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चुनावी जंग में करुणानिधि ने राजीव गांधी को कहा था मेंढक

पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी – हाल ही में हुई करुणानिधि की मौत से पूरा देश शोक के माहौल में डूब गया।

अन्‍नादुरई के बाद डीएमके के मुखिया थे करुणानिधि जोकि पांच बार सीमए रह चुके थे और कुल 19 साल तक पार्टी के अध्‍यक्ष भी। राजनीतिक करियर में उन्‍हें 50 साल पूरे हो चुके थे और ये उनका 51वां साल चल रहा था।

करुणानिधि के राजनीतिक करियर के ऐसे कई हिस्‍से हैं जिन्‍हें उनके जाने के बाद याद किया जाएगा। इंदिरा गांधी के बेटे राजीव गांधी से भी करुणानिधि बहुत चिढ़ते थे। आज हम आपको इन दोनों के बीच के राजनीतिक संबंध के बारे में बताने जा रहे हैं।

राजीव गांधी को मेंढक बुलाते थे

1985 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री राजीव गांधी का एडीएमके के एमजी रामचंद्रन के साथ गठजोड़ था। एमजीआर के विपक्ष में डीएमके पार्टी के करुणानिधि खड़े थे। उनका गठजोड़ पार्टी के धड़ों और कम्‍युनिस्‍टों के साथ था।

एक चुनावी रैली में राजीव गांधी ने करुणानिधि के गठजोड़ की खिल्‍ली उड़ाई थी। उनहोंने कोयंबटूर की एक चुनावी रैली में कहा था कि उनका हाल केकडों से भरी बाल्‍टी की तरह है। जैसे ही कोई रेंगकर ऊपर चढ़ता है और बाहर आने की कोशिश करता है बाकी उसे अंदर खींच लेते हैं।

करुणानिधि ने दिया जवाब

पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी

इस तंज के जवाब में करुणानिधि ने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को केकड़ा बता दिया था। अपनी रैली में करुणानिधि बोले, केकड़ा अपनी घातक पकड़ के लिए जाना जाता है, हमारी पकड़ है जनता है इसलिए हम केकड़े कहलाए जाने में कोई दिक्‍कत नहीं समझते हैं लेकिन अगर हम केकड़ा हैं तो एआईएडीएमके और कांग्रेस का गठजोड़ मेंढक और चूहे के साथ जैसा है। मेंढक चूहे को पानी में खींचेगा और चूहा मेंढक को जमीन पर। ऐसे में उनकी पकड़ ना जमीन पर रहेगी और ना पानी पर। तब आएगा एक बाज़ और एक ही झपटे में दोनों को खा जाएगा।

करुणानिधि की पार्टी को लगातार तीसरे चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। इस बार खुद उन्‍होंने विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा था बल्कि वो तो पिछली विधानसभा के कार्यकाल शुरु होने से पहले ही 1982 में विधायकी छोड़ चुके थे। भारत सरकार की श्रीलंका नीति के विरोध में करुणानिधि ने इस्‍तीफा दे दिया था। उन्‍होंने हमेशा तमिलियनों का साथ दिया है और इसलिए श्रीलंका के उत्तरी इलाकों में तमिलों पर हो रहे अत्‍याचार से वो खुश नहीं थे। जबकि केंद्र सरकार श्रीलंका की सरकार से मैत्रीपूर्ण संबंध चाहती थी। इसी चक्‍कर में करुणानिधि विपक्षी पार्टी कांग्रेस के दिग्‍गज नेता राजीव गांधी से बैर रखते थे।

इस तरह आपसी राजनीतिक रंजिश के कारण लाखों लोगों से भरी रैली में करुणानिधि ने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को मेंढक बुलाया था। खैर, अब तो ये पुरानी बात हो गई और अब तो ना राजीव गांधी रहे और ना ही करुणानिधि।

इस तरह मेंढक और केकड़ा दोनों मारे गए। एक को राजनीति के ज़हर ने मार दिया तो दूसरे को प्रकृति के नियम ने। राजीव गांधी और करुणानिधि दोनों ही देश की राजनीति के दिग्‍गज नेता हुआ करते थे और इनका नाम राजनीति के इतिहास में सुनहरे अक्षरों से लिखा जाएगा। हमारी ओर से करुणानिधि को श्रद्धांजलि।