करने होते हैं तभी एक रिश्ते को सफलता की बुनियाद मिलती है.
इश्क का रोग – इश्क का मतलब सुरक्षा का भाव, सपने देखने की स्वतंत्रता, एक-दूजे की आँखों में सम्मान देखने और पाने की अभिलाषा है. प्यार तो वो है जो एक व्यक्ति को केवल ज़हनी तौर पर ही नहीं बल्कि भौतिक एवं सामाजिक तौर पर भी ख़ास होने की अनुभूति करवाए. वैसे भी दुनिया चाहे कुछ भी कहे पर इश्क करना बुरा नहीं क्योंकि देखा जाए तो इससे भी हमारा भावनात्मक विकास होता है या यूं कहें कि इससे हमारा इमोशनल कोशेंट बढ़ता है. फिर आखिर में फैसला तो आप ही को करना है कि इश्क के इस आग के दरिये में आप डूबना चाहेंगे या नहीं.