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कठुआ रेप पीड़िता आसिफा का समुदाय गुर्जर बकरवाल से जुड़ी ये जानकारी आपको कर देगी हैरान

कठुआ रेप पीड़ित आसिफा गुर्जर बकरवाल समुदाय से आती थी जिससे जुड़ी जानकारी हर किसी को हैरान कर देगी।

कठुआ में आठ साल की बच्ची से बलात्कार करने वाले आरोपी ने आरोप कबूल कर लिया है। यह सब आसिफा के समुदाय और देश के समर्थन के कारण हुआ है। कठुआ रेप पीड़ित आसिफा गुर्जर बकरवाल समुदाय से आती थी जिससे जुड़ी जानकारी हर किसी को हैरान कर देगी।

लेकिन जब आप यह जानकारी को जानोगे तो आपको आश्चर्य नहीं होगा कि क्यों इसके आरोपी ने अपना आरोप कबूल कर लिया?
दरअसल शुक्रवार 27 अप्रैल को आसिफा रेप मामले की जांच में जुटी पुलिस ने कहा है कि आरोपियों में से एक सांझी राम ने हत्या की बात कबूल ली है। उसी के बाद से हर जगह यह खबर सुर्खियां बटोर रही है। पुलिस इस का क्रेडिट खुद लेने की कोशिश करेगी। लेकिन ऐसा नहीं है। यह गुर्जर बकरवाल समुदाय की इच्छाशक्ति और कानून पर विश्वास के कारण हुआ है।

कौन है गुर्जर बकरवाल समुदाय ?

कठुआ रेप केस के हर कोई गुर्जर बकरवाल समुदाय के बारे में सवाल पूछ रहा है? जम्मू-कश्मीर के मैदानी इलाकों में इस समुदाय के लोग रहते हैं। यह समुदाय गुर्जर जाति से तालुक रखता है। गुर्जर समाज के एक बड़े और रसूखदार तबके को ‘बकरवाल’ कहा जाता है। यह नाम कश्मीरी बोलने वाले विद्वानों द्वारा दिया गया है। गुर्जर बकरवाल समुदाय के लोग भेड़-बकरी चराने का काम करते है। गुर्जर और बकरवालों को तीन हिस्सों में बाँटा जा सकता है।

जंगलों में करते हैं गुजर-बसर

कुछ गुर्जर और बकरवाल पूरी तरह से खानाबदोश (फुली नोमाद) होते हैं। ये लोग सिर्फ जंगलों में गुज़र-बसर करते हैं। इनके पास अपना कोई ठिकाना नहीं होता है।

वहीं दूसरे तरह के बकरवाल समुदाय में आंशिक खानाबदोश आते हैं। इन लोगों के पास कहीं एक जगह रहने का ठिकाना नहीं होता है और ये आस-पास के जंगलों में कुछ समय के लिये चले जाते हैं और कुछ समय बिताकर वापस अपने डेरे पर आ जाते हैं।

मैदानी इलाकों में रहते हैं. वहीं इस समुदाय की तीसरी श्रेणी में जो लोग आथे हैं उन्हें शरणार्थी ख़ानाबदोश (माइग्रेटरी नोमाद) कहते हैं। ये लोग मैदानी इलाकों में रहते हैं।

रहते हैं पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान भी

वर्तमान में गुर्जर और बकरवाल देश के 12 राज्यों में रह रहे हैं। भारत के अलावा यह जाति पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान में भी रहती है। इनकी एक विशिष्ट भाषा, लिबास, खान-पान और रहन-सहन होता है। वर्ष 1991 में सरकार ने बकरवालों को आदिवासी समुदाय का दर्ज़ा दिया था। 2011 की जनगणना के मुताबिक फिलहाल जम्मू कश्मीर में इस समुदाय के लगभग 12 लाख लोग रहते हैं।

करते हैं देश की रक्षा

आज भी बड़ी संख्या में बकरवाल समुदाय के लोग अशिक्षित हैं औऱ इन्हें पढ़ने-लिखने में ज्यादा दिलचस्पी भी नहीं होती है। ये प्राकृति के करीब रहना पसंद करते हैं। यह देश की सीमा से सटे इलाकों में रहने वाले गुर्जर बकरवाल समुदाय के लोग देश की रक्षा में लगातार अपना योगदान देते रहे हैं।

इसलिए गुर्जर बकरवाल समुदाय देश में काफी अहमियत रखते हैं और यह उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति थी कि इन्होंने आसिफा के मामले में एकजुटता दिखाई और पूरे देश को आसिफा के लिए इंसाफ मांगने के लिए मजबूर कर दिया।

Tripti Verma

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