लड़कियों की बलि – आपको सुनकर हैरानी होगी, लेकिन इस दुनिया का एक देश ऐसा है जहाँ पर छोटी लड़कियों को देवी बनाकर पूजा जाता है.
ये देश कहीं और नहीं बल्कि हमारा ही पड़ोसी है. इस देश का नाम है नेपाल. नेपाल भी हिन्दू राष्ट्र है. यहाँ पर देवी देवताओं की पूजा होती है. नेपाल में एक ऐसा मंदिर है जहाँ पर छोटी लड़कियों की पूजा की जाती है.
ये पूजा सिर्फ कुछ घंटों के लिए नहीं बल्कि पूरे दिन और सालों चलती रहती है. एक तरह से लड़कियों की बलि दी जाती है यहाँ. जिस उम्र में वो लड़कियां खेलने कूदने और पढ़ने की हकदार होती हैं उस उम्र में उन्हें देवी बनाकर उनकी बलि दे दी जाती है.
नवरात्री में कन्या पूजन तो हमारे यहाँ भी होता है, लेकिन यहाँ पर सिर्फ एक दिन ९ लड़कियों को घर बुलाकर उनका पैर धोकर उन्हें अच्छा-अच्छा भोजन कराया जाता है और फिर उनकी विदाई कर दी जाती है.
लेकिन नेपाल में ऐसा नहीं है. उन लड़कियों को तब तक के लिए मंदिर में बंधुआ बना लिया जाता है जब तक वो जवान नहीं होती. नेपाल में जीवित कन्या को देवी बनाकर पूजने का रिवाज हैं, जिन्हें ‘कुमारी देवी’ कहा जाता हैं। जिन्हें साक्षात काली का स्वरुप मानकर उनको पूजा जाता हैं.
नेपाल में यह गर्व की बात मानी जाती है.
जिस घर की लड़की को यह दर्जा मिलता है, उसके माँ बाप बहुत खुश होते हैं. यह परंपरा करीब तीन सदी पुरानी बताई जाती है. कालातंर में यहां 11 कुमारी देवियां हैं. जैसे ही एक कन्या से देवी की उपाधि वापस ले ली जाती हैं, उस रिक्त स्थान की पूर्ति के लिए कुमारी देवी की चयन प्रक्रिया शुरु कर दी जाती हैं. है न बड़ी अजीब सी प्रथा. सुनकर कानों पर विश्वास नहीं होता.
दुनिया से लोग जब भी नेपाल जाते हैं तो इस मंदिर में ज़रूर जाते हैं. नेपाल की कुमारी देवी का चयन के लिए जन्म कुंडली में मौजूद ग्रह-नक्षत्र भी बड़ी भूमिका निभाते हैं. माना जाता है कि कुमारी में 32 गुणों का होना अनिवार्य होता हैं. कुंडली के अलावा उनके भीतर कुछ ऐसे लक्षण देखे जाते हैं जो उनके कुमारी देवी बनने में मदद करते हैं जैसे उनके समक्ष भैंस के कटे सिर को रखा जाता है, इसके अलावा राक्षस का मुखौटा पहने पुरुष वहां नृत्य करते हैं. अगर जो भी बच्ची बिना किसी डर के इन परिस्थितियों को पार कर लेती हैं, उसे मां काली का अवतार मानकर कुमारी देवी बनाया जाता है. ख़ुशी ख़ुशी लोग अपनी बच्चियों को इस काम में लगा देते हैं.
ये लड़कियां विशेष जाती की होती हैं. शाक्य और वज्राचार्य जाति की बच्चियों को 3 वर्ष का होते ही उनके परिवार से अलग कर दिया जाता है और उसके बाद 32 स्तरों पर उनकी परीक्षाएं होती हैं, जिसके बाद चयनित कन्या को ‘कुमारी’ नाम दे दिया जाता है. फिर शुरू होती है इन देवियों की पूजा.
लड़कियों की बलि – नेपाल की ये प्रथा कहाँ तक सही है कह नहीं सकते, लेकिन इतना तो ज़रूर है कि जिन बच्चियों को देवी बनाया जाता है, उनका बचपन तो बलि चढ़ ही जाता है.