मंदिर का इतिहास एवं वर्तमान स्थिति
काशी विश्वनाथ का वर्तमान स्वरूप इंदौर की रानी अहिल्या बाई होल्कर की देन है. 1780 में होल्कर ने इसका जीर्णोद्धार करवाया था. दोनों गुम्बदों पर सोने की परत महाराजा रणजीत सिंह द्वारा चढ़वाई गयी थी.
काशी विश्वनाथ के बारे में कहा जाता है कि इस मंदिर का कभी लोप नहीं होता है. प्रलय के समय भी भोलेनाथ इसे अपने त्रिशूल पर धारण कर लेते है. काशी को ही सृष्टि की उत्पति की नगरी माना गया है.
ऐसा कहा जाता है कि काशी में प्राण त्यागने वाला जन्म मृत्यु के फेरे से दूर हो जाता है. स्वयं महादेव मरने वाले प्राणी के कानों में तर्क मंत्र बोलते है.