दोस्ती का संदेश – द्वापर युग में भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण की दीवानी सिर्फ राधा और गोपियां ही नहीं थीं. जिस तरह से भगवान कृष्ण में समस्त गोपियों के प्राण बसते थे. ठीक उसी प्रकार श्रीकृष्ण के प्राण अपने मित्रों में बसते थे. वो अपने मित्रों के साथ अपनी मित्रता को बहुत ही अच्छी तरह से निभाते थे.
श्रीकृष्ण और सुदामा की दोस्ती को भला कौन नहीं जानता है. यही वजह है कि आज भी कृष्ण और सुदामा की दोस्ती की मिसाल पेश की जाती है.
तो चलिए सुदामा के अतिरिक्त उनके और चार दोस्तों के बारे में बताएंगे जिनके जरिए श्रीकृष्ण ने पूरी दुनिया को दोस्ती का सही अर्थ बताया और दोस्ती का संदेश दिया.
दोस्ती का संदेश –
1- सुदामा
श्रीकृष्ण और सुदामा ने संदीपन ऋषि के आश्रम में एक साथ पढ़ाई की थी. सुदामा हमेशा श्रीकृष्ण से चुराकर चने खाते थे और उन्हें नहीं देते थे. जब श्रीकृष्ण उनसे इस बारे में पूछते तो सुदामा ये कहते कि उनके दांत ठंड से किटकिटा रहे हैं.
वही सुदामा काफी निर्धन हो गए लेकिन गरीब होने के बाद भी वो कभी श्रीकृष्ण के पास सहायता मांगने के लिए नहीं गए. बाद में जब सुदामा की पत्नी ने उनपर दबाव डाला तो वो अपने साथ चिवड़ा लेकर श्रीकृष्ण से मिलने पहुंचे.
श्रीकृष्ण ने सुदामा को देखते ही गले से लगा लिया और साथ में लाए गए चिवड़े को अकेले ही खा गए लेकिन उन्हें कुछ दिया नहीं. बाद में श्रीकृष्ण से भेंट करके जब सुदामा वापस लौटे तो देखा कि उनकी छोटी सी कुटिया आलीशान महल बन चुकी थी. इस तरह से श्रीकृष्ण ने दोस्ती के बीच अमीरी और गरीबी के फासले को दूर करके दोस्ती की अनोखी मिसाल पेश की.
2- अर्जुन
महाभारत के युद्द में श्रीकृष्ण ना सिर्फ अर्जुन के सारथी बने बल्कि दोनों के बीच दोस्ती भी काफी गहरी थी. अर्जुन की मां कुंती रिश्ते में श्रीकृष्ण की बुआ लगती थीं. दोनों एक दूसरे के बहुत अच्छे मित्र थे, अगर कोई एक मुसीबत में फंसता तो दूसरा उसे बाहर निकाल लेता था.
तमिल महाभारत के अनुसार अर्जुन और श्रीकृष्ण एक जादूगर को मारने के लिए वेश बदलकर उसके पास पहुंचे और सफलतापूर्वक अपने इस कार्य को संपन्न किया. हर हाल में अपने दोस्त के साथ खड़े रहने का संदेश भी श्रीकृष्ण ने ही इस दुनिया को दिया.
3- द्रौपदी
क्या आपने कभी सुना है कि किसी भगवान की महिला दोस्त रही हो, शायद आपने नहीं सुना हो लेकिन द्रौपदी और श्रीकृष्ण ने अपनी दोस्ती के जरिए एक स्त्री और पुरुष की दोस्ती की अनोखी मिसाल पेश की.
जैसा कि हम सभी जानते हैं द्रौपदी ने पांडवों से विवाह किया था और जब कौरवों ने भरी सभा में द्रौपदी का चीरहरण किया तो उस वक्त श्रीकृष्ण ने ही द्रौपदी की लाज की रक्षा की थी.
4- अक्रूर
वैसे तो अक्रूर श्रीकृष्ण के चाचा थे, जो कंस के कहने पर श्रीकृष्ण और बलराम को मथुरा लाए थे. अपने मामा कंस की हत्या करने के बाद श्रीकृष्ण अक्रूर के घर ही रुके थे.
जब श्रीकृष्ण पर स्यमंतक मणि की चोरी का कलंक लगा था तब अक्रूर ही उन्हें काशी लेकर गए थे. फिर श्रीकृष्ण के कहने पर जब वो उन्हें वापस ले लाए, तब श्रीकृष्ण के उपर से इस चोरी का कलंक भी मिट गया. इस तरह से अक्रूर और श्रीकृष्ण की दोस्ती एक मिसाल बन गई.
5- सात्यकि
सात्यकि बचपन से ही श्रीकृष्ण का अनुसरण किया करते थे और श्रीकृष्ण भी उनपर आंख बंद करके भरोसा किया करते थे. बताया जाता ह कि सात्यकि ने धनुर्धारी अर्जुन से धनुष चलाना सीखा था.
जब श्रीकृष्ण पांडवों के शांतिदूत बनकर हस्तिनापुर गए तो वो अपने साथ सिर्फ सात्यकि को ही ले गए. उस समय सात्यकि ने श्रीकृष्ण से कहा कि भले ही उसे कुछ हो जाए लेकिन श्रीकृष्ण को कुछ नहीं होगा क्योंकि उसने अपनी सेना की सहायता दुर्योधन को दे रखी है. सात्यकि जैसे दोस्त के कारण ही श्रीकृष्ण ने दोस्ती में अटूट विश्वास का संदेश दुनिया को दिया.
गौरतलब है कि श्रीकृष्ण ने अपने जीवन के इन पांचों दोस्तों के जरिए पूरी दुनिया को दोस्ती के अलग-अलग और बहुमुल्य दोस्ती का संदेश दिए जो हर इंसान की दोस्ती के लिए बेहद जरूरी है.
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