मोर पंख – भगवान कृष्ण और मोरों का बहुत पुराना नाता है.
आज हमें और आपको एक मामूली से पंछी की रूप में दिखने वाले ये मोर भगवान के समय में अलग स्थान रखते थे.
भगवान् कृष्ण अपने पास एक बांसुरी रखते हैं और दूसरा अपने मुकुट में मोर पंख. आपने भी कई बार इन मोर पंखों को भगवान के मुकुट में देखा होगा. आख़िर ऐसा क्या है और क्यों सिर्फ
मोर पंख ही भगवान अपने सिर पर सजाते हैं?
इसके कई कारण हैं. मोर ही एक मात्र ऐसे पंछी हैं जो कभी संसर्ग नहीं करते. उनके और उनकी मादा के बीच कभी सम्भोग नहीं होता. जब नर मोर मगन होकर नाचता है तो उसके मुंह से कुछ गिरता है जिसे खाकर मादा मोर बच्चे को जन्म देती है. इसलिए मोर को पवित्र मन गया है. भगवान कृष्ण इसी पवित्रता के नाते ही मोरों के पंख को अपने सिर पर सजाते हैं.
बचपन से ही माता यशोदा अपने लल्ला के सर इस मोर पंख को सजाती थीं. बड़े होने के बाद कृष्ण खुद भी इसे अपने सर सजाते रहे हैं, जिसका कारण है कि स्वयं भगवान भी मोर की ही तरह पवित्र हैं. भले ही उन्हें रास रचैया कहा जाता है, लेकिन वो इन सब से बहुत दूर रहे हैं.
एक कथा के अनुसार जब कृष्ण भगवान बांसुरी बजाते थे तो राधा रानी मुग्ध होकर नृत्य करने लगती थीं. राधाजी को नृत्य करते देख वहां पर मोर आ जाते थे और वो झूमकर नाचने लगते थे. कृष्ण जी ऐसा देखकर बहुत खुश होते थे. एक बार मोर जब नाच रहे थे तो उनका पंख टूट गया. झट से कृष्ण भगवान् ने उस पंख को उठाकर अपने सर पर सजा लिया.
जब राधाजी ने उनसे इसका कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि इन मोरों के नाचने में उन्हें राधाजी का प्रेम दिखता है.
इन कथाओं के आधार पर यह निश्चित होता है कि कृष्ण जी को मोर से बहुत प्यार और लगाव था, इसीलिए वो पंख को हमेशा अपने सर पर सजाते थे.
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