जिसकी आराधना मात्र से जीवन सफल हो जाए, जीवन की सारी बाधाएं टल जाएं, जीवन ख़ुशियों से भर जाए और मन शिद्ध हो जाए. ऐसे भोलेनाथ को देखकर भला कोई बेहोश भी हो सकता है.
ये बात थोड़ी अजीब लगती है.
आप यक़ीन माने या न माने, लेकिन सत्य तो यही है.
आख़िर किस मौक़े पर भगवान को देखकर माता पार्वती की मां मैना देवी बेहोश हो गईं.
बड़ी ही रोचक कथा है ये. बात उस समय की है जब भगवान शिव माता पार्वती को ब्याहने के लिए जा रहे थे. बड़े ही धूम-धाम से शिव की बारात कैलाश से निकली. बारात में नंदी, क्षेत्रपाल, भैरव आदि गणराज भी थे. ये सभी तीन नेत्रों वाले थे. सबके मस्तक पर चंद्रमा और गले में नीले चिन्ह थे. सभी ने रुद्राक्ष के आभूषण पहन रखे थे. सभी के शरीर पर उत्तम भस्म लगी हुई थी. इन गणों के साथ शंकरजी के भूतों, प्रेतों, पिशाचों की सेना भी आकर सम्मिलित हो गई. इनमें डाकनी, शाकिनी, यातुधान, वेताल, ब्रह्मराक्षस आदि भी शामिल थे. इन सभी के रूप-रंग, आकार-प्रकार, चेष्टाएँ, वेश-भूषा, हाव-भाव आदि सभी कुछ अत्यंत विचित्र थे.
भगवान शिव के ये बाराती जब मैना देवी – भगवान शिव की सास – के द्वार पहुंचे, तो ख़ुशी के मारे सभी दूल्हे को देखने के लिए आतुर हो रही थीं.
उन सबके बीच से मैना देवी – भगवान शिव की सास – हाथों में आरती की थाल लिए अपने दामाद को देखने के लिए पहुंची. नील कंठ, गले में सांप, शरीर पर भस्म और इस अनोखे तरह के बाराती को देखकर मैना देवी के हाथ से आरती की थाल नीचे गिर जाती है और वे बेहोश हो जाती हैं.
भगवान शिव की सास – मैना देवी को बेहोश देखकर भगवान शिव सब कुछ समझ जाते हैं.
मैना देवी को उनके कमरे में लाया जाता है. जब उन्हें होश आता है, तो अपने पति को भला-बुरा कहते हुए वो माता पार्वती को चूमते हुए कहती हैं कि मेरी पुत्रि के लिए ये कैसा वर खोजा है आपने. कैसे रहेगी वो उनके साथ. मैना देवी ने भगवान शिव और मैना देवी के विवाह प्रस्ताव को टाल दिया. उन्होंने बारात को वापस जाने को कहा.
ऐसा देखकर पार्वती जी ने शिव से आराधना की कि वो अपने सामान्य रूप में आएं.
माता पार्वती की आराधना से भगवान ने अपना रूप साधारण किया और बारातियों को भी. तब एक बार फिर से भगवान शिव की सास मैना देवी बाहर आईँ और अब वो भगवान शिव को देखकर बहुत प्रसन्न हुईं.
ये कथा सच में बहुत ही रोचक थी.
भोलेनाथ को देखकर भी कोई बेहोश हो जाए और अपना दामाद बनाने से इंकार करे, ये तो तभी संभव है, जब ख़ुद भगवान अपनी लीला कर रहे हों. ये शिवजी की लीला ही थी. वो माता पार्वती की मां को सत्य का आभास कराना चाहते थे.
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