राजनीति

आप लाख कोशिश कर लो अब कोई कट्टरपंथी और वामपंथी नहीं बोलेगा क्योंकि…

वर्ष 2013 के अंतिम महीने में शायद ही कोई ऐसा दिन जाता था जब भारत की राजधानी दिल्ली में इजराइल के फिलिस्तीन पर जवाबी कार्रवाई के विरोध में कोई धरना, प्रर्दशन या सेमिनार न होता हो.

मानवता की दुहाई और इंसानियत के कत्ल का राग अलाप कर देश के तमाम वामपंथी बुद्धिजीवियों और मुस्लिम कंट्टरपंथियों अपनी छाती पीटकर न केवल मातम मनाते बल्कि इजराइल के बर्बाद होने की भी दुआएं मांगते थे.

लेकिन इन दिनों रूस सीरिया में राष्ट्रपति बशर अल असद के विरोधियों को निपटाने में शहरों पर जो बमबारी कर रहा है उसको देखकर लोगों की रूह कांप जाती है. मासूम स्कूली बच्चें और महिलाएं जिस प्रकार बमों का निशाना बन रहे हैं, उसकी तस्वीरे जब सोशल मीडिया के जरिए बाहर आती हैं तो आत्मा अंदर तक हिल जाती है.

लेकिन ऐसा लगता है कि फिलिस्तीन पर इजराल की नीति और हमलों का विरोध करने वाले इन वामपंथी बुद्धिजीवियों और मुस्लिम कंट्टरपंथियों को सांप सूंघ गया है.

इसके पहले इनकी जुबान पर उस वक्त भी ताले पड़ गए थे जब 2014 में आतंकी संगठन आईएसआईएस ने इस्लाम के नाम पर बेकसूर लोगों, जिनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे, उनका सरेआम कत्लेआम शुरू किया था.

आतंकी संगठन आईएसआईएस की क्रूरता को जिसने भी देखा और सुना उसने उसकी निंदा की, लेकिन तारीख गवाह है अगर किसी वामपंथी बुद्धिजीवी और मुस्लिम कंट्टरपंथी ने एक बार भी इस जुल्म के विरोध में सड़कों पर आवाज उठाना तो दूर, सेमिनारों में बोलने की हिम्मत की हो.

आप अपना सर पटकते रह जाओगे ये आतंकी संगठन आईएसआईएस के विरोध में न तो कोई प्रदर्शन करेंगे और नहीं ही कभी सीरिया में रूस की बमबारी को लेकर धरने देंगे. क्योंकि इनको तो केवल अमेरिका और इजराइल का विरोध करना है. इनके मानवाधिकार के हनन का विरोध कभी अमेरिका और इजराइल के आगे नहीं बढ़ पाया है.

रूस और चीन कितनी भी ज्यादती कर ले लेकिन मजाल है कि इनके मुंह से विरोध का एक भी स्वर फूट जाए. पड़ोसी देश म्यांमार में क्या कर रहा है उस पर तो इनकी नजर है लेकिन पड़ोसी पाकिस्तान बलूचिस्तान में क्या कर रहा है उनको इससे कोई मतलब नहीं है.

दरअसल, इजराइल और अमेरिका का विरोध करने से इन वामपंथी बुद्धिजीवियों और मुस्लिम कंट्टरपंथियों को मुस्ल्मिों का समर्थन मिलता है लेकिन आईएसआईएस का विरोध पर शिया सर्मथक और सुन्नी मुस्लिम के विरोधी ठहरा दिए जाने का भय सताता है.

इसी प्रकार रूस और चीन अमेरिका के विरोधी हैं तो वे चाहे जितना भी मानवता को रौंद दे लेकिन उस पर इनकी जुबान नहीं खुलेगी. क्योंकि यदि ये रूस या चीन का विरोध करते हैं तो इनको डर है कि कहीं सच कहने के चक्कर में ये अमेरिका और इजराइल का समर्थक न कहलाने लगे.

Vivek Tyagi

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