हर साल की तरह इस साल भी गणपति हम सब के घर विराज रहे हैं.
गणेशोत्सव का यह पर्व पुरे भारत भर में धूमधाम से मनाया जाता हैं. इसी उपलक्ष्य में आज हम आपको भगवान् गणपति के बालपन से जुड़ी एक रोचक कहानी बताएँगे.
वैसे तो बालपन की शरारतों के लिए श्रीकृष्ण का नाम लिया जाता हैं, लेकिन पार्वती पुत्र गणेश भी अपनी लीलाओं के लिय प्रसिद्ध थे. गणपति का भोजन को लेकर प्रेम जगजाहिर हैं और इस विषय से जुड़ी भगवान् गणपति की एक कथा का उल्लेख शिव एवं गणेशपुराण में भी मिलता हैं.
तो आईएं अब बाल गणेश की उस कहानी की ओर चलते हैं-
यह बात तब की हैं जब गणपति अपने बालपन में थे और वो भी बहुत शरारती बालक के रूप में. आये दिन माता पार्वती के पास लोग गणेश की कोई न कोई शिकायत लेकर आते थे. ऐसे ही एक बार गणेश अपने मित्र मुनिपुत्रों के साथ जंगल में खेल रहे थे तभी खेलते हुए गणपति को भूख लग गयी. लेकिन जंगल के उस स्थान में आसपास खाने की कोई चीज़ उपलब्ध नहीं थी.
बहुत देर तक भूख से व्याकुल होकर गणपति ने भोजन की तलाश की लेकिन भोजन नहीं मिला. उसी वक़्त बाल गणेश ने देखा कि नदी के पास ही किसी ऋषि का आश्रम हैं. गणेश खुश होकर अपने सभी मित्रों के साथ उस आश्रम में पहुचे. वह पहुचते ही उन्हें ने देखा की ऋषि गौतम अपने ध्यान मुद्रा में बैठे हैं और ऋषि गौतम की पत्नी अहिल्या रसोई में किसी काम में व्यस्त हैं.
ऋषि गौतम और उनकी पत्नी की व्यस्तता का लाभ उठा कर बाल गणेश रसोई में जा कर वहा रखा सारा भोजन चोरी कर जंगल ले आये और खाने लगे. कुछ देर में ऋषि पत्नी अहिल्या ने जब रसोई में रखे भोजन को वहा नही देखा तो ऋषि गौतम को इस बात की जानकारी दी और तभी ऋषि गौतम जंगल में उस व्यक्ति को खोजने निकले जिसने भोजन चुराया हैं.
बाल गणेश भोजन करने में इतने व्यस्त थे कि ऋषि गौतम के जंगल की ओर आने की बात पर ध्यान नहीं दे पाएं और ऋषि गौतम ने उन्हें चोरी के आरोप में पकड़ कर माता पार्वती के पास ले जाकर सारी बात बताई. चोरी की बात सुनकर माता पार्वती ने बाल गणेश को सज़ा के तौर पर एक कोठरी में बंद कर दिया और अपने काम में व्यस्त हो गयी.
लेकिन काम करते करते माता पार्वती को एहसास हुआ कि गणपति उनकी गोद में हैं और जैसे ही उन्हें ने देखा तो गणपति वह नहीं थे. इस भ्रम से ध्यान हटा कर माता पार्वती फिर से काम में लग गयी. लेकिन कुछ देर में उन्हें फिर एहसास हुआ कि गणपति उनके पीछे खड़े हैं लेकिन जैसी ही वह पीछे मुड़ कर देखना चाहा तो वहा कोई नहीं था.
बार-बार बाल गणेश के आसपास होने के इस भ्रम ने माता पार्वती का दिल पिघला दिया और वह कोठरी में जाकर देखी की गणेश ठीक हैं या नही. जब वह कोठरी पहुची तो देखा कि गणपति वहा रोते हुए रस्सी खोलने का प्रयास कर रहे हैं और अपने पुत्र को तकलीफ में देख कर माता पार्वती ने दयावश उन्हें मुक्त कर दिया.
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