अक्सर हम कश्मीर के बारे में काई कहानियाँ सुनते रहते हैं|
वे सच हैं या झूठ हम यक़ीन से नहीं कह सकते क्योंकि ज़्यादातर तथ्यों के लिए हमें मीडीया पर ही भरोसा करना पड़ता है|
अब मीडीया कितना सच हमारे सामने ले कर आता है और कितना झूठ, इस का फ़ैसला तो आज तक हो ही नहीं पाया है|
लेकिन हम आज आप को कश्मीर की एक ऐसी सच्ची कहानी सुना रहे हैं जो कश्मीर के ही एक नागरिक की ज़बानी है|
जाफ़र नाम का यह नौजवान पिछले कुछ सालों से कश्मीर से बाहर रह रहा है, अपने काम के सिलसिले में, लेकिन अपने शहर आता जाता रहता है| कश्मीर की वादियों में पले बढ़े इस व्यक्ति ने एक अलग ही सूरत दिखाई हमें कश्मीर की|
इस का कहना है की इस का घर कश्मीरी हवाई-अड्डे से तक़रीबन 8-10 की दूरी पर है और इस कस्बे से एक कच्ची सड़क हवाई-अड्डे तक जाती है जो पिछले काई सालों से कच्ची ही है| जम्मू और कश्मीर जैसे राज्य में जहाँ प्रगती और विकास के साधनों की कोई कमी नहीं है, वहाँ ऐसी सड़कें हर तरफ देखने को मिलती हैं|
जाफ़र का कहना है “मैं क्यों नहीं अपने वतन में रह कर काम करना चाहूँगा और पैसे कमाना चाहूँगा अगर मुझे वहाँ रोज़गार के सही मौके मुहाइया करवाए जायें| लेकिन वहाँ ऐसा कोई करना नहीं चाहता है| राजनेता अपना गेम खेल रहे हैं और आर्मी अपने ही किसी जुगाड़ में है| किसी को भी राज्य या वहाँ के नागरिकों के बारे में कुछ नहीं पड़ी है| वहाँ आई एस आई एस, पाकिस्तान, या हिन्दुस्तान का मुद्दा है ही नहीं, वहाँ मुद्दा है दोगली राजनीति और आर्मी के अंडरकवर फायदों का|”
जाफ़र ने ये भी कहा की उस के कश्मीर में आर्मी वालों से आम नागरिक इतनी नफ़रत करते हैं की माएँ अपने बच्चों के हाथ में पत्थर देती हैं और गश्त कर रहे आर्मी वाले का सिर फोड़ देने के लिए कहती हैं| लेकिन उस से फ़र्क क्या पड़ेगा| उस बच्चे को भी आतंकवादी या आई एस आई एस का नुमाइंदा क़रार दे कर किसी करेक्षन कैंप में सड़ने के लिए भेज दिया जाएगा|
कश्मीर जैसे ठंडे प्रदेश में जहाँ देश विदेश के विद्यार्थी आ कर पढ़ाई कर सकते हैं, वहाँ ले दे कर कुछ एक इंजिनियरिंग कॉलेज है| अगर मेरे किसी बहन या भाई को इंजिनियरिंग करनी है तो उसे जलते-तपते जयपुर में जा कर अड्मिशन लेना पढ़ता है, जहाँ का वातावरण उसे रास ही नहीं आता| क्यों नहीं प्रशाशन वहाँ शिक्षा, स्कूल और कॉलेज बनाने की तरफ ध्यान दे रहा? किस की ज़िम्मेदारी है यह सब?
अगर वहाँ सरकार नागरिकों को बुनियादी ज़िंदगी भी मुहाइया नहीं करवा पा रही तो किस बात का हक़ जाता रही है कश्मीर पर?
सड़कें नहीं, स्कूल कॉलेज नहीं, ज़िंदगी नहीं तो है क्या?
कौन से कश्मीर का सपना दिखाया जा रहा है ये कह कर की “कश्मीर हमारा है”?
क्या था कश्मीर और क्या है आज? आप ही बताइए|
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