नोटबंदी के बाद आने वाले दिनों एक ऐसा फैसला हो सकता है जिसको लेकर देश में राजनीतिक भूचाल आ सकता.
अधिकांश राजनीतिक दल इसका तीव्र विरोध कर सकते हैं. खासकर वे राजनीतिक दल जिन्होंने नोटबंदी के विरोध में मोदी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला हुआ है.
नोटबंदी की तरह यह ऐसा फैसला होगा जिससे देश में भ्रष्टाचार और कालेधन पर अकुंश लगाने में मदद मिलने की उम्मीद है.
लेकिन हो सकता है राजनीतिक दलों को यह पसंद न आए. उन्हें इस नेक कार्य में भी प्रधानमंत्री की कोई साजिश नजर आए.
दरअसल, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाने का सुझाव दिया था. ताकि इससे न केवल चुनावों में खर्च होने वाले अंधाधुंध पैसे पर लगाम लगाई जा सके बल्कि देश के किसी न किसी हिस्से में हर 6 माह में होने वाले चुनावी मकड़जाल से बाहर निकाल, राज्यों सरकारों को विकास पर फोकस करने के लिए मजबूर किया जाए.
खबर है कि प्रधानमंत्री के सुझाव के बाद चुनाव आयोग ने दोनों चुनाव एक साथ कराए जाने की संभावना को देखते हुए अपनी तैयारियां भी शुरू कर दी है.
इस खबर से भी इस बात की पुष्टि होती है कि सरकार ने नई इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) की खरीददारी के लिए चुनाव आयोग को 1,009 करोड़ जारी किए हैं. अगर 2019 में लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ कराए जाते हैं तो करीब 14 लाख नई इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों की आवश्यकता होगी.
इसको देखते हुए वित्त मंत्रालय ने आयोग को आगामी 3 साल तक ईवीएम मशीनों की खेप को खरीदने के लिए जरूरी पैसों की अग्रिम मंजूरी अभी ही दे दी है.
बताते चलें कि हर साल करीब पांच लाख ईवीएम के हिसाब से अगले तीन सालों तक करीब 15 लाख ईवीएम खरीदी जाएंगी. ईवीएम की पहली खेप के लिए ऑर्डर भी दिया जा चुका है.
यह इस बात का साफ संकेत है कि चुनाव आयोग भी देशभर में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने को लेकर गंभीर है.
इतना ही नहीं इसके अलावा अगर और अधिक मशीने खरीदने के लिए पैसे की जरूरत पड़ती है तो चुनाव आयोग पर्याप्त मशीनों की खरीददारी कर पाएगा.
हालांकि सरकार की तरफ से लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने को लेकर न तो चुनाव आयोग को कोई निर्देश दिए गए हैं और न ही चुनाव आयोग ने ही इसकी कोई घोषणा की हैं.
लेकिन यदि भविष्य में इसको लेकर राजनीतिक दलों में कोई सहमति बनती है तो इस योजना को क्रियांवयन करने मे कोई समस्या न आए, इसके लिए आयोग अपनी ओर से पूरी तैयारी करना चाहता है.
गौरतलब है कि भारत में करीब 10 लाख मतदान केंद्र हैं और 16 लाख ईवीएम.
लेकिन, मोदी सरकार और चुनाव आयोग के लिए इस पर कोई निर्णय करना इतना आसान नहीं है, क्योंकि इसके लिए सबसे सरकार को रिप्रजेंटेशन ऑफ पीपुल एक्ट कानूनी में संशोधन करना होगा.
यह तभी हो सकता है जब इसके पक्ष में दोनों सदन के दो तिहाई सदस्य इसका समर्थन करे.
बहरहाल, प्रधानमंत्री के सुझाव के बाद चुनाव आयोग ने भी इस दिशा में गंभीरता से प्रयास शुरू कर दिए हैं.