कन्याकुमारी – भारत के कई ऐसे पर्यटन स्थल है जहां विशाल संमदर की मस्त लहरों में मौज-मस्ती करने के लिए लोग अपने दोस्तों और परिवार वालों के साथ जाते हैं. ऐसे में अगर खूबसूरत नजारों के साथ आध्यात्म भी जुड़ जाए तो कितना आनंद आता है.
वैसे अधिकांश लोग विशाल समंदर के किनारे जाकर अपनी छुट्टियों को यादगार बनाते हैं अगर आप भी अपनी छुट्टियों को यादगार बनाना चाहते हैं तो हम आपको बताने जा रहे हैं भारत के दक्षिणी छोर पर स्थित एक ऐसे खूबसूरत पर्यटन व धार्मिक स्थल के बारे में जो तीन तरफ से विशाल समंदरों से घिरा हुआ है.
तीन सागरों का संगम स्थल है कन्याकुमारी
भारत के दक्षिणी छोर पर स्थित कन्याकुमारी कई वजहों से महत्वपूर्ण माना जाता है. कन्याकुमारी तमिलनाडु में केरल की सीमा के पास सागर तट पर स्थित है. यह धार्मिक पर्यटन स्थल तीन ओर से सागर जल से घिरा हुआ है यानि यहां तीन अलग-अलग समंदरों का संगम देखने को मिलता है.
पूर्व में बंगाल की खाड़ी, पश्चिम में अरब सागर और दक्षिण में सुदूर दक्षिणी ध्रुव तक हिन्द महासागर फैला हुआ है. यहां स्थित विवेकानंद शिला से अरब सागर की पीले और बंगाल की खाड़ी की नीले रंग की लहरें साफ-साफ दिखाई देती हैं.
रामायण में भी इस पावन स्थान का उल्लेख मिलता है. कहा जाता है कि जब माता सीता की खोज में भटकते हुए श्रीराम यहां पहुंचे थे तब कन्याकुमारी देवी ने ही उन्हें गंधनादन पर्वत यानि रामेश्वरम की ओर जाने का संकेत दिया था.
यहां स्थित है कन्याकुमारी देवी का भव्य मंदिर
कन्याकुमारी देवी का मंदिर ऊंचे चौकोर व पथरीले स्थान पर स्थित है जिसके तीन ओर सागर की मदमस्त लहरें हरदम अटखेलियां करती रहती हैं.
इस मंदिर के चार दिशाओं की ओर चार द्वार हैं जिनमें तीन द्वार ही खुले रहते हैं. प्रस्तर खंडों से बने कलात्मक मंदिर के गर्भगृह में देवी कन्याकुमारी की आकर्षक सुंदर मूर्ति खड़ी है. पूर्व दिशा की ओर मुख किए कुमारी देवी के एक हाथ में माला है जबकि उन्होनें कौमार्य के प्रतीक के रूप में नाक में हीरे की सीक तथा रत्नजड़ित नथ पहन रखी है.
कन्याकुमारी के मंदिर के पास ही भद्रकाली का मंदिर है. भद्रकाली को कुमारी देवी की मुख्य सहेली कहा जाता है. इस मंदिर की गणना 51 शक्तिपीठों में की जाती है.
पर्यटकों को आकर्षित करती है विवेकानंद शिला
कन्याकुमारी में इस मंदिर के अलावा देखने लायक कई और भी चीजें हैं जिनमें से विवेकानंद शिला लोगों का खासा आकर्षित करती है.
तट-भूमि से करीब पांच सौ मीटर की दूरी पर समुद्र में दो विशाल चट्टानों पर उभरी हुई विवेकानंद शिला तक पहुंचने के लिए मोटरबोट तथा छोटी नौकाओं का प्रबंध किया गया है जो यात्रियों को केवल दस मिनट में ही सागर यात्रा करा देती हैं.
बताया जाता है कि सन 1892 में देवी मां के परमभक्त स्वामी विवेकानंद कन्याकुमारी पहुंचे थे. देवी के चरण चिन्हों के दर्शन की लालसा के कारण स्वामी विवेकानंद समंदर में तैरकर उस चट्टान चक जा पहुंचे.
जहां तीन दिनों तक समाधि में लीन रहकर उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन मानव सेवा में लगाने का संकल्प लिया और उन्हीं की याद में इस बड़ी चट्टान पर इस स्मारक का निर्माण किया गया है.
यहां रखा गया था गांधी जी का अस्थि कलश
कन्याकुमारी मंदिर के पास में ही स्थित है गांधी मंडप, जहां सागर संगम में गांधी जी की अस्थियों को विसर्जित करने से पहले अस्थि कलश को दर्शन के लिए रखा गया था.
तीन मंजिला गांधी मंडप की खासियत यह है कि 2 अक्टूबर को गांधी जयंती के दिन सूर्य की किरणें झरोखों से होकर उसी स्थान पर पड़ती हैं जहां अस्थि कलश रखा गया था. यहां सूर्योदय और सूर्यास्त का मनमोहक दृश्य देखने को मिलता है.
सबसे मनमोहक नजारा तो पूर्णिमा की शाम का होता है जब पश्चिम में सूर्य अस्त होता है और पूर्व में चंद्र उदय के साथ ही अपनी अद्भुत चांदनी बिखेरता है.
यहां पहुंचने के लिए सबसे बेस्ट है रेल मार्ग
पिछले कुछ सालों में कन्याकुमारी का दीदार करने आनेवाले पर्यटकों की संख्या में भारी इजाफा हुआ है. अगर आप भी कन्याकुमारी जाना चाहते हैं तो हम आपको बता दें कि यहां पहुंचने के लिए सबसे सुविधाजनक जरिया है तिरुवनंतपुरम से कन्याकुमारी की रेल लाइन.
रेल मार्ग के जरिए आप चाहें तो चेन्नई से त्रिनलवेली और मदुरै होते हुए कन्याकुमारी पहुंच सकते हैं. कन्याकुमारी रेलवे स्टेशन दक्षिण रेलवे का सबसे आखिरी स्टेशन है.
इस रेल यात्रा के दौरान रास्ते में हरे-भरे धान के खेत, नारियल, सुपारी, कटहल और काजू के पेड़ देखने को मिलते हैं इसके साथ ही रास्ते में कई नदियां और पूर्व उत्तर की ओर लहराते हुए समंदर के दर्शन भी होते हैं.
गौरतलब है कि कन्याकुमारी में प्रकृति के खूबसूरत नजारे, समंदर के मनमोहक दृश्यों के अलावा धर्म और आस्था का अनुठा संगम देखने मिलता है, तो क्यों ना इस बार कन्याकुमारी की सैर करने का प्लान बनाया जाए.
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