Categories: विशेष

भोलेनाथ क्यों करते हैं तांडव नृत्य?

त्रिदेवों में यदि किसी देव को सबसे शक्तिशाली माना जाता हैं, तो वह भोलेनाथ भगवान् शंकर ही हैं.

यदि भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की हैं, तो इस सृष्टि में संहार और नियंत्रण बनाना भगवान् शिव के हाथों में हैं.

भगवान् शिव हर बार कई अवतार धारण कर के संसार के समस्त प्राणियों को कोई न कोई सिख देने के लिए आते हैं फिर वह चाहे हरिहर स्वरूप में आये या फिर अर्धनारेश्वर का रूप धारण करने की बात हो. उनके हर अवतार के पीछे एक वजह ज़रूर छिपी होती हैं.

जहाँ भगवान् शंकर के हरिहर स्वरूप की उत्पत्ति शैव सम्प्रदाय और वैष्णव सम्प्रदाय के बीच हुए विवादों के निपटारें के लिए हई थी, वही भोलेनाथ द्वारा धारण किये गए अर्धनारेश्वर अवतार को धारण कर भगवान् शिव लोगो को यह बताने चाहते थे कि नर-नारी दोनों एकदुसरे के पूरक हैं, दोनों को एकदूसरे की ज़रूरत समान रूप से हैं क्योकि दोनों एकसाथ रहकर ही स्वयं को पूर्ण कर पाते हैं.

इसी तरह भगवान् शिव का एक रूप नटराज हर जगह पूजनीय और सर्वमान्य हैं.

लेकिन क्या आप जानते हैं कि भगवान शिव ने नटराज का रूप क्यों धारण किया और इस रूप को धारण करने के बाद तांडव नृत्य क्यों किया?

आईएं आज आप को बताते हैं. भगवान शिव और उनके तांडव नृत्य से जुड़ी एक दिलचस्प जानकारी.

नटराज का शाब्दिक अर्थ होता हैं नृत्य करने वाला सम्राट या पुरे संसार के सभी नृत्य करने प्राणियों का नेतृत्व करने वाला व्यक्ति जो सृजन भी करता हैं और विनाश भी करता हैं. दरअसल भगवान् शिव के नटराज स्वरुप की उत्पत्ति “आनंदम तांडव” से जुड़ी हुई हैं. भगवान् शिव के इस नटराज अवतार के पीछे दो मान्यताएं हैं.

पहली दक्षिण भारत के चोला साम्राज्य से जुड़ी हैं और दूसरी मान्यता पल्लव वंश के समय से जुड़ी हुई हैं.

आप सब ने भगवान् शिव के नटराज स्वरूप को देखा ही हैं, जिसमे वह एक बौने राक्षस के उपर बिलकुल मंत्रमुग्ध होकर नृत्य कर रहे हैं.

इस मुद्रा में उस बौने राक्षस को अज्ञानता का प्रतीक माना गया हैं और अपनी इसी अज्ञानता पर विजय प्राप्त करना ही हर प्राणी का लक्ष्य होना चाहियें और यही आनंदम तांडव कहा जाता हैं.

इसी तरह भगवान् शिव के कंधे के करीब बायीं ओर अग्नि दिखाई देती हैं, जिसे विनाश का प्रतीक कहा जाता हैं.

इस अग्नि का यह प्रतीक हैं कि अप्रिय सर्जना को इस अग्नि से नष्ट कर दीजियें. इसी तरह भगवान शिव का  दूसरा उठा हुआ हाथ और एक पैर स्वतंत्रता और उठान का प्रतीक हैं और भगवान् शिव का लयबद्ध होकर अपनी गति में नृत्य करना यही बताता हैं कि जीवन गति के बिना कुछ नहीं हैं, लेकिन गति में भी लय होना आवश्यक हैं ताकि गति नियंत्रण में रहे.

भगवान शिव का नटराज रूप धारण कर उनके द्वारा किया गया तांडव नृत्य अज्ञानता और अहंकार पर विजय के प्रतीक के रूप में दिखाया गया हैं और हिन्दू धर्म में भोलेनाथ की इस विचारधारा को जीवन में उतारने की सलाह भी दी जाती हैं.

Sagar Shri Gupta

Share
Published by
Sagar Shri Gupta

Recent Posts

Jawaharlal Nehru के 5 सबसे बड़े Blunders जिन्होंने राष्ट्र को नुकसान पहुंचाया

भारत को आजादी दिलाने में अनेक क्रांतिकारियों ने अपने जीवन का बलिदान दिया था, पूरे…

5 years ago

Aaj ka Rashiphal: आज 3 अप्रैल 2020 का राशिफल

मेष राशि आप अपने व्यापार को और बेहतर बनाने के लिए तत्पर रहेंगे. कार्यक्षेत्र में…

5 years ago

डॉक्टर देवता पर हमला क्यों? पढ़िए ख़ास रिपोर्ट

भारत देश के अंदर लगातार कोरोनावायरस के मामले बढ़ते नजर आ रहे हैं. डॉक्टर्स और…

5 years ago

ज्योतिष भविष्यवाणी: 2020 में अगस्त तक कोरोना वायरस का प्रकोप ठंडा पड़ जायेगा

साल 2020 को लेकर कई भविष्यवाणियां की गई हैं. इन भविष्यवाणियों में बताया गया है…

5 years ago

कोरोना वायरस के पीड़ित लोगों को भारत में घुसाना चाहता है पाकिस्तान : रेड अलर्ट

कोरोना वायरस का कहर लोगों को लगातार परेशान करता हुआ नजर आ रहा है और…

5 years ago

स्पेशल रिपोर्ट- राजस्थान में खिल सकता है मोदी का कमल, गिर सकती है कांग्रेस की सरकार

राजस्थान सरकार की शुरू हुई अग्नि परीक्षा उम्मीद थी कि सचिन पायलट को राजस्थान का…

5 years ago