लोकसभा चुनाव को मात्र कुछ ही दिन बाकी हैं, पूरे दो महीने के बाद तस्वीर साफ़ हो जाएगी कि देश का अगला प्रधानमंत्री कौन होगा। सत्ता हथियाने की लालच में राजनेता असल चुनावी मुद्दे से भटककर जनता को गुमराह करने के काम में लग गए हैं। शिक्षा, व्यवसाय, नौकरी और आरोग्य के मुद्दे पर बात करने वाला कोई नज़र नहीं आ रहा है। मौजूदा विपक्ष चौकीदार को चोर साबित करने में लगा हुआ है और सत्ता में रम चुकी पार्टी विपक्ष के आरोपो पर पल्ला झाड़ते हुए नज़र आ रही है, इसमें जनता की तकलीफ के निवारण की कोई बात नहीं की जा रही है। राजनितिक रोटी को सेकने के लिए आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला तेजी से जारी है।
पिछले कुछ दिनों की चुनावी रैलियाँ देखि जाएँ, तो पुलवामा हमला, बालकोट एयर स्ट्राइक और राफेल के मुद्दे पर ही विपक्ष अपनी दाल गलाने का प्रयास कर रहा है और वहीँ दूसरी तरफ से मौजूदा सबसे बड़ी पार्टी इन्ही मुद्दों को अपनी ताकत बनाए बैठी है। आम जनता मीडिया के बहकावे में इस तरह रम गई है कि वो खुद अपने बेनुयादी जरूरते भूल गई है। दिमाग को दूर तक सोचने के लिए काम पर लगाया लेकिन ऐसा दिमाग में नहीं आया कि राहुल गांधी ने कितने बार दाल की कीमत, पेट्रोल की कीमत, रुपए और डॉलर में उतार के मुद्दे को उठाया हो? प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठे मोदी जी ने एक बार भी प्रेस कांफ्रेंस कर पत्रकारों के सवालों का जवाब देना उचित नहीं समझा। सवाल अब यह है कि जिस जनसैलाब के लिए ये जनप्रतिनिधि चुनकर आते हैं अब उनके मुद्दे ही चुनावी सभाओं में नहीं उठाये जायेंगे?
नेता जनता के बीच अपनी चमक बनाने के लिए बदजुबानी पर उतर आये हैं। कोई किसी महिला पर टिप्पणी करके कहता है कि वो रोज फेसियल कराती हैं, तो कोई अपने प्रधानमंत्री को चोर कह देता है पर आतंकवादी के लिए उसके जुबान से जी निकलता है। भाजपा सरकार किसी भी नेता को चोर कहने में नहीं कतराते लेकिन अगर वो उसी पार्टी में शामिल हो जाए तो शुद्ध हो जाते हैं, सभी पाप खत्म हो जाते हैं।
लोग अपना मत उसी को दें जो देशहित में काम कर सके। दल, जाति और समुदाय को देखकर अपना मत ना दें। जनहित में काम करने वाला व्यक्ति ही जननेता चुना जाना चाहिए। जो गरीबी देखा हो वो नेता होना चाहिए क्योंकि अमीरों को क्या पता होगा गरीबों का दर्द कैसा होता है। 11 अप्रैल से 23 मई तक लोकतंत्र के त्यौहार की ढेर साड़ी शुभकामनाएं।