जो अलगावादी कल तक कश्मीर घाटी में सरकार के खिलाफ बंद और प्रदर्शन करते थे, अब वहां उनके खिलाफ भी आवाजे उठनी शुरू हो गई हैं.
पिछले दिनों घाटी के टूर-टैक्सी आपरेटरों ने दो स्थानों पर अलगावादियों के खिलाफ प्रदर्शन किए.
अलगाववादी नेता इन टूर-टैक्सी आपरेटरों को बंद के लिए मनाने और समझाने में जुटे हैं लेकिन उन पर इसका कोई असर नहीं हो रहा है.
घाटी में हड़ताल और बंद को 100 दिन से अधिक हो चुके हैं. ऐसे में मजदूरी या प्राइवेट नौकरी करने वाले लोगों के सामने रोजी रोटी का संकट खड़ा हो गया है. लोगों को अब समझ में आने लगा है कि इन अलगाववादियों के कारण ही उनका धंधा चौपट हो रहा है. बंद के विरोध में कश्मीर के टैक्सी आपरेटरों की भड़ास अब अलगाववादियों पर निकल रही है. ये अलगावादियों के खिलाफ धरने प्रदर्शन कर रहे हैं.
अलगाववादी टैक्सी आपरेटरों को बंद से हुए नुकसान की भरपाई का भरोसा देकर शांत करने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन वे उनकी सुनने को तैयार नहीं है.
दरअसल, बदं के कारण घाटी में पर्यटकों का आना-जाना बंद है. ऐसे में टैक्सी चालकों के लिए घर चलाना तो दूर बैंक की किस्त भरना दूभर हो रहा है. क्योंकि अधिकांश टैक्सी मालिकों ने बैंक से पैसा लेकर टैक्सी ली थी और हर महीने उन्हें किस्त की रकम जमा कराना होता है. लेकिन वे पिछले तीन महीने से वे बैंक का किस्त नहीं भर पाए हैं.
अलगाववादी लोगों को समझा रहे हैं कि सरकार जल्द उनके सामने झुकेगी और उनसे बातचीत करेगी. तब वे सरकार से इस तीन महीने के दौरान हुए लोगों के नुकसान की भरपाई की शर्त रखेंगे. लेकिन कर्जे और बेरोजगारी से बेहाल टैक्सी आपरेटरों जान रहे हैं कि इस बार सरकार अलगाववादियों को जरा भी अहमियत नहीं दे रही है. ऐसे में वह अलगाववादी नेताओं के आगे न तो झुकेगी और न ही उनकी किसी बात को मानेगी.
अलगावादी बंद को लेकर भले ही कुछ भी दावे करे लेकिन घाटी में अब जनता उनकी बात को सुनने के लिए तैयार नहीं है. बाहर से घाटी की सारी दुकाने भले ही बंद दिखती हों, लेकिन हकीकत यह है कि पिछले दरवाजे से सारी खरीद-फरोख्त हो रही है.
लेकिन कश्मीर में सामान्य होते हालात और लोगों का बंद के हुक्म की नाफरमानी अलगाववादियों को रास नहीं आ रही हैं. हताश अलगाववादी अब घाटी के उन लोगों पर हमले कर रहे हैं जो उनके बंद का समर्थन नहीं कर रहे हैं.
श्रीनगर-बारामुला राजमार्ग पर 10 अक्टूबर को अलगाववादियों के इशारे पर नकाबपोश युवकों ने दो सूमो टैक्सियों को आग लगा दी और उनके चालकों व यात्रियों के साथ भी मारपीट की.
बंद के घटते प्रभाव से अलगाववादियों और आतंकी संगठनों के समर्थक हताश हैं. वह कुछ दिनों से लगातार बंद को जबरन प्रभावी बनाने के लिए आम लोगों को निशाना बना रहे हैं.
बीते कुछ दिनों से अलगाववादियों का बंद सिर्फ दुकानों, शिक्षण संस्थानों व सार्वजनिक वाहनों तक ही सीमित होता जा रहा है. निजी वाहन सड़कों पर लगातार बढ़ रहे हैं. सामान्य जनजीवन भी धीरे धीरे पटरी पर लौट रहा है.
अलगाववादी नेता अब बंद का ऐलान वापस लेने का मौका तलाश रहे हैं, लेकिन सरकार उन्हें कोई मौका ही नहीं दे रही है. ऐसे में अलगावादी के पास बंद की मियाद बढ़ाते रहने के अलावा कोई चारा नहीं है.
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