सावन के पावन मास पर भोलेनाथ को पूजने की परंपरा सदियों से चली आ रही हैं.
भगवान् शिव देव के देव महादेव कहे जाते हैं, उनसे जुड़ी हर बात उनके भक्तो को उत्साहित करती हैं.
इस कड़ी में हम आज आप को भगवान् शिव के श्रृंगार और उनके द्वारा धारण किये जाने वाले वस्त्र की दिलचस्प बातें बताएँगे.
भोलेनाथ का जब स्मरण आता हैं तो हमारे दृष्टिपटल पर उनके भस्म लगे शरीर, जिसमे उनके चंदमा, त्रिशूल, डमरू, गले में लिपटा नाग आदि याद आते हैं.
आज हम इन्ही सब के बारे में आप को जानकारी देंगे.
1. जटाएं-
भगवान शिव की जटाएं अन्तरिक्ष कहा गया हैं अर्थात भगवान् शिव को आकाश का देवता कहा जाता हैं और आकाश में व्याप्त वायुमंडल को ही शिव की फैली जटाओं का रूप कहा गया हैं. भगवान् शिव का इसलिए एक और नाम व्योमकेश भी हैं.
2. चन्द्रमा-
चन्द्रमा को मन का कारक कहा जाता हैं और शिव के चन्द्रधारण को मन की इच्क्षाओं के नियंत्रक के रूप में देखा जाता हैं.
3. गंगा-
भगवान् शिव की जटाओं में माता गंगा बैठती हैं. इस बात के पीछे एक कहानी ये हैं कि जब गंगा मैय्या को धरती पर लाने की बात हुई तो यह समस्या उत्पन्न हो गयी कि उनके तीव्र वेग को सीधे धरती में उतारा गया तो वह धरती चिर कर पाताल में उतर जायेंगी, तब भगवान शिव ने उन्हें अपनी जटाओं में उतारने की बात कही थी.
4. त्रिपुंड तिलक-
भगवान् शिव के माथे पर हम सब ने तीन लकीरों के साथ मध्य भाग में एक लाल बिंदु वाला तिलक देखा हैं. कहा जाता हैं कि माथे में हमारी भ्रिकुटीयों के बीच एक केंद्र होता हैं जहाँ से सबसे अधिक उर्जा निकलती हैं और इस तिलक से उस उर्जा को रोककर उसके उपयोग के लिए शरीर में ही रखा जाता हैं.
5. त्रिनेत्र-
भोलेनाथ का एक और नाम त्रिलोचन भी हैं, जिसका मतलब तीन आँखों वाला. कहा जाता हैं इंसानी शरीर में 5 तरह की इन्द्रिया काम करती हैं लेकिन इन पांच इन्द्रियों के अलावा एक छठी इंद्री भी होती हैं. भगवान् शिव की यह नेत्र उसी का प्रतीक मन गया हैं. यह तीसरी नेत्र आधी खुली और आधी बंद होती हैं जिसके बारे में यह मान्यता हैं कि सांसारिक जीवन में रहते हुए भी ध्यान साधना ज़रूरी हैं.
6. नाग-
भगवान् शिव के गले में हमेशा एक नाग लिपटा होता हैं. ऐसी मान्यता हैं कि नागवंशियों का शिव से अधिक लगाव हैं. जहाँ शेष नाग भगवान विष्णु के सेवक बने वहीँ यह आगे चल कर वासुकि बने जो भगवान् शिव के सेवक हुए. नाग वासुकि कुल से ही आते हैं.
7. रुद्राक्ष-
शंकर भगवान् के गले और हाथों में रुद्राक्ष की माला होती हैं. रुद्राक्ष को सकारात्मक उर्जा प्रतीक कहा जाता हैं. इसलिए भगवान शिव इसे अपने गले और भुजाओं में धारण करते हैं.
8. डमरू-
भगवान् शिव को संगीत का जनक कहा जाता हैं इसलिए इनके हाथो में डमरू होता हैं. लेकिन इस डमरू वादन की खास वजह यह हैं कि इससे जो नाद उत्पन्न होता हैं वह पूरे ब्रह्माण्ड में व्याप्त हैं, जिसे हम ॐ भी कहते हैं.
9. त्रिशूल-
भगवान् शिव के इस अस्त्र में तीन शक्तियां होती हैं सत, रज और तम और इसे तीन तरह के कष्ट दैनिक, दैविक और भौतिक दूर होते हैं.
10. भस्म और व्याघ्र छाल-
भोलेनाथ को महकलेश्वेर भी कहा जाता हैं और उन्हें भस्म चढ़ाया जाता हैं. जब मनुष्य की मृत्यु होती हैं तब उसका भी शरीर इस भस्म के रूप में ही बचता हैं और इस आदि सत्य को हमें स्वीकार करना ही पड़ेगा. वही व्याघ्र और हस्ती चल को अहंकार का प्रतीक बता कर उन्हें नष्ट करना ज़रूरी हैं.
इन वेशभूषाओं के साथ भगवान् शिव के साथ उनका वाहन नंदी भी होता हैं. उसके चार पैर धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का प्रतीक माने गए गए. इस संसार में इन चारों को अपने साथ रखना महत्वपूर्ण कहा गया हैं.
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