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उग्रवादियों की इस लड़ाई में आखिर कब तक अपनी जान गवाते रहेंगे हमारे सैनिक?

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आखिर कब तक चलेगी यह लड़ाई? आखिर कब तक खून बहेगा!

25 मई को फिर वही हुआ जिसके लिए कश्मीर मशहूर है! उग्र्वादियों और भारतीय सेना के जवानों में भिडंत. फिर से जानें गईं, जवानों की और उग्रवादियों की, लेकिन किसे फर्क पड़ता है? है न?

ना इस देश के प्रधान मंत्री को, ना ही जम्मू-कश्मीर के मुख्य मंत्री को और ना ही इस देश के लोगों को! कुल मिलाकर इस देश की राजनीति को कश्मीर में हो रही लड़ाइयों से कोई फर्क नहीं पड़ता! फर्क पड़ता है तो सिर्फ सेना के जवानों को , उनके मा-बाप को, उनकी बीवियों को, बच्चों को! भला उनके आंसू आपके और राजनेताओं को क्यों रुलाने लगे? लेकिन एक बार आप उनसे मिलके देखिये, उनकी आँखों से गिर रहे आंसुओं ने अगर आप के दिल में तेज़ाब बनकर छेद न किए तो मैं समझ जाऊँगा कि भारत में इंसानियत ख़त्म हो गई है!

भाजपा ने अच्छे दिनों का वादा किया तो था लेकिन शायद वे अच्छे दिन सैनिकों के लिए कभी नहीं आएँगे. नरेंद्र मोदी दुनिया भर में भारत की महानता का डंका पीट रहे हैं लेकिन क्या वे नहीं जानते कि उनके देश में ऐसी घटनाएं हो रही हैं जो दुनिया में भारत की शान में खलल डाल रही हैं. फिर चाहे वह बलात्कार जैसे मुद्दे हों, भ्रष्टाचार हो या उग्रवादियों की छेड़ी हुई लड़ाई!

मुझे लगता है कि यही सही वक़्त है, जब नरेंद्र मोदी कश्मीर के इस मुद्दे में अपनी दखल दें और कुछ ऐसी योजना बनाएं जो इस समस्या को हमेशा के लिए नहीं तो कम से कम कुछ समय के लिए तो ख़त्म कर ही दे!

आखिर कब तक इस तरह से इस देश के सैनिक मारे जाते रहेंगे? और वह भी, उनके हाथों से जिनको शायद पता भी नहीं है कि वे क्या कर रहे हैं. कभी हिंदू-मुस्लिम का झगडा हो गया तो कभी एक अलग देश का मुद्दा! मुझे लगता है कि कश्मीर के लोगों को यह बात समझानी चाहिए उन अग्रवादियों को जिन्हें हिन्दुस्तान में रहना नागवारा लग रहा है!

कभी पकिस्तान के झंडे लहराए जाएंगे तो कभी भड़काऊ भाषण दिए जाएंगे! आखिर इससे इंसानियत को क्या हासिल हो रहा है? बस, लोग मर रहे हैं और कुछ नहीं!

चलिए देखा जाए, आनेवाले समय में क्या इस देश की राजनीति और राजनेता जम्मू-कश्मीर पर उतना फोकस करेंगे जितना बाकी क्षेत्रों में करते हैं और अगर नहीं कर पाएं तो फिर भारत को कश्मीर को अलग करना ही पड़ेगा!