कार्ल मार्क्स एक ऐसा नाम जिसका जिक्र हमने अक्सर राजनीतिक किताबों में देखा और पढा है।
कार्ल मार्क्स ने उन्नीसवीं शत्ताब्दी में कई ऐसी बातें लिखी जो राजनैतिज्ञों के लिए आज भी मील के पत्थर का काम करती है। 19वीं शताब्दी में उन्होंने दो कृतियां पहली ‘कम्युनिस्ट घोषणा पत्र’ और दूसरी ‘दास कैपिटल’ लिखी। दोनों ही कृतियों ने एक समय में दुनिया के कई देशों और करोड़ों लोगों पर राजनीतिक और आर्थिक रूप से निर्णयात्मक असर डाला था, जिसका जिक्र आज भी इतिहास के पन्नों पर पढ़ा जा सकता है।
आज शोषण का शिकार हो रहे इस सोशल समाज को उनके विचारों से जहां एक ओर प्ररित होता देखा जा सकता है, वहीं दूसरी और कही ना कहीं ये मार्क्स के विचारों से भटक भी रहे है।
साम्राज्यवाद, आजादी और सामूहिक हत्याओं से उनके सिद्धांत जुड़ने के बाद उन्हें विभाजनकारी चेहरे के रूप में देखा जाने लगा। लेकिन अगर आपने उनके सभी विचारों को पूरी तरह से पढ़ा और समझा है तो आप ये भी जानते होंगे कि वो एक भावनात्मक इंसान भी थे।
उनके विचार सिर्फ राजनीतिक ही नहीं थे, बल्कि उन्होंने अपने विचारों से दुनिया की बेहतरी में भी बहुत बड़ा योगदान दिया है।
कार्ल मार्क्स ने अपने इस विचार की गणना साल 1848 में अपने मार्क्सवादी कम्युनिस्ट घोषणापत्र में की थी। उस दौरान उन्होंने बालश्रम का जिक्र करते हुआ कहा था, कि बच्चों का अधिकार है शिक्षा। उन्हें काम पर नहीं बल्कि स्कूल भेजना चाहिए। मार्क्स के इस विचार का रिपीट टेलीकास्ट तब हुआ जब साल 2016 में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संघ में जारी आकड़ों के मुताबिक दुनिया में हर दस बच्चों पर एक बच्चे के बाल श्रमिक होने के आकड़े दुनिया के सामने आये। दुनिया में बाल श्रम के घटते आकड़ें कार्ल मार्क्स के विचारों की ही देन है।
मार्क्स के इस विचार को तो दुनिया का हर इंसान फोलों करना चाहता है, लेकिन कभी हालात, तो कभी उनका काम उनके इस महाराजा माइंड पर भारी पड़ जाता है। कार्ल मार्क्स ने अपने विचारों में लिखा था कि किस तरह एक पूंजीवादी समाज में लोगों को जीने के लिए श्रम बेचना उसकी मजबूरी बना दिया जाता है, और धीरे-धीरे ये मजबूरी जरूरत बन जाती है। इसके अलावा मार्क्स का ये विचार तो आज के दौर पर बिल्कुल सटीक बैठता है कि अधिकांश समय आपको आपकी मेहनत के हिसाब से पैसे नहीं दिए जाते और आपका शोषण किया जाता है।
इसलिए मार्क्स का कहना था कि हमारी जिंदगी पर हमारा खुद का अधिकार हो, हमारा जीवन सबसे ऊपर हो। ताकि हम आज़ाद हो, ताकि हमारे अंदर सृजनात्मक क्षमता का विकास हो सके।
मार्क्स ने अपने दूसरे विचार से ही तीसरे को जोड़ा और कहा था कि हमेशा अपने मन का ही काम करे। जो आपको खुशी दे, क्योकि जब आप खुश होते है तो आप काम में और भी निपुणता और रचनामत्कता दिखाते है। जोकि ना केवल आपके लिए बल्कि आप जिसके लिए काम करते है, उन्हें भी फायदा देता है। ये शब्द आज या कल के किसी मोटिवेशनल गुरू के नहीं बल्कि 19वां सदी के महान राजनैतिज्ञ कार्ल मार्क्स के है।
ये कार्ल मार्क्स का सबसे बड़ा विचार ये था, जिसमे उनका कहना था कि अगर कोई व्यक्ति किसी के साथ सिर्फ जातिवाद के चलते गलत कर रहा है, अन्याय कर रहा है, भेदभाव कर रहा है… तो आपकों उसका विरोध करना चाहिए। इस दकियानूसी सोच को आप सगंठित हो, प्रर्दशन कर बदल सकते है। संगठित विरोध के कारण कई देशों की सामाजिक दशा बदली है। रंग भेदभाव, समलैंगिकता और जाति आधारित कई मुद्दों पर नए कानून इस संगठनों के एकता प्रदर्शन की ही देन है।
मार्क्स का ये विचार हर देश के नागरिक के लिए बेहद जरूरी है। आपकों कैसा लगेगा अगर सरकार और बड़े बिजनेस घराने सांठगांठ कर ले? क्या आप सुरक्षित महसूस करेंगे…. नहीं ना… क्योकि इन डायरेक्ट इन दोनों के हर छोटे-बड़े फैसले का असर आम जनता यानि आप पर ही पड़ता है।
कार्ल मार्क्स ने कुछ ऐसा ही महसूस किया था 19 वी शताब्दी के दौरान, जब उनके विचारों पर लोगों ने अपनी प्रतिक्रिया जाहिर की था। हालांकि उस दौरान सोशल मीडिया नहीं था फिर भी वो पहले शक्स थे जिन्होंने इस तरह के सांठगांठ की व्याख्या दी थी।
ये सभी बेहद आम बातें और विचार है, लेकिन इनका असर हमारी रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़ा है। ये विचार जहां एक ओर हमें खुशिया दे सकते है वहीं दूसरी सूकून भरी जिंदगी भी।
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