प्राचीन काल से ही नालंदा यूनिवर्सिटी ज्ञान के केंद्र के रुप में दुनिया भर में मशहूर हुआ करती थी. एक दौर ऐसा भी था जब दुनिया के कोने-कोने से लोग इस यूनिवर्सिटी में ज्ञान प्राप्त करने के लिए आते थे. ज्ञान के इस गढ़ में कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत और तुर्की से छात्र और शिक्षक ज्ञान प्राप्त करने के लिए आते थे.
लेकिन बख्तियार खिलजी नाम के एक बादशाह ने दुनिया भर में ज्ञान का प्रकाश फैलानेवाली इस यूनिवर्सिटी को ही बर्बाद करने का फैसला कर लिया. बताया जाता है कि एक हिंदुस्तानी वैद्य से जलन की भावना ने उसे नालंदा यूनिवर्सिटी में आग तक लगाने के लिए मजबूर कर दिया.
उसने पूरी नालंदा यूनिवर्सिटी को आग के हवाले कर दिया जिसके चलते लाइब्रेरी में रखी कई बेशकीमती किताबें जलकर राख हो गईं. इतना ही नहीं उसने नालंदा के कई धार्मिक नेताओं और बौद्ध भिक्षुओं की भी हत्या करवा दी.
छठी शताब्दी में हिंदुस्तान पर था खिलजी का राज
छठी शताब्दी के दौरान तुर्की शासक इख्तियारुद्दीन मुहम्मद बिन बख्तियार खिलजी का पूरे हिंदुस्तान पर राज हुआ करता था. उस दौरान नालंदा यूनिवर्सिटी राजगीर के एक उपनगर के तौर पर जानी जाती थी. इस यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले ज्यादातर छात्र विदेशी थे.
उस दौरान यहां 10 हजार छात्र पढ़ाई करते थे और 2 हजार शिक्षक उन्हें पढ़ाते थे. यह दुनिया की पहली ऐसी यूनिवर्सिटी थी जहां रहने के लिए हॉस्टल की सुविधा भी थी.
खिलजी का एक हिंदुस्तानी वैद्य ने किया था इलाज
बताया जाता है कि एक दफा बख्तियार खिलजी बुरी तरह से बीमार पड़ गया था उसने अपने हकीमों से काफी इलाज करवाया लेकिन ठीक नहीं हो सका. ऐसे में जब उसे हिंदुस्तानी वैद्य से इलाज कराने के लिए कहा गया तो वो तैयार नहीं हुआ क्योंकि उसे अपने हकीमों पर ज्यादा ऐतबार था.
कई हकीमों से सलाह मशविरा करने के बाद आखिरकार खिलजी नालंदा यूनिवर्सिटी के आयुर्वेद शाखा के प्रधान राहुल श्रीमद से इलाज करवाने के लिए राजी हो गया.
लेकिन खिलजी ने राहुल श्रीमद नाम के इस हिंदुस्तानी वैद्य के सामने शर्त रखी कि वो किसी हिंदुस्तानी दवा का इस्तेमाल नहीं करेगा और अगर वो ठीक नहीं हुआ तो फिर उसे जान से मार देगा.
खिलजी की ये बात सुनकर राहुल श्रीमद ने कुछ सोच-विचार किया इस शर्त को मान ली. कुछ दिनों बाद वैद्य जी खिलजी के पास एक कुरान लेकर पहुंचे और कहा कि जल्दी ठीक होने के लिए इस कुरान के इतने पन्ने रोज पढ़िए.
इलाज कराने के बाद वैद्य से जलने लगा था खिलजी
बताया जाता है कि वैद्य राहुल श्रीभद्र ने कुरान के कुछ पन्नों पर एक दवा का लेप लगा दिया था. खिलजी उन पन्नों को अपनी उंगलियों पर थूक लगाकर पलटता और फिर पढ़ता था जिससे वो धीरे-धीरे ठीक हो गया.
लेकिन जैसे ही वो पूरी तरह से ठीक हो गया उसके मन में उस वैद्य के प्रति ईर्ष्या का भाव आ गया. वो उससे इस कदर जलने लगा था कि उसने ये तय कर लिया कि क्यों ना ज्ञान के इस गढ़ को ही समाप्त कर दिया जाए.
नालंदा यूनिवर्सिटी के आयुर्वेद शाखा के प्रमुख वैद्य राहुल श्रीमद से जलन की भावना ने उसे नालंदा यूनिवर्सिटी जलाने पर मजबूर कर दिया. बताया जाता है कि इस यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी में इतनी ज्यादा किताबें थीं कि करीब तीन महीने तक यह यूनिवर्सिटी आग में जलती रही. इसके साथ ही हजारों धार्मिक नेताओं और बौद्ध भिक्षुओं की भी हत्या करवा दी.
गौरतलब है कि खिलजी की इस जलन की भावना ने विश्व प्रसिद्ध नालंदा यूनिवर्सिटी के अस्तित्व को ही तहस नहस कर दिया. उसने ऐसा सिर्फ इसलिए किया ताकि हिंदुस्तानी वैद्य उसके हकीमों से बेहतर और कारगर इलाज ना कर पाएं.