भारत

कश्मीर का बुनियादी सवाल

1947 में शेख अब्दुल्ला व अन्य कश्मीरी नेतागण इस नतीजे पर पहुंचे थे कि कश्मीर का भविष्य भारत के साथ है.

तब राज्य के लोगों के सामने पाकिस्तान का असली चेहरा सामने आ गया था. जिसने कबीलाई लोगों के ज़रिए कश्मीर घाटी को हड़पने की कोशिश की थी. सरहद पार से आए घुसपैठियों ने बड़े पैमाने पर तब हिंसा फैलाई थी और मासूम लोगों के खिलाफ हर तरह के अत्याचार किए थे. ये भारतीय सेना थी जिसने घाटी को बचाया. आज भी सेना जम्मू-कश्मीर में बेहद अहम भूमिका निभा रही है. पर उसे भी अपने आचरण में मानवाधिकारों की रक्षा सुनिश्चित करने के हरसंभव प्रयास करने चाहिए.

देश के साथ एक भयानक भूल तब हो गई थी जब कश्मीर के मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र में ले जाया गया. वहीं, संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों से कश्मीर नेतृत्व को ये लगने लगा कि राज्य के दर्जे का मुद्दा अभी अनसुलझा है जोकि सरासर गलत है. वैसे अगर देखें तो शिमला समझौते के बाद संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव भी निरर्थक हो गए थे. इसके बावजूद आज भी कश्मीर के अलगाववादियों ने आज़ादी के झूठे नारों के साथ लोगों को गुमराह करना जारी रखा हुआ है. क्या होगा कश्मीर का भविष्य ?

पाकिस्तान ने कश्मीर के मामले को हमेशा भारत के खिलाफ अपने नापाक मंसूबों को पूरा करने के लिए एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया है. गौरतलब है कि पिछले 20 वर्षों से कश्मीर उग्रवाद एवं आतंकवाद द्वारा तहस-नहस कर दिया गया है और ये सब कुछ पाकिस्तान की शह पर आज भी जारी है. वहीं, इन वर्षों में इसी बीच पाकिस्तान के अंदर भी सैकड़ों की तादाद में कट्टरपंथी समूह पनपे एवं विकसित हुए. इन समूहों को न जाने क्यूँ लगता है कि इस्लाम द्वारा की गई केवल उनकी व्याख्या ही सही है और वे हर उस शख्स को मारने के लिए उतावले हो जाते हैं जो अलग तरह के विचार या धर्म को मानते हैं.

लश्कर-ए-तैयबा हो या तालिबान या फिर आईएसएस ये संगठन वैचारिक रूप से सर्वाधिक कट्टरपंथी समूहों में शामिल हैं.

वहीं, कश्मीरी नेताओं ने अपने लोगों को कभी इस बारे में नहीं चेताया कि कट्टरपंथ उस कश्मीरियत के एकदम खिलाफ है जिसकी सभी मिसाल दिया करते हैं. वे कश्मीरियत की सुरक्षा के दायित्व को पूरा करने में पूरी तरह से विफल रहे. कश्मीरी पंडितों का जैसा हश्र हुआ वो उनकी नाकामी का सबसे बड़ा सुबूत है. आज जम्मू-कश्मीर के एक अभिन्न अंग कश्मीरी पंडित समुदाय को सभी ने उनके हाल पर छोड़ दिया है.

पिछले 20 वर्षों से पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति दिन-ब-दिन और बद्तर होती जा रही है. गरीबी का स्तर और नीचे गिरता जा रहा है पर फिर भी वो अपने भविष्य के अंधकार को देखना नहीं चाहता. वर्तमान परिदृश्य में पाकिस्तान में विदेशी सहायता के बल पर देश की आर्थिक ज़रूरतों का प्रबंधन किया जा रहा है. जहाँ एक ओर पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था गिरती जा रही है तो दूसरी तरफ भारत आर्थिक प्रगति की राह पर अग्रसर है.

कश्मीर का भविष्य – आज अन्य भारतीयों की तरह कश्मीरी लोग भी बढ़ते अवसरों से लाभान्वित हो रहें हैं. ऐसे में ये कश्मीरी नेताओं की ज़िम्मेदारी है कि वे राष्ट्रीय मुख्यधारा से जम्मू-कश्मीर के जुड़ाव एवं आर्थिक, राजनीतिक तथा भावनात्मक रिश्तों को मज़बूत करें.

Devansh Tripathi

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