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क्या भारत में वामपंथियों का हो जाएगा पतन !

वामपंथी

वामपंथी – अक्सर कुछ चीजों को देखकर कल्पना करना मुश्किल होता है कि इसका अंत हो भी सकता है या नहीं ।

लेकिन वो कहते हैना एक ना एक दिन सब कुछ खत्म हो ही जाता है फिर चाहे वो एक इंसान हो या फिर एक विचारधारा । वामपंथी सोच का नेतृत्व करने वालों ने पिछले कुछ दशकों में वामपंथी सोच को इतना फैलाया कि वामपंथियों और वामपंथी सोच भारत का हिस्सा बन गई । हालांकि अगर भारत के इतिहास में वामपंथियों के अस्तित्व को खंगाले तो हमें ऐसा कुछ नहीं मिलता जिसे भारत को वामपंथी विचारधारा का गढ़ माना जाए।

वामपंथी

हालांकि इसके बावजूद भी भारत में वामपंथी सोच अस्तित्व में आई और कुछ राज्यों को अपना गढ़ बनाया । लेकिन हाल ही में त्रिपुरा में हुए चुनावों नें भारतीय राजनीति की एक नई तस्वीर लोगों के सामने रखी । जब वामपंथी सोच प्रभावित राज्य त्रिपुरा में पहली बार गैर-वामपंथी पार्टी भाजपा सत्ता में आई ।

वो भी पूर्ण बहुमत के साथ। जिसकी कल्पना न मीडिया ने की थी और न ही किसी राजनीतिक पार्टी ने । लेकिन इसे अब त्रिपुरा के लोगों का वामपंथी सोच को त्यागने कहे या भाजपा के दिखाए सपनों पर यकीन करना । लेकिन जो भी हो ये जरुर कहा जा सकता है कि त्रिपुरा में अब वामपंथियों का किला ढह चुका है ।

वामपंथी

और दिलचस्प बात ये है कि अब भारत के 29 राज्यों में से  केवल केरल में वामपंथियों की सरकार है । जिस वजह से ये सवाल जरुर उठाता है कि क्या केरल में भी आने वाले चुनावों में वामपंथियों का किला ढह सकता है ? क्या त्रिपुरा में मिली हार वामपंथियों के पतन की शुरुआत है जो केरल में आकर पूरी तरह खत्म हो जाएगी ।  आपको बता दें वाम दलों के गढ़ त्रिपुरा में भाजपा ने 35 सीटें जीती । जबकि अगर इसे पहले का इतिहास उठाकर देखा जाए तो भाजपा के लिए यहां एक सीट जीतना भी मुश्किल होता था । हालांकि जब हम त्रिपुरा को छोड़ केवल केरल में वाम दलों के किले ढहाने की बात कहते हैं । तो ये नामुनकिन तो नही लेकिन आसान भी नजर नहीं आता । ऐसा इसलिए क्योंकि त्रिपुरा की कहानी केरल से बिल्कुल अलग मानी जाती है । केरल में मुस्लिम और अल्पसख्यकों का गठजोड़ कुल आबादी का करीब 50 फीसदी है । यानी कि यहां वामपंथियों के किलों को ढहाना भाजपा के लिए आसान नहीं होना वाला है । वहीं कांग्रेस ,यूडीएफ और सीपीएम के नेतृत्व वाली एलडीएफ गठबंधन कर पिछले चार दशकों से केरल पर राज कर रही है ।

 हालांकि रिपोर्टस के अनुसार भारत के युवा वर्ग की पहली पसंद भाजपा है ।

वामपंथी

जिसमें केरल के युवा भी आते है । साथ ही जिस तरह दूसरे राज्य के लोंगो ने भाजपा पर भरोसा जताया । माना जा सकता है कि केरल के लोग भी नए बदलाव की चाह में ही सही भाजपा का साथ दें ।पर केरल में वामपंथियों की सत्ता कायम रहेगी या भाजपा इसे भी अपना गढ़ बना लेगी ये तो आने वाले चुनावों के नतीजे ही तय करेंगे ।

हालांकि इतना जरुर कहा जा सकता है कि अगर केरल में भी वामपंथियों की सत्ता छीन जाती है, तो देश में वामपंथियों का पतन लगभग तय है ।