भगवान शिव की महिमा निराली है.
ना जाने वह किस भक्त पर कब प्रसन्न हो जाते हैं और चले आते हैं उसको दर्शन देने. वहीँ शिव की मौज में भक्त को परीक्षा भी देनी होती है.
इसी प्रकार जब श्री राम जी रावण से युद्ध कर वापस अपने राज्य में लौटे थे तो इस ख़ुशी में उन्होंने एक भोज का आयोजन किया था. इसी अवसर पर भगवान शिव भी अपने भक्तों की परीक्षा लेने वहां ब्राह्मण के रूप में हाजिर हुए थे.
तो आइये जानते हैं क्या हुआ जब सबकी परीक्षा शुरू हुई तो-
ब्राह्मण रूप में शिव जी भोजन करने बैठे तो सबसे पहले यहाँ भोजन की कमी हो गयी थी. यह देख राम, हनुमान और लक्ष्मण सभी को हैरानी हुई. लेकिन एक ब्राह्मण आयोजन से भूखा जाये तो यह किसी को रास नहीं आ रहा था. श्रीराम तो सब कुछ जानते हीं थे, उन्होंने मुस्कुराते हुए लक्ष्मण से देवी सीता को बुला लाने के लिए कहा.
सीता जी वहाँ आयी और ब्राम्हण वेश में बैठे भगवान शिव का अभिवादन किया. श्रीराम ने मुस्कुराते हुए सीता जी को सारी बातें बताई और उन्हें इस परिस्थिति का समाधान करने को कहा. सीता जी अब स्वयं महादेव को भोजन कराने को उद्धत हुई. उनके हाथ का पहला ग्रास खाते हीं भगवान शिव संतुष्ट हो गए.
भोजन के बाद शिव जी ने कहा कि ज्यादा भोजन करने की वजह से वह खुद उठने में समर्थ नहीं हैं कोई उन्हें उठाकर लेटा दे ताकि अब वह आराम कर सकें.
हनुमान जी जब हुए फेल…
शिव जी की इस आज्ञा का पालन करने के लिए हनुमान जी आगे बढ़े लेकिन वह महाबली हनुमान जो अब तक सब कुछ करते हुए आये थे वह शिव रूप में ब्राह्मण को उठाने में असमर्थ हो जाते हैं.
तब लक्ष्मण जी सभी देवों का ध्यान करते हुए शिव को उठाकर लेटा देते हैं. तब ब्राह्मण श्री राम जी को अपनी सेवा की आज्ञा देते हैं और श्री राम जी सेवा में लग जाते हैं.
माता सीता के ऊपर कुल्ला कर देना…
कुछ देर में माता सीता जल का लौटा लेकर ब्राह्मण के पास आती हैं और ब्राह्मण आधा पानी पीकर, कुछ पानी का कुल्ला सीता जी पर कर देते हैं.
सीता ने हाथ जोड़ कर कहा कि हे ब्राम्हणदेव, आपने अपने जूठन से मुझे पवित्र कर दिया. ऐसा सौभाग्य तो बिरलों को प्राप्त होता है. ये कहते हुए देवी सीता उनके चरण स्पर्श करने बढ़ी, तभी महादेव उपने असली स्वरुप में आ गए. महाकाल के दर्शन होते हीं सभी ने करबद्ध हो उन्हें नमन किया.
भगवान शिव ने श्रीराम को अपने ह्रदय से लगते हुए कहा कि आप सभी मेरी परीक्षा में उत्तीर्ण हुए. ऐसे कई अवसर थे जब किसी भी मनुष्य को क्रोध आ सकता था किन्तु आपने अपना संयम नहीं खोया.
इसके बाद कहते हैं कि माता सीता जी की विनती पर शिव भगवान इसी राज्य में श्रीराम जी की सभा में सबको कथा सुनाते थे.
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