सदियों से शिवलिंग के रुप में भगवान शिव की पूजा जा रही है.
लेकिन क्या आप जानते हैं कि भगवान शिव और शक्ति को एक साथ प्रसन्न करने के लिए भगवान शिव के अर्धनारीश्वर स्वरुप की आराधना की जाती है.
अर्धनारीश्वर स्वरुप का अर्थ है आधी स्त्री और आधा पुरुष.
भगवान शिव के इस अर्धनारीश्वर स्वरुप के आधे हिस्से में पुरुष रुपी शिव का वास है तो आधे हिस्से में स्त्री रुपी शिवा यानि शक्ति का वास है. स्त्री और पुरुष एक ही सिक्के के दो पहलु हैं और दोनों एक दूसरे के बिना अधूरे हैं.
ये कहा जाता है कि भगवान शिव ने सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्मा को अर्धनारीश्वर रुप में दर्शन दिया था.
लेकिन यहां सवाल यह है कि आखिर किस वजह से भगवान शिव को अर्धनारीश्वर का रुप लेना पड़ा.
दरअसल इस सवाल का विस्तार से जवाब शिवपुराण की एक पौराणिक कथा में मिलता है.
शिवपुराण की कथा के मुताबिक
पौराणिक कथा के अनुसार जिस वक्त ब्रह्मा जी को सृष्टि के निर्माण का ज़िम्मा सौंपा गया था, तब तक भगवान शिव ने सिर्फ विष्णु और ब्रह्मा जी को ही अवतरित किया था. उस वक्त किसी नारी की उत्पति नहीं हुई थी.
जब ब्रह्मा जी ने सृष्टि के निर्माण का काम शुरु किया, तब उन्होंने पाया कि उनकी सभी रचनाएं तो जीवनोपरांत नष्ट हो जाएंगी और हर बार उन्हें नए सिरे से सृजन करना होगा.
उनके सामने यह दुविधा थी कि इस तरह से सृष्टि की वृद्धि आखिर कैसे होगी. तभी एक आकाशवाणी हुई कि वे मैथुनी (प्रजनन) सृष्टि का निर्माण करें ताकि सृष्टि को बेहतर तरीके से संचालिक किया जा सके.
अब उनके सामने एक नई दुविधा थी कि आखिर वो मैथुनी सृष्टि का निर्माण कैसे करें?
काफी सोच-विचार करने के बाद भी जब वे किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सके तो वे शिव की शरण में पहुंचे और शिव को प्रसन्न करने के लिए ब्रह्मा जी ने कठोर तपस्या की. उनके तप से भगवान शिव प्रसन्न हुए.
अर्धनारीश्वर स्वरुप में प्रकट हुए भगवान शिव
ब्रह्मा जी के तप से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने अर्धनारीश्वर स्वरुप में दर्शन दिया.
जब उन्होंने इस स्वरुप में दर्शन दिया तब उनके शरीर के आधे भाग में साक्षात शिव नज़र आए और आधे भाग में स्त्री रुपी शिवा यानि शक्ति. अपने इस स्वरुप के दर्शन से भगवान शिव ने ब्रह्मा को प्रजननशिल प्राणी के सृजन की प्रेरणा दी.
उन्होंने ब्रह्मा जी से कहा कि मेरे इस अर्धनारीश्वर स्वरुप के जिस आधे हिस्से में शिव हैं वो पुरुष है और बाकी के आधे हिस्से में जो शक्ति है वो स्त्री है. आपको स्त्री और पुरुष दोनों की मैथुनी सृष्टि की रचना करनी है, जो प्रजनन के ज़रिए सृष्टि को आगे बढ़ा सके.
इस तरह शिव से शक्ति अलग हुईं और फिर शक्ति ने अपनी मस्तक के मध्य भाग से अपने ही समान कांति वाली एक अन्य शक्ति को प्रकट किया.
इसी शक्ति ने फिर दक्ष के घर उनकी पुत्री के रूप में जन्म लिया, जिसके बाद से मैथुनी सृष्टि की शुरुआत हुई और विस्तार होने लगा.
भगवान शिव ने ब्रह्मा जी को मैथुनी सृष्टि के निर्माण के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से अर्धनारीश्वर स्वरुप में दर्शन दिया था. लेकिन उनके इस स्वरुप का अर्थ यह भी है कि स्त्री और पुरुष दोनों एक समान हैं और दोनों में किसी भी तरह का भेदभाव करना गलत है.