आज जो एक सच यंगिस्थान आपको बताने वाले है, निश्चित तौर पर इस सच से मात्र 1 से 2 प्रतिशत लोग ही वाकिफ होंगे.
आपने क्या कभी ‘कानपुर डिनर’ का नाम सुना है? चलिए अब ये बताइए कि क्या कभी इतिहास की किताबों में अंग्रेज हुकूमत के समय ‘कानपुर डिनर’ का नाम आपने सुना है?
असल में जब ब्रिटिश हुकूमत भारत देश पर कब्जा करना शुरू कर रही थी, तब प्रारंभ में भारतीय राजाओं ने अंग्रेजों का मुकाबला किया और अंग्रेजों को हराकर भगा दिया था. लेकिन कुछ समय बाद जब अंग्रेज सेना वापिस आई थी तो उन्होंने जनता के ऊपर अत्याचार करने शुरू कर दिए थे.
अंग्रेज राह चलते लोगों को मारने लगे थे.
इन मासूम लोगों की हत्या के खेल को नाम दिया गया था- ‘कानपुर डिनर’.
तो आज हम आपको कानपुर डिनर का पूरा सच बताने वाले हैं. इस सच को जान निश्चित रूप से आपकी रूह काँप उठेगी-
1857 में जनता के सामने सच आया था?
अंग्रेज अत्याचार करते हैं ऐसा कोई नहीं राजा या बड़े पद वाला व्यक्ति नहीं बोलता था. लेकिन 1857 की क्रांति में यह सच सामने आ जाता है कि अंग्रेज प्रोटेस्टेंट ईसाई के रूप में भारत के मासूम लोगों पर अत्याचार करते हैं. वैसे 57 की क्रांति के समय ही यह बात सबके सामने आई थी कि अंग्रेज अनैतिकता और अत्याचार के दम पर भारत में राज कर रहे हैं.
अंग्रेज, भारतीय मासूम लोगों को दर्दनाक मौत दे रहे थे
लाहौर से लेकर कलकत्ता तक अंग्रेजों से सभी लोग डरने लगे थे. असल में सन 1806 में कम्पनी का बंगाल में महाप्रबंधक था विलियम केवेनडिश. लेकिन जनता ने इसको जल्दी ही भारत देश से भगा दिया था. जब यह इंग्लैंड गया तो वहां इसने भारतीय लोगों के व्यवहार के बारें में रानी को बताया और बोला कि अगर भारत पर राज करना है तो लोगों को डराकर रखना होगा.
तब अंग्रेजों ने बनाई एक खास नीति
इसके बाद से अंग्रेजों ने ख़ास मिशन शुरू किया था, इसका नाम था कानपुर मिशन.
ईसाई सैनिकों ने बाइबल के अलग-अलग ‘साम’ पढ़ते हुए और जीसस की दुहाई देते हुए, भारतीयों का क़त्ल करना शुरू कर दिया था. इसी बीच अंग्रेज अफसर गार्नेट वुल्सले ने शपथ ली कि – खून और केवल खून. और इसने बोला कि हम इन निगरों का एक-एक बूंद खून बहा देंगे.
तब अंग्रेज सैनिकों को रास्ते में जो भी भारतीय मिला, बच्चा-बूढ़ा या महिला, सभी का बस कत्ल किया गया था.
इस पूरे कांड को कानपुर डिनर इसलिए कहते थे- हम (अंग्रेज) कानपुर में मारे गये, अंग्रेजों का बदला इन भारतीयों को खाकर ले रहे हैं. असल में कानपूर की क्रांति में कई अंग्रेज सैनिक मारे गये थे और अंग्रेज पूरे भारत में जीसस के नाम पर लाखों भारतीय लोगो का क़त्ल कर इसका बदला ले रहे थे.
आप पढ़िए इतिहास की यह पुस्तक-
आप अगर लेखक- कुसुमलता केडिया और रामेश्वर प्रसाद मिश्र की पुस्तक “कभी पराधीन नहीं हुआ भारत” पढ़ते हैं तो यहाँ आप कानपुर डिनर का पूरा इतिहास पढ़ सकते हैं. इस पुस्तक में लिखा गया है कि अंग्रेज इन मारे हुए लोगों का मांस उबालकर खाते थे और तत्काल मारे हुए लोगों का खून पीया जाता था. यह एक चाल थी कि इस तरह से भारत के लोग अंग्रेजों से डरकर रहेंगे और अंग्रेजों के खिलाफ कोई भी क्रान्ति नहीं होगी.
लेकिन शर्म की बात यह है कि जब बड़े दर्दनाक तरीके से भारतीय लोगों को मारा जा रहा था, तब हमारे राजा और योद्धा कहाँ थे?
क्योकि तब अंग्रेज मात्र हमारे सेवक थे, तब कम्पनी राज भारत पर लागू नहीं हुआ था.
असल में जवाब यह है कि जब कानपुर डिनर हो रहा था तो हमारे राजा अलग-अलगे टूटे हुए थे और किसी में भी एकता नहीं था. सभी राजा बस यह सब देख रहे थे. इसीलिए अंग्रेज ईसाईयत के नाम पर इतना अत्याचार करने में सफल हो गये थे.
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